एक ऐसा नेता, जिसका सीएम बनना था एक पहेली, अपनी पार्टी पर नहीं पड़ने दिया पश्चिम यूपी के इस डॉन का साया
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एक ऐसा नेता, जिसका सीएम बनना था एक पहेली, अपनी पार्टी पर नहीं पड़ने दिया पश्चिम यूपी के इस डॉन का साया

गलत आवधारणाओं को अखिलेश ने कभी अपने करीब नहीं आने दिया. वह हमेशा से हिंदी प्रेमी थे और आज भी हिंदी प्रेमी ही हैं.

एक ऐसा नेता, जिसका सीएम बनना था एक पहेली, अपनी पार्टी पर नहीं पड़ने दिया पश्चिम यूपी के इस डॉन का साया

निमिषा श्रीवास्तव/लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज 48 साल के हो गए हैं. उनका जन्म इटावा जिले के सैफई में हुआ था. जन्मदिन के इस खास मौके पर ज़ी मीडिया ने अखिलेश की जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से निकालने की कोशिश की है. हमारी इस कोशिश में मददगार बने हैं पत्रकार के. विक्रम राव जो अखिलेश को करीब से जानते हैं और उनके पिता मुलायम सिंह के साथ 40 साल तक समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे.

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आइए जानते हैं अखिलेश यादव से जुड़े कुछ किस्से...

पैदा होने के बाद कई साल बिना पिता के ही निकाले
एक बार आपातकाल के समय, मुलायम सिंह यादव एक गांव से दूसरे गांव, बचते-बचाते साइकिल से जा रहे थे, लेकिन एक रात उन्हें गिरफ्तार लिया गया. उस समय मुलायम सिंह जिला स्तर की सोशलिस्ट पार्टी (वर्तमान में समाजवादी पार्टी) के नेता थे. एक बार मुलायम सिंह से पूछा गया कि आपातकाल की सबसे यादगार चीज क्या रही? तो उन्होंने बड़ी मार्मिक सी बात कही. उन्होंने बताया कि उनका बेटा अखिलेश 3 साल का हो गया और अपने पिता से मिला तक नहीं था. उसके पिता जेल में थे. जिस समय बेटे को एक पिता की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उस समय मुलायम सिंह को जेल में डाल दिया गया था. यह बात बेटे के लिए तो दुर्भाग्यपूर्ण थी ही, साथ ही एक पिता के लिए बहुत बड़ा दर्द था.

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दुनिया घूमने के बाद भी हिंदी से ही था प्यार
बताया जाता है कि जब अखिलेश यादव ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई पूरी कर वापस आए, फिर भी सबसे हिंदी में ही बात करते थे. अधिकतर ऐसा होता है कि जो लोग विदेश में शिक्षा पाते हैं, वह अपने आपको ज्यादा पढ़ा-लिखा दिखाने के लिए अंग्रेजी को अपना लेते हैं और अपनी मातृभाषा भूल जाते हैं. अंग्रेजी को फैशन का हिस्सा माना जाता है. कहा जाता है कि ज्यादा पढ़े-लिखे, ऊंचे लोग, जो अच्छे वर्ग से आते हैं वह अंग्रेजी बोलते हैं. लेकिन इन गलत आवधारणाओं को अखिलेश ने कभी अपने करीब नहीं आने दिया. वह हमेशा से हिंदी प्रेमी थे और आज भी हिंदी प्रेमी ही हैं. इसके अलावा, वह सचिवालयम में हिंदी की प्रगति करते रहे. यह लोगों के लिए एक आश्चर्यजनक सुख था कि विदेश में पढ़ने के बाद भी उन्हें अपनी भाषा से प्यार है.

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अखिलेश यादव ऐसे बने मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव मुख्यमंत्री कैसे बने यह आज तक एक पहेली है. दरअसल, साल 2012 में विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश ने कई दौरे किए और रथ यात्रा कर जनता को प्रभावित भी किया. इसी के साथ वह पार्टी के लिए कई वोट और सीटें लेकर आए. लेकिन यह तय नहीं हो पा रहा था कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बनेगा. अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव चाहते थे कि मुलायम सिंह ही सीएम बनें. वहीं, मुलायम सिंह दोनों तरफ से सोच रहे थे कि उन्हें सीएम की कुर्सी पर बैठना चाहिए या नहीं. क्योंकि सत्ता छोड़ना भी आसान नहीं है. 

उस दौरान, मार्च 2012 में एक अवसर आया जब मुख्यमंत्री की घोषणा के पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई. मुलायम सिंह, शिवपाल सिंह और अखिलेश यादव, तीनों ही पार्टी ऑफिस में कॉन्फ्रेंस के दौरान बैठे. लेकिन, कोई बताने को तैयार नहीं था कि सीएम किसे चुना जा रहा है. हमेशा की तरह मुलायम सिंह ने यह कह दिया था कि पार्टी निर्णय लेगी. वहीं, शिवपाल सिंह लगातार कह रहे थे कि बड़े भइया ही मुख्यमंत्री बनेंगे. इन सब बातों के बीच, अचानक अखिलेश यादव ने अपने पिता के हाथ से माइक छीन लिया और कोई बात कहना शुरू की. उस दौरान कॉन्फ्रेंस में बैठा हर पत्रकार दो और दो जोड़कर यह समझ गया कि यह लड़का इतना आश्वस्त है कि अपने पिता के हाथ से माइक छीनकर किसी नीति विशेष निर्णय की घोषणा करे, इसका मतलब यह है कि मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री चुन लिया है. 

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डॉन डीपी यादव को नहीं होने दिया पार्टी में शामिल
उसी वक्त एक और बात हुई. पश्चिम यूपी का डॉन डीपी यादव समाजवादी पार्टी में शामिल होना चाहता था. मुलायम सिंह जब सांसद थे तो उन्होंने डीपी यादव को पार्टी में लाने का दावा कर दिया था. यह तय था कि वह मेंबर बन जाएगा. उस दौरान समाजवादी पार्टी एक नई छवि लेकर सत्ता में उतर रही थी. उस समय अखिलेश ने खुलकर यह बयान दे दिया कि डीपी यादव को पार्टी में शामिल नहीं होने देंगे. अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह की नाराजगी को नजरअंदाज कर दिया. चाचा शिवपाल की बात भी नहीं मानी और न ही बड़े-बड़े सांसदों की बात सुनने को तैयार हुए. बस साफ कह दिया कि कोई भी डॉन हमारी पार्टी में शामिल नहीं हो सकता. मैं इसे स्वीकार नहीं करूंगा. 

यह खुद में बहुत हिम्मत की बात की थी कि पूरी पार्टी और अपने परिवार के खिलाफ जाकर एक बेटा और नेता इतना बड़ा फैसला लेता है. खासकर उस समय, जब सपा की छवि ही माफियाओं को पार्टी में शामिल करने की रही थी. ऐसी पार्टी जो माफियाओं से कलंकित रही है, उसमें एक नया चेहरा उभरकर सामने आया जिसने कहा कि अब हम डॉन या माफिया को पार्टी में शामिल नहीं करेंगे. 

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