कैराना में BJP का किला 'दरका', हार के ये रहे 5 कारण
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कैराना में BJP का किला 'दरका', हार के ये रहे 5 कारण

जातिगत समीकरण के लिहाज से यदि देखा जाए तो कैराना में 16 लाख वोटरों में सर्वाधिक 5 लाख मुस्लिम वोटर हैं.

तबस्‍सुम हसन रालोद की प्रत्‍याशी थीं और सपा ने इनको समर्थन दिया.(फाइल फोटो)

कैराना में 2014 में पांच लाख से भी अधिक वोटों से चुनाव जीतने वाली बीजेपी का किला उपचुनाव में दरक गया है. सपा, बसपा, कांग्रेस के समर्थन से रालोद(RLD) ने ये सीट बीजेपी से छीन ली है. यहां रालोद प्रत्‍याशी तबस्‍सुम हसन ने सीधे मुकाबले में बीजेपी प्रत्‍याशी मृगांका सिंह को शिकस्‍त दी. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद ये सीट पार्टी के लिए प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न बन गई थी. इसी कड़ी में सीएम योगी आदित्‍यनाथ ताबड़तोड़ रैलियां कीं और 5 मंत्रियों ने यहां डेरा डाला लेकिन इसके बावजूद विपक्षी एकजुटता के सामने बीजेपी ठहर नहीं सकी. इसी कड़ी में बीजेपी की हार के पांच अहम कारणों में आइए डालते हैं एक नजर:

  1. विपक्ष की प्रत्‍याशी ने बीजेपी को हराया
  2. 2014 में यह सीट बीजेपी ने जीती थी
  3. विपक्षी प्रत्‍याशी को सपा, बसपा, कांग्रेस का समर्थन

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1.जातिगत समीकरण के लिहाज से यदि देखा जाए तो कैराना में 16 लाख वोटरों में सर्वाधिक 5 लाख मुस्लिम वोटर हैं. उसके बाद दलित वोटरों की संख्‍या दो लाख से अधिक है. इसके साथ ही प्रभावशाली जाट और गुर्जर जाति के बराबर यानी सवा लाख वोटर हैं. अन्‍य पिछड़ी जातियों के करीब तीन लाख वोटर हैं.

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2. इस कारण सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस ने विपक्षी एकजुटता दिखाते हुए तबस्‍सुम हसन को ही अपना समर्थन दिया. सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम और उसके बाद दलित वोटरों को देखते हुए जातिगत आंकड़ों के लिहाज से तबस्‍सुम हसन के पक्ष में माहौल बना. चूंकि वह अजित सिंह की पार्टी रालोद(RLD) के टिकट पर चुनावी मैदान में थीं इसलिए सवा लाख जाट वोटरों का भी उनको समर्थन मिला.

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मृगांका सिंह दिवंगत बीजेपी सांसद हुकुम सिंह की बेटी हैं.(फाइल फोटो)

3. मृगांका सिंह जहां हिंदू गुर्जर हैं वहीं तबस्‍सुम हसन मुस्लिम गुर्जर हैं. इसलिए गुर्जर वोटों का भी बंटवारा हुआ. लिहाजा जातिगत समीकरण के लिहाज से यदि देखा जाए तो समीकरण तबस्‍सुम हसन के पक्ष में थे.

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4. चुनाव से पहले मुकाबला त्रिकोणीय होने के कारण जातिगत समीकरणों के लिहाज से पलड़ा बीजेपी की तरफ इसलिए झुका दिख रहा था क्‍योंकि तबस्‍सुम हसन के देवर कंवर हसन निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में खड़े हो गए थे. पिछले लोकसभा चुनाव में वे बसपा से खड़े हुए थे जबकि तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन सपा से खड़े हुए थे. उस चुनाव में कंवर हसन को 1.66 लाख वोट मिले थे. ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा था, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बीजेपी को झटका देते हुए वह अपनी भाभी के पक्ष में चुनाव मैदान से हट गए. इस कारण मुकाबला सीधा बीजेपी बनाम विपक्ष हो गया.

5. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव प्रचार लिस्‍ट में नाम होने के बावजूद वहां प्रचार करने नहीं गए. उसका एक बड़ा कारण यह माना जाता है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे और उसके बाद 2016 में हिंदू पलायन के मुद्दे के कारण पार्टी सूत्रों के मुताबिक सांप्रदायिक धुव्रीकरण की स्थिति उत्‍पन्‍न होने की आशंका थी. ऐसे में इस तरह की रणनीतिक विपक्षी एकजुटता के कारण किसी प्रकार का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ और इसका लाभ रालोद प्रत्‍याशी को मिला.

उल्‍लेखनीय है कि कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की 3 और सहारनपुर जिले की 2 विधानसभाएं शामिल हैं. कैराना कस्‍बा शामली जिले में पड़ता है. 2011 में मायावती ने शामली को जिला घोषित करते हुए इसका नाम प्रबुद्ध नगर घोषित किया था. उसके बाद अखिलेश यादव ने 2012 में इसका नाम फिर से शामली कर दिया. उससे पहले कैराना, मुजफ्फरनगर की तहसील हुआ करता था.

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