UP Vidhansabha Chunav 2022: चंदौसी सीट पर बीजेपी बरकरार रख पाएगी अपना कब्जा या दौड़ेगी बाइसिकल?
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UP Vidhansabha Chunav 2022: चंदौसी सीट पर बीजेपी बरकरार रख पाएगी अपना कब्जा या दौड़ेगी बाइसिकल?

2017 के विधानसभा चुनाव में समीकरण बदला और सीट भाजपा के खाते में आ गई. भाजपा प्रत्याशी गुलाब देवी ने 104806 वोट के साथ जीती थीं. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार विमलेश कुमारी को करारी शिकस्त दी थी.

फाइल फोटो.

संभल: उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav 2022) होने वाले हैं. इसके लिए तैयारियां जोरों-शोरों से हो रही है. सभी पार्टियों ने  कमर कस ली है और वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुट गए हैं. ऐसे में जनता को भी विधानसभा सीटों का समीकरण समझना जरूरी है. आज हम बात करेंगे यूपी के ऐतिहासिक जिले संभल के चंदौसी सीट की. तो आइये जानते हैं चंदौसी सीट का राजनीतिक इतिहास, पिछले चुनावों का रिजल्ट समेत अन्य कई जानकारियां....

वर्तमान में इस सीट पर बीजेपी का है कब्जा
राजनीतिक दृष्टि से संभल जिला और इसकी सीटें दोनों काफी महत्वपूर्ण हैं. संभल में विधानसभा की चार सीटे हैं. वर्तमान में इन चार सीटों में से दो सीटों पर समाजवादी पार्टी के विधायकों का कब्जा है, जबकि दो सीट पर बीजेपी का. इनमें से एक सीट है चंदौसी. चंदौसी उत्तर प्रदेश विधानसभा का निर्वाचन क्षेत्र संख्या 31 है. यहां वर्तमान में गुलाब देवी विधायक की कुर्सी पर विराजमान हैं. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में बाजी किसकी तरफ पलटेगी ये कहना बेहद मुश्किल है. हालांकि, दावेदारी पेश करने के लिए पार्टियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. 

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वोटर्स की संख्या
साल 2017 के आंकड़ों के अनुसार, इस विधानसभा सीट पर कुल 3,15,211 रजिस्टर्ड वोटर्स हैं. इसमें 1,75,743 पुरुष और 1,39,448 महिला मतदाता हैं. 

क्या है जातीय समीकरण?
अगर इस सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यूं तो संभल जिले में बहुसंख्यक जाति यादव है. हालांकि, चंदौसी सीट पर सबसे ज्यादा दलित वोटर्स हैं. उसके बाद मुस्लिम मतदाता हैं. अगर इन दोनों को जोड़ा जाए तो कुल वोटर्स का 50% दलित और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है. जबकि इस सीट पर सवर्ण वोट निर्णायक भूमिका में रहता है. बता दें कि यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.  

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क्या है राजनीतिक इतिहास?
चंदौसी विधानसभा के अलग अस्तित्व में आने के बाद सन् 1962 में कुंवर नरेंद्र सिंह निर्दलीय विधायक बने. लेकिन इसके बाद 1967 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से रानी इंद्रा मोहानी पहली महिला विधायक बनीं. इसके बाद 1969 में भी उन्हीं ने सीट संभाली.  बता दें कि भाजपा 5 बार, कांग्रेस 4 बार और सपा 2 बार ये सीट जीत चुकी है, जबकि बसपा केवल 1 एक बार इस सीट पर कब्जा कर पाई है. ऐसे में इस बार ये सीट किसके खाते में जाएगी, ये देखना दिलचस्प होगा.  

विधायक की कुर्सी पर विराजमान रहे हैं ये नेता 

1962: नरेंद्र सिंह, निर्दलीय
1967: इंद्र मोहानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1969: इंद्र मोहानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1974: देवी सिंह, भारतीय क्रांति दल
1977: कर्ण सिंह, जनता पार्टी
1980: जीराज सिंह मोरिया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 
1985: फूल कुंवर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1989: कर्ण सिंह, भारतीय जनता पार्टी
1991: गुलाब देवी, भारतीय जनता पार्टी
1993: कर्ण सिंह, समाजवादी पार्टी
1996: गुलाब देवी, भारतीय जनता पार्टी
2002: गुलाब देवी, भारतीय जनता पार्टी
2007: गिरीश चंद्र, बहुजन समाज पार्टी
2012: लक्ष्मी गौतम, समाजवादी पार्टी
2017: गुलाब देवी, भारतीय जनता पार्टी

पिछले दो विधानसभा चुनावों का परिणाम
सोलहवीं विधानसभा चुनाव यानी साल 2012 में सपा कैंडिडेट लक्ष्मी गौतम ने 55,871 वोट लेकर जीत हासिल की थी. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी गुलाब देवी को 4007 वोट से हराया था, जिन्हें 51,864 मत मिले थे. तीसरे स्थान पर बसपा के गिरीश चंद्र थे. जबकि चौथे नंबर पर कांग्रेस के सतीश प्रेमी थे. 

जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में समीकरण बदला और सीट भाजपा के खाते में आ गई. भाजपा प्रत्याशी गुलाब देवी ने 104806 वोट के साथ जीती थीं. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार विमलेश कुमारी को करारी शिकस्त दी थी. विमलेश को कुल 59337 वोट मिले थे. वहीं, तीसरे स्थान पर बसपा से विरमावती थी और चौथे नंबर पर महान दल की ज्योतसना थीं.

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क्या थी जीत की वजह 
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का गठबंधन हुआ. लोगों ने कांग्रेस और सपा का गठबंधन होने के बाद ताकत दोगुनी होने का अंदाजा लगाया. लेकिन असलियत में कांग्रेस प्रत्याशी को इससे नुकसान पहुंचा. दरअसल, अंदर ही अंदर सपाई  विमलेश कुमारी से असंतुष्ट थे. हालांकि, कई पुराने सपा नेता बाहरी तौर पर दिखावे के लिए उनका साथ दे रहे थे, लेकिन अंदर से उनका विरोध जारी था. वहीं, कुछ सपाइयों का मानना था कि कांग्रेस प्रत्याशी विमलेश कुमारी का ओवर कॉन्फिडेंस उनकी हार का कारण बना. इसका सीधा फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिला. जीत का अंतर भी काफी ज्यादा था. गुलाब देवी ने विमलेश कुमारी को 45410 वोटों से हराया था.

कौन हैं गुलाब देवी?
विधानसभा क्षेत्र के गठन से लेकर अब तक रानी इंद्रा मोहानी के बाद गुलाब देवी दूसरी महिला हैं, जिन्होंने चंदौसी का प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने 1991 में पहली बार चुनाव लड़ा था. वह चार बार चंदौसी की विधायक रह चुकी हैं. गुलाब देवी चन्दौसी की स्थानीय निवासी हैं. उन्होंने जिले से ही बीए और एसएम कॉलेज से एमए की डिग्री हासिल की. यहीं से बीएड भी किया. साल 1989 और 1990 में सभासद का चुनाव लड़ा और जीतीं. इसके बाद उनका राजनैतिक करियर परवान चढ़ा. 

साल 1991 में पहली बार चुनाव भाजपा के टिकट पर गुलाब देवी ने चुनाव लड़ा तो जनता दल के यादराम को छह हजार दौ सौ छप्पन वोटों से हराया. वर्ष 1993 में हुए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 1996 में गुलाब देवी ने फिर इस सीट से जीत हासिल की और बसपा से चुनाव लड़े करन सिंह को हराया. इसी वर्ष वह महिला कल्याण एवं बाल विकास पुष्टाहार राज्यमंत्री बनीं. कहते हैं गुलाब देवी के रिश्ते भाजपा से ज्यादा आरएसएस से है. भाजपा नेता राजनाथ सिंह, केसरी नाथ त्रिपाठी, कल्याण सिंह, लालजी टंडन से भी उनके अच्छे रिश्ते हैं. इस समय गुलाब देवी यूपी सरकार की माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री हैं. 

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