अयोध्या मामला: इकबाल अंसारी बोले, 'समझौते पर हम सहमत होंगे, लेकिन पार्टियां नहीं मानने वाली'
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अयोध्या मामला: इकबाल अंसारी बोले, 'समझौते पर हम सहमत होंगे, लेकिन पार्टियां नहीं मानने वाली'

इकबाल अंसारी का कहना है की दो बार पहले भी समझौते की बात हो चुकी है, लेकिन बात आज तक नहीं बन पाई है.

अयोध्या मामला: इकबाल अंसारी बोले, 'समझौते पर हम सहमत होंगे, लेकिन पार्टियां नहीं मानने वाली'

नई दिल्ली/अयोध्या: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट आज (06 मार्च) को सुनवाई करेगा. कोर्ट की सुनवाई से पहले बाबरी मस्जिद पक्षकार इकबाल अंसारी का बड़ा बयान आया है. इकबाल अंसारी का कहना है की दो बार पहले भी समझौते की बात हो चुकी है, लेकिन बात आज तक नहीं बन पाई है. उन्होंने कहा है कि हम समझौते के लिए सहमत हैं, लेकिन राजनैतिक पार्टियां ये नहीं मानने वाली है. 

बाबरी मस्जिद पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि अयोध्या मसले पर लोग राजनीति कर रहे हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ही निर्णय दे, जो कोर्ट फैसला करेगा उसे ही माना जाएगा. 

वहीं, अयोध्या श्री रामलला पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने कहा की सुप्रीम कोर्ट की सुलाह की पहल सराहनीय हैं. अयोध्या से हिन्दू-मुस्लिम के बीच भाईचारे का संदेश जाता रहा है. विवादित जमीन को मुस्लिम पक्ष छोड़ दे और उसकी जगह दूसरी जमीन ले ले. इस आधार पर समझौता हो सकता है. 

 

आपको बता दें कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार (06 मार्च) सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ बुधवार को तय करेगी कि अयोध्या केस में मध्यस्थता या समझौता हो या नहीं.दरअसल, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर 1 फीसदी भी समझौता और मध्यस्थता का चांस है तो प्रयास होना चाहिए. जस्टिस बोबडे ने कहा था कि मेडिएशन की प्रकिया गोपनीय रहेगी और ये भूमि विवाद की सुनवाई के साथ साथ चलेगी. हिंदू और मुस्लिम पक्षकारो का कहना था कि पहले भी अदालत की पहल पर इस तरह से विवाद को सुलझाने की कोशिश नाकामयाब हो चुकी है.

मुस्लिम पक्षकारो की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा था कि मेडिएशन को एक चांस दिया जा सकता है, पर हिन्दू पक्ष को ये क्लियर होना चाहिए कि कैसे आगे बढ़ा जाएगा. जस्टिस बोबड़े ने कहा था कि हम एक प्रोपर्टी विवाद को निश्चित तौर पर सुलझा सकते है, पर हम रिश्तों को बेहतर करने पर विचार कर रहे है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए 6 हफ्ते दिया था और कहा था कि हमारे विचार में 8 हफ्ते के वक्त का इस्तेमाल पक्ष मध्यस्थता के ज़रिए मसला सुलझाने के लिए भी कर सकते हैं. 

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