कौन थे ओंकार भावे, जिसने मंदिर आंदोलन की रीढ़ राम जानकी रथ छोड़ने के लिए प्रशासन को झुका दिया
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कौन थे ओंकार भावे, जिसने मंदिर आंदोलन की रीढ़ राम जानकी रथ छोड़ने के लिए प्रशासन को झुका दिया

Ram Mandir News : आज अयोध्या में भगवान राम का जो मंदिर बनकर तैयार है, उसके नींव में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है. इस संघर्ष में अयोध्या के ऐसे कई किरदार हैं, जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. ऐसे ही एक शख्सियत का नाम है ओंकार भावे...आइए जानते हैं...

कौन थे ओंकार भावे, जिसने मंदिर आंदोलन की रीढ़ राम जानकी रथ छोड़ने के लिए प्रशासन को झुका दिया

Ayodhya News : अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में उत्साह का माहौल है. 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण की नींव में अनेक महान संत और लोगों का त्याग शामिल है. अयोध्या के ऐसे ही एक महान किरदार का नाम ओंकार भावे है. वह विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री रहे. संतों के आदेश से विहिप के तत्वावधान में मंदिर आंदोलन के लिए जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी तो इसके अध्यक्ष तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ और महामंत्री दाऊदयाल खन्ना के साथ ओंकार भावे को प्रथम मंत्री बनाया गया. 

विश्व हिंदू परिषद की ओर से समिति में उनको ही स्थान दिया गया था. वह आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के मंत्री रहे. बताया जाता है कि ओंकार भावे ने मंदिर आंदोलन के दौरान काफी संघर्ष किया. दरअसल, राम जन्मभूमि का ताला खुलने पर राम जानकी रथ को उत्तर प्रदेश शासन ने जब्त कर लिया था. राम जानकी रथ को छुड़वाने के लिए हुए आंदोलन का नेतृत्व ओंकार भावे ने ही किया था और शासन को झुकने पर मजबूर किया था. 1990 की कारसेवा के दौरान उन्होंने एक बलिदानी जत्थे का नेतृत्व किया था.

देशभर में किया प्रवास

आंदोलन शुरू होने से पूर्व एकात्मता यात्रा देशभर में निकाली गई थी. यात्रा की पूर्व तैयारी के लिए ओंकार भावे ने सघन प्रवास किया था. उन्होंने छोटी-छोटी बैठकें ली थीं. विहिप में उन्होंने अंचल संगठन मंत्री, केंद्रीय मंत्री, संयुक्त महामंत्री और उपाध्यक्ष के नाते देशभर में कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया.

ओंकार भावे का जन्म 26 जुलाई 1924 को आजमगढ़ में हुआ था. वह 14 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने. उन्होंने 1940, 1941 और 1942 में क्रमशः संघ शिक्षा वर्ग प्रथम, द्वितीय और संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण भी हासिल किया. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1944 में संघ के प्रचारक के रूप में काम करना शुरू किया. वह प्रयाग, हरदोई और अलीगढ़ में जिला प्रचारक रहे. इसके बाद आगरा एवं लखनऊ में विभाग प्रचारक की जिम्मेदारी निभाई. लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म के व्यवस्थापक तथा सह संपादक भी रहे. इसके बाद प्रयाग के विभाग प्रचारक तथा प्रयाग एवं काशी के संभाग प्रचारक रहे. पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के शारीरिक प्रमुख तथा व्यवस्था प्रमुख भी रहे. आपातकाल के दौरान 1975 में भूमिगत रहकर संगठन के काम को आगे बढ़ाया. 

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धर्म संस्कृति रक्षा निधि के लिए किया प्रवास
इसके बाद वर्ष 1981 में संघ ने उनकी योजना विहिप में हुई. विहिप ने जब देशभर में धर्म संस्कृति रक्षा निधि का संग्रह शुरू किया तो उसके लिए उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश का प्रवास किया. परिषद के अविभाजित उत्तरप्रदेश और अविभाजित मध्य प्रदेश के अंचल संगठन मंत्री के रूप में इस संपूर्ण क्षेत्र में संगठन के काम को आगे बढ़ाया. इसके बाद परिषद के क्रमशः केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय संयुक्त महामंत्री और जीवन के अंतिम क्षण तक केंद्रीय उपाध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया.

वह एक कुशल संगठनकर्ता रहे. विहिप की मासिक पत्रिका हिंदू विश्व के संपादक भी रहे. मातृशक्ति, दुर्गा वाहिनी और बजरंग दल को नया आयाम उन्होंने ही प्रदान किया. वर्ष 2009 में विहिप ने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए परिषद शिक्षा वर्ग आरंभ किया और गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का संयुक्त वर्ग भोपाल में आयोजित किया गया. इसी वर्ग के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और 23 जुलाई 2009 को उनका महाप्रयाण हो गया. 

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