Durvasa Rishi ki Kahani: दुर्वास ऋषि को मनाना आसान नहीं था. लेकिन आखिर में ऋषि माने लेकिन उन्होंने भगवान के आगे एक शर्त रख दी. दुर्वासा ऋषि ने भगवान से कहा कि अगर आप दोनों रथ को खींचें तो मैं आपके साथ चलूंगा नहीं तो नहीं जाऊंगा.
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krishna Rukmani ki Katha: भगवान अपने भक्तों को हमेशा आशीर्वाद और वरदान देते हैं. हालांकि भगवान की ही यह लीला होती है कि खुद उन्हें ही कोई श्राप दे बैठे. भले ही कोई भगवान को श्राप दे लेकिन भगवान उस श्राप का मान भी रखते हैं. ऐसा ही कुछ भगवान कृष्ण ने भी किया था. जब भगवान ने कृष्ण अवतार लिया था तो कई लीलाएं की थीं. उनमें से ही की गई एक लीला का वर्णन आपको बता रहे हैं.
भगवान कृष्ण ने रुक्मणी से विवाह किया था यह तो हम सब जानते हैं लेकिन क्या आपको बता है कि भगवान ने एक श्राप के चलते रुक्मणी जी से 12 साल का वियोग सहा था. अगर आप नहीं जानते हैं तो हम आपको इसकी पूरा कथा सुनाते हैं. दरअसल भगवान कृष्ण दुर्वासा ऋषि को पूजनीय मानते थे. इसी संबंध में वे उनके आश्रम रुक्मणी सहित गए. कृष्ण भगवान ने ऋषि से प्रार्थना की कि वह उनके यहां पधारें और सेवा करने का अवसर दें.
दुर्वास ऋषि को मनाना आसान नहीं था. लेकिन आखिर में ऋषि माने लेकिन उन्होंने भगवान के आगे एक शर्त रख दी. दुर्वासा ऋषि ने भगवान से कहा कि अगर आप दोनों रथ को खींचें तो मैं आपके साथ चलूंगा नहीं तो नहीं जाऊंगा. कृष्ण और रुक्मणी ने इस पर सोचा और इसके लिए मान गए. इस तरह दुर्वासा ऋषि रथ पर सवार हुए और कृष्ण रुक्मणी घोड़ों की तरह रथ खींचने लगे.
आगे जाकर रुक्मणी जी को प्यास लगी और इसके बार में उन्होंने भगवान से कहा. फिर क्या था भगवान ने अपने पांव के अंगूठे से जमीन खोदी और गंगा जी प्रकट हो गई. इस तरह कृष्ण रुक्मणी की प्यास बुझी. हालांकि उन्होंने रथ पर सवार दुर्वासा ऋषि को नहीं पूछा. जिससे ऋषि कुपित हो गए और उन्होंने गुस्से में कृष्ण रुक्मणी को श्राप दे डाला.
हालांकि भगवान ने श्राप का मान रखा और 12 साल वह और रुक्मणी एक दूसरे से दूर रहे. बाद में जब 12 साल की अवधि पूरी हुई तो कृष्ण भगवान और रुक्मणी पहले की तरह रहने लगे.