कौन हैं बुंदेलखंड की डॉ. जया ठाकुर, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ी लंबी लड़ाई
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कौन हैं बुंदेलखंड की डॉ. जया ठाकुर, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ी लंबी लड़ाई

SC on Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुना दिया है.कोर्ट ने आगे कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया. इस ऐतिहासिक फैसले में डॉ जया ठाकुर का नाम जरूर आएगा. 

 

 

कौन हैं बुंदेलखंड की डॉ. जया ठाकुर, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ी लंबी लड़ाई

SC Verdict on Electoral Bond:  सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुना दिया.  सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी है. सीजेआई ने एकमत से फैसला देते हुए कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी देनी होगी. चुनावी बॉन्ड के इस ऐतिहासिक फैसले की लड़ाई में बुंदेलखंड की बेटी डॉ जया ठाकुर का नाम भी शामिल है.  इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में हुई सुनवाई में डॉ. जया ठाकुर तीन याचिकाकर्ताओं में से एक थीं.

कौन है डॉ.जया ठाकुर
जया ठाकुर सागर जिले की बंडा कस्बे की रहने वाली हैं. जया की स्कूली पढाई सागर संभागीय मुख्यालय पर और उन्होंने बीडीएस की डिग्री हासिल की है. उनकी शादी दमोह में हुई है. डॉ जया ठाकुर सामाजिक और राजनीतिक मामले में काफी एक्टिव रहती हैं. बुंदेलखंड इलाके में समाजसेवा और खासकर महिला सशक्तिकरण से जुडे़ कई आयोजन में शिरकत करती है. उनके पति वरुण ठाकुर सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. जया कई गंभीर और जनहित से जुडे़ मामले शीर्ष अदालत में उठाती आई हैं. कई ऐतिहासिक फैसले करा चुकी हैं. हाल ही में इलेक्टोरल बांड मामले में हुई सुनवाई में डॉ. जया ठाकुर तीन याचिकाकर्ताओं में से एक थीं.

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चुनावी बॉन्ड के फैसले पर क्या कहना है जया ठाकुर का
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने फैसले से पहले कहा, "कार्यवाही चल रही है और अदालत ने अभी तक कोई फैसला नहीं दिया है. लेकिन अदालत ने कहा कि यह पारदर्शी होना चाहिए. आरटीआई हर नागरिक की है सही है. कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होना चाहिए. 2018 में जब यह चुनावी बॉन्ड योजना प्रस्तावित की गई थी तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बॉन्ड खरीद सकते हैं और पैसा पार्टी को दे सकते हैं जो आप देना चाहते हैं लेकिन आपका नाम उजागर नहीं किया जाएगा, जो कि सूचना के अधिकार के खिलाफ है और इसका खुलासा किया जाना चाहिए.  इसलिए मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें मैंने कहा कि यह पारदर्शी होना चाहिए और उन्हें नाम बताना चाहिए और राशि, जिसने पार्टी को राशि दान की।”

चुनावी बॉन्ड में पारदर्शिता को लेकर याचिका
डॉ जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोल बांड में पारदर्शिता को लेकर याचिका दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि ''लोकतंत्र में पारदर्शिता मुख्य अवयव है. जब चुनाव में हिस्सा लेने वाले एक उम्मीदवार से उसकी शैक्षणिक योग्यता, संपत्ति, अपराध और तमाम तरह की जानकारी मांगी जाती है तो राजनीतिक दलों के लिए ऐसी छूट क्यों दी जा रही है. राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए. खास बात ये है कि जया ठाकुर सिर्फ ने इस मामले को लेकर नहीं, बल्कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के नियम, ओबीसी आरक्षण, महिला आरक्षण मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. डॉ. जया ठाकुर की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्कूलों में सेनेटरी पैड मुफ्त बांटे जाने और हर स्कूल में गर्ल्स टॉयलेट की अनिवार्यता पर सरकारों को सख्त निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बाकायदा राज्यवार समीक्षा भी कर रहा है.

जानें क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा मामला?
दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के मामले में वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन करके इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था लागू की थी. इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर राजनीतिक दल सीपीआई (एम), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और डॉ. जया ठाकुर द्वारा अलग-अलग याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ गठित की. तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड की चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा. एडीआर की तरफ से वकील प्रशांत भूषण, डॉ जया ठाकुर की तरफ से कपिल सिब्बल, सीपीआईएम के लिए अधिवक्ता शादान फरासत के अलावा वकील निजाम पाशा और विजय हंसारिया ने बहस की.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
चुनावी बांड ब्याज मुक्त धारक बॉन्ड या मनी इंस्ट्रूमेंट था जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की अधिकृत शाखाओं से खरीदा सकते थे. ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे. किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता है. पॉलिटिकल पार्टियों को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता है.  दान देने वाले का नाम और अन्य कैसी भी जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती. इस प्रकार चुनावी बॉन्ड को गुमनाम कहा जाता है. खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी.

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