Aligarh Iglas Ki Chamcham: अलीगढ़ के कई कस्बे अलग-अलग स्वाद व नाम के लिए भी प्रसिद्ध हैं. इगलास कस्बे की पहचान चमचम से है. यहां के चमचम के स्वाद के दीवाने देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी हैं. जानिए इसकी खासियत के बारे में.
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प्रमोद कुमार/अलीगढ़: ब्रज के लोग चटोरा नाम से फेमस हैं. यहां के लोग जितना चटपटा खाना पसंद करते हैं, उतना मीठा भी. लोग स्वाद के तो दीवाने हैं. इसी स्वाद के दीवाने अब दूसरे जिलों के ही नहीं बल्कि देश विदेश के लोग भी हैं. देश विदेश के लोगों की डिमांड बन चुकी है. इगलास की रसगुल्ला नुमा चमचम. विदेश से लोग ऑनलाइन के जरिये चमचम को यहां से मंगाते हैं.
अलीगढ़ के कई शहर अलग-अलग स्वाद व नाम के लिए भी प्रसिद्ध हैं. इगलास कस्बे की पहचान चमचम से है. कस्बे में आपको प्रवेश करते ही चमचम की तमाम दुकानें नजर आएंगी. किसी के यहां जाने पर स्वागत में चमचम ही दी जाएंगी. खास बात यह भी है मेहमानों को तो सुबह के नाश्ते में चमचम ही दी जाती हैं.
लोगों ने बताया कि बिना चमचम के सत्कार अधूरा महसूस होता है. यह मिठाई और मिठाईयों से कुछ अलग है. जिसकी चर्चा दूर-दूर तक है, स्वाद ऐसा कि आप कहने लगेंगे वाह मजा आ गया. ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो यहां से गुजरे और चमचम न लेकर अपने घर जाए. क्षेत्र के लोगों की रिस्तेदारियों में चमचम की विशेष डिमांड भी होती है. रिस्तेदारों का एक ही कहना होता है कि हमारे यहां आना तो चमचम अवश्य लेकर आना.
इगलास की चमचम को GI टैग देने की मांग
देश के प्रसिद्ध कवि अशोक चक्रधर ने तो कटोरदान में इगलास की चमचम कविता तक लिखी है. अलीगढ़ को अब ताला तालीम के साथ-साथ चमचम के नाम से भी जाना जाता है, प्रसिद्धी के कारण सरकार ने इगलास की चमचम को GI टैग देने की बात कही है.
79 वर्ष पूर्व रघ्घा सेठ ने बनाई थी चमचम
चमचम नाम की इस मिठाई का निर्माण सबसे पहले यहां के प्रसिद्ध हलवाई स्व. लाला रघुवरदयाल उर्फ रघ्घा सेठ ने सन 1944 में किया था. उस समय चमचम दो पैसे की एक मिलती थी, आज 240 रुपये प्रति किलो हिसाब से मिलती है. एक चमचम लगभग 12 रुपए की ग्राहक को पड़ती है. कस्बे में लगभग पचास से अधिक चमचम की दुकान हैं.
कैसे तैयार हुई चमचम और क्यों बनी खास
चमचम शुद्ध दूध से निर्मित यहां की प्रसिद्ध मिठाई है. वैसे तो यह चमचम इगलास के अलावा अन्य कहीं नहीं मिलती. यदि मिलती भी है तो इगलास की प्रसिद्ध चमचम के नाम से. इसको बनाने के लिए दूध को खट्टा से फाड़कर पहले छेना तैयार किया जाता है. छैना के गोले तैयार किए जाते है, फिर इन गोलों को सीधे चीनी की चासनी में सेका जाता है. चमचम को ब्राउन कलर की होने तक सेकते हैं. चमचम में घी या रिफाइंड का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता.
कारोबारी ने जानकारी देते हुए बताया है कि हमारे यहां तीसरी पीढ़ी चमचम बेच रही है, 1947 में हमारे दादाजी ने चमचम बनानी शुरू की थी, चमचम को दूध फाड़कर गोली बनाकर चाशनी में सेंका जाता है, इसकी देश विदेश में बहुत डिमांड है एक किलो में 20 पीस होते हैं, सरकार द्वारा चमचम को जीआई टैग देने की संभावना है.
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