हल्‍द्वानी में अतिक्रमण बनी धामी सरकार के लिए चुनौती, कहीं रेलवे की जमीन पर कब्‍जा, तो कहीं हेराफेरी कर बेच दी सरकारी भूमि
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हल्‍द्वानी में अतिक्रमण बनी धामी सरकार के लिए चुनौती, कहीं रेलवे की जमीन पर कब्‍जा, तो कहीं हेराफेरी कर बेच दी सरकारी भूमि

Haldwani Violence:  पिछले साल जनवरी में हल्‍द्वानी के बनभूलपुरा गफूर बस्ती में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हो गया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने जमीन से लोगों को बेदखल करने पर रोक लगा दी थी. 

हल्‍द्वानी में अतिक्रमण बनी धामी सरकार के लिए चुनौती, कहीं रेलवे की जमीन पर कब्‍जा, तो कहीं हेराफेरी कर बेच दी सरकारी भूमि

Haldwani Violence: उत्तराखंड के हल्द्वानी में गुरुवार को उस समय हिंसा भड़क गई. जब नगर निगम अवैध मस्जिद और मदरसा पर कार्रवाई करने पहुंचा था. हालात इतने खराब हो गए हैं कि दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. हल्‍द्वानी हिंसा में करीब 100 से ज्‍यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए. वहीं, फायरिंग में चार लोगों के मरने की भी सूचना है. यह पहली दफा नहीं है जब हल्‍द्वानी में अतिक्रमण को लेकर बवाल हुआ है. इससे पहले भी अतिक्रमण को लेकर हल्‍द्वानी में बवाल हो चुके हैं. तो आइये जानते हैं कब-कब हल्‍द्वानी हिंसा की आग में झुलसी है. 

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने गई थी टीम 
जानकारी के मुताबिक, पिछले साल जनवरी में हल्‍द्वानी के बनभूलपुरा गफूर बस्ती में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हो गया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने जमीन से लोगों को बेदखल करने पर रोक लगा दी थी. हल्द्वानी के जिस इलाके में अतिक्रमण है, वह करीब  2.19 किमी लंबी रेलवे लाइन का क्षेत्र है. रेल अधिकारियों के मुताबिक, रेल लाइन से 400 फीट से लेकर 820 फीट चौड़ाई तक अतिक्रमण है. रेलवे करीब 78 एकड़ जमीन पर कब्जे का दावा कर रहा है. पिछले साल भी इस जमीन को खाली कराने के लिए रेलवे बुलडोजर चलाने की तैयारी में था तभी सुप्रीम रोक लग गई थी. 

वन विभाग की जमीन को बेचने का मामला 
हल्‍द्वानी में ही पिछले साल रेलवे, वन विभाग और राजस्व की जमीन को सौ और पांच सौ रुपये के स्टांप पेपर के जरिये बेचे जाने का मामला भी सुर्खियों में आया था. दरअसल, हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दावा किया गया था कि हल्द्वानी की गफूर बस्ती में रेलवे की जमीन, गौलापार गोजाजाली स्थित वन विभाग और राजस्व की जमीन को भू-माफिया की ओर से सौ और पांच सौ रुपये के स्टांप पेपर पर बेच दिया गया है. जिन लोगों को यह जमीन बेची गई है वे उत्तराखंड के स्थायी निवासी नहीं हैं. वे लोग रोजगार के लिए यहां आए थे और कुछ ही समय बाद सीएससी सेंटर में इनके वोटर आईडी तक बन गए. 

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