याची का कहना था कि सह अभियुक्तों की जमानत अर्जी मंजूर कर ली गई थी, इसलिए उसे भी रिहा होना चाहिए, जिसपर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि वारदात की जघन्यता को देखते हुए सह अभियुक्तों को भी रिहा करना उचित नहीं था.
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प्रयागराज: बीते 2 जून 2019 को अलीगढ़ के टप्पल इलाके में एक ऐसी वारदात सामने आई थी, जिसे देख लोगों के दिल दहल गए थे. एक ढाई साल की मासूम की लाश देख क्षेत्र में हड़कंप मच गया था. पुलिस ने कार्रवाई करते हुए बच्ची का अपहरण कर क्रूरता से उसकी हत्या करने के आरोपियों को सलाखों के पीछे डाल दिया था. जिसके बाद से मुख्य आरोपी मेहंदी हसन ने हाई कोर्ट में जमानत याचिका डाली, जिसे जज ने खारिज कर दिया था. कुछ समय बाद मेहंदी हसन ने दोबारा याचिका डाली थी, जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फिर से खारिज कर दिया है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि सह-अभियुक्तों को जमानत देने से पहले हत्या की प्रकृति पर विचार नहीं किया गया.
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पोस्टमॉर्टम में सामने आई हत्यारों की क्रूरता
30 मई 2019 को बच्ची अपने घर से लापता हो गई थी. 2 जून को उसरी लाश मिली. जब बच्ची के शव की पोस्टमॉर्ट रिपोर्ट सामने आई, तो पढ़ने वाले सन्न रह गए. मासूम के शरीर पर चोट के कई निशान थे. उसके पैर की हड्डी टूटी थी, उसकी पसली दबी हुई थी, शरीर के कई अंग गायब थे. बहुत ही बुरी तरह से उसकी हत्या की गई थी. ऐसे में आरोपियों को जमानत मिलना कहीं से उचित नहीं है.
याची ने की यह अपील
याची का कहना था कि सह अभियुक्तों की जमानत अर्जी मंजूर कर ली गई थी, इसलिए उसे भी रिहा होना चाहिए, जिसपर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि वारदात की जघन्यता को देखते हुए सह अभियुक्तों को भी रिहा करना उचित नहीं था. वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता विकास सहाय ने जमानत अर्जी का विरोध किया.
क्यों की गई मासूम हत्या?
दरअसल, याची मेहंदी हसन के भाई ने मृतक बच्ची के पापा से बड़ा लोन लिया था, जिसे वे वापस नहीं कर रहे थे. पिता द्वारा पैसे मांगने पर जाहिद, असलम, सुस्ता और मेहंदी हसन ने इस जघन्य आपराध को अंजाम दिया. 30 मई 2019 को बच्ची को घर से उठा लिया गया. बहुत ढूंढने के बाद 2 जून को सीधा उसकी लाश मिली. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ऐसी क्रूरता सामने आई कि न ही देखें तो बेहतर था.
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