मुस्लिम शासक तैमूर लंग ने की थी तोड़ने की कोशिश, अब 270 मीटर ऊंचा बनेगा यह मंदिर
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मुस्लिम शासक तैमूर लंग ने की थी तोड़ने की कोशिश, अब 270 मीटर ऊंचा बनेगा यह मंदिर

जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरीगिरी महाराज लंबे समय से मंदिर को विशाल और भव्य रूप दिए जाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण और अन्य विभागों की आपत्ति के कारण योजना आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

मायादेवी मंदिर (हरिद्वार).

हरिद्वार: हरिद्वार के जूना अखाड़ा स्थित प्रसिद्ध मायादेवी मंदिर के जीर्णोद्धार का रास्ता साफ हो गया है. उत्तराखंड कैबिनेट में पास होने के बाद शनिवार को कुम्भ मेलाधिकारी दीपक रावत ने जूना अखाड़े के संरक्षक हरिगिरी महाराज को जीर्णोद्धार से संबंधित शासनादेश भी सौंप दिया है.

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कैबिनेट ने दी मंजूरी
गौरतलब है कि जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरीगिरी महाराज लंबे समय से मंदिर को विशाल और भव्य रूप दिए जाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण और अन्य विभागों की आपत्ति के कारण योजना आगे नहीं बढ़ पा रही थी, जिसके बाद कैबिनेट में प्रस्ताव रखकर इसको पास कर दिया गया.

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फिलहाल उत्तराखंड कैबिनेट ने माया देवी मंदिर की ऊंचाई 270 मीटर और जूना अखाड़े में ही स्थित भैरव मंदिर की ऊंचाई 197 मीटर तक ऊंचा उठाने की मंजूरी दे दी है. अब बहुत जल्द ही नक्शा इत्यादि औपचारिकताएं पूरी होने के बाद मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पूरा हो जाएगा. शासनादेश सौंपने पहुंचे मेलाधिकारी दीपक रावत ने माया देवी मंदिर में पूजा अर्चना के साथ ही साधु-संतों का आशीर्वाद भी लिया.

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तैमूर लंग ने की थी मंदिर को तोड़ने की कोशिश
जूना अखाड़े के संरक्षक हरीगिरी महाराज ने बताया कि उनकी इच्छा थी कि माया देवी मंदिर को लोग हरिद्वार के किसी भी स्थान से देख सकें. नेपाल से लेकर देश के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद तक से इस मंदिर का संबंध जुड़ा है. मुस्लिम शासक तैमूर लंग तक ने इसे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन माता माया देवी आज भी इस मंदिर में साक्षात विराजमान हैं और भक्तों का कल्याण करती हैं.  
 
जानिए क्या है मायादेवी मंदिर की मान्यता?
माया देवी मंदिर समस्त 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ है. मान्यता है कि एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया, लेकिन उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया. लेकिन, सती माता यज्ञ में शामिल होने पहुंची. इस दौरान यज्ञ में राजा दक्ष ने शिव जी के लिए अपशब्द बोल उनको अपमानित किया. पति के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने यज्ञ में प्राणों की आहुति दे दी. इस पर शिव जी क्रोधित हो उठे. कहते हैं कि व्यथित होकर भगवान शिव शंकर सती के शव को लेकर विचरण करने लगे.

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माया देवी मंदिर स्थल में गिरी थी माता सती की नाभि
शिव जी की दशा से विष्णु भगवान भी दुखी हो गए. विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के 51 टुकड़े कर डाले. टुकड़े जहां-जहां पर गिरे, उन जगहों पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई. मान्यता है कि माया देवी मंदिर स्थल में ही सती का हृदय और नाभि गिरी थी. इसलिए इस स्थान को सभी शक्तिपीठों में प्रमुख माना गया है. यहां पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

स्वयं निर्मित है माया देवी मंदिर
मायादेवी मंदिर दर्शन के बाद भैरव बाबा के दर्शन और पूजन की भी परंपरा है. मान्यता है कि यहीं से सभी शुभ काम शुरू होते हैं. साफ मन से दोनों भगवान के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि ये मंदिर स्वयं निर्मित मंदिर है, जो जूना अखाड़ा छावनी के परिसर में स्थित है.

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जूना अखाड़े का इतिहास
उत्तराखंड में हरिद्वार जनपद मायापुरी के नाम से जाना जाता था. हरिद्वार में स्थित मायादेवी मंदिर के कारण ही यहां का पौराणिक नाम मायापुरी था. मायादेवी मंदिर की व्यवस्था साधु-संतों का सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा संभालता है. इस अखाड़े की स्थापना 1145 (भगवान शंकराचार्य के जन्म के हिसाब से इसकी स्थापना विक्रम संवत् 1202 में मानी जाती है) में उत्तराखंड के कर्ण प्रयाग (चमोली) में हुई थी.

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इसे श्रीपंचायती दशनाम् जूनादत्त नाम से भी जाना जाता है. हरिद्वार में भी इसकी स्थापना का वर्ष यही बताया जाता है. जूना अखाड़ा नागा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा है, जिसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं. इनके ईष्ट देव रुद्रावतार भगवान दत्तात्रेय हैं.

17 सदस्यीय कमेटी करती है संचालन
जूना अखाड़ा का मुख्यालय केंद्र वाराणसी में बड़ा हनुमान घाट पर है. हरिद्वार में मायादेवी मंदिर पर भी अखाड़े का  केंद्र स्थित है. नागा संन्यासियों की सबसे अधिक संख्या इसी अखाड़े में है. जूना अखाड़े का संचालन 17 सदस्यीय कमेटी करती है.

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मां मायादेवी मंदिर, आनंद भैरव मंदिर, श्री हरिहर महादेव पारद शिवलिंग महादेव मंदिर इसी अखाड़े के अधीन है. हरिद्वार में यह अखाड़े काफी प्राचीन हैं. कई ऐतिहासिक और धार्मिक पुस्तकों में भी इसका वर्णन मिलता है. अखाड़े की अन्य शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं. इनमें से बनारस, जूनागढ़, उज्जैन, नासिक, अमरकंटक, ओंकारेश्वर प्रमुख हैं.

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