Mahila Aarakshan bill : आखिरकार 27 साल एक बार फिर महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कर दिया गया है. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी इसे मास्टर स्ट्रोक मान रही है. इस मुद्दे पर सियासत भी तेज हो गई है. आइए जानते हैं महिला आरक्षण विधेयक में अब तक क्या-क्या हुआ.
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Women Reservation Bill: महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया गया है. इसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है. मंगलवार को पीएम मोदी ने कहा यह नारी सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है. उन्होंने राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि दलगत सोच से ऊपर उठने का समय है. सोमवार शाम केंद्रीय कैबिनेट (cabinet meeting) की मीटिंग भी हुई. बताया जा रहा है कि मोदी कैबिनेट (Modi cabinet) ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी है. यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ है. कैबिनेट का फैसला सार्वजनिक तो नहीं हुआ है लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी, हालांकि बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया. माना जा रहा है कि सरकार विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर सकती है. कुछ दिन पहले ही कांग्रेस की हैदराबाद में आयोजित कार्यसमिति में महिला आरक्षण विधेयक लागू किए जाने की मांग की गई थी.
महिला आरक्षण विधेयक के इतिहास पर एक नजर
एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था.
बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.
सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण विधेयक को बताया अपना
इस बीच कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने मंगलवार को कहा कि बड़ा बयान देते हुए इसे अपना बताया. उन्होंने कहा महिला आरक्षण विधेयक हमारा ही है. दरअसल यूपीए सरकार 2010 में राज्यसभा में इसे पारित कराने में सफल रही थी लेकिन यह विधेयक लोकसभा (Lok sabha) में लटक गया. अटल सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा. वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुई.
यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था.
यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं. साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया. लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है.
अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश करना पड़ेगा. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा. अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा. इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी.
मायावती ने किया समर्थन
महिला आरक्षण विधेयक को लेकर सियासी सुगबुगाहट के बीच बीएसपी मायावती (Maywati) ने इसका समर्थन किया. हालांकि उन्होंने मांग की है कि एससी,एसटी और ओबीसी वर्ग की महिलाओं का कोटा अलग से सुरक्षित किया जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो इन वर्गों के साथ नाइंसाफी होगी.
उत्तराखंड बीजेपी (Uttarakhand BJP) ने लोकसभा में 33 फीसदी फीसदी आरक्षण की मंजूरी मिलने पर महिलाओं ने जताई है.भाजपा महिला प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष आशा नौटियाल ने कहा है कि इससे राजनीतिक तौर पर महिलाएं मजबूत होंगी.
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