World Environment Day 2023 : भारतीयों को आने वाले वर्षों में मौसम में हो रहे बदलावों और तापमान में हो रही बढ़ोतरी की वजह से बीमारियों को नए सिरे से समझना होगा. फसलों को बोने के नए मौसम समझने होंगे और ज्यादा मौतों और बड़े आर्थिक नुकसान के लिए तैयार रहना होगा.
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पूजा मक्कड़/नई दिल्ली : अगर आप एक मिडिल क्लास परिवार से हैं तो मेरा आपसे एक सवाल है आपके घर में कितने एयर कंडीशनर यानी एसी हैं. हो सकता है आपका जवाब एक से ज्यादा एसी हो.
वहीं, अगर आप उत्तर भारत में रहते हैं तो आपने पिछले महीने मई की बारिश और मैदानों में पहाड़ों वाले मौसम का मजा जरूर लिया होगा.
इन दोनों बातों में आपको कोई लिंक नजर नहीं आता होगा ,लेकिन आपके एसी से बाहर निकलने वाली गर्म हवाएं तापमान बढ़ाने में मदद कर रही हैं. जलवायु परिवर्तन का ये एक छोटा सा... लेकिन अहम कारण है. इसी तरह पल पल बदल रहा मौसम फसलों और इंसान दोनों की सेहत बिगाड रहा है ये जलवायु परिवर्तन का परिणाम है.
भारतीयों को आने वाले वर्षों में मौसम में हो रहे बदलावों और तापमान में हो रही बढ़ोतरी की वजह से बीमारियों को नए सिरे से समझना होगा. फसलों को बोने के नए मौसम समझने होंगे और ज्यादा मौतों और बड़े आर्थिक नुकसान के लिए तैयार रहना होगा.
लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोब का उत्तरी हिस्सा जहां दुनिया की कुल 14% आबादी ही रहती है वो हिस्सा धरती के 92% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, जबकि भारत जो कि दक्षिणी हिस्सा है अभी भी कार्बन उत्सर्जन के मामले में सीमा के अंदर ही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत सबसे कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में शामिल है. इसके बावजूद क्लाइमेट चेंज का सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाले देशों में भारत होगा.
22 मई को यूनाइटेड नेशन्स ने आंकड़े जारी किए कि भारत में मौसम में हो रहे अचानक बदलाव यानी extreme weather events की वजह से पिछले 5 दशकों में 600 प्राकृतिक आपदाएं आई जिसकी वजह से भारत में 1 लाख 38 हजार 377 लोग मारे गए. यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान दुनिया भर में प्राकृतिक आपदा की वजह से कुल जितनी मौतें हुई उनमें से 90% विकासशील देशों में हुई है.
इंसान के अस्तित्व और धरती की सेहत के लिए आठ सीमाएं तय की गई हैं. जर्नल नेचर में छपी लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक हम वो सभी आठ सीमाओं को पार कर चुके हैं. यानी पर्यावरण के हर पहलू की लक्ष्मण रेखा लांघी जा चुकी है. (The Earth commission ) द अर्थ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक climate change की वजह से अब इंसान की जान पर खतरा मंडरा रहा है.
इस रिपोर्ट में आंकलन किया गया है कि अगर दुनिया का तापमान बढ़ता रहा, तो सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा. इस शोध के मुताबिक तापमान में 2.7 डिग्री की बढ़ोतरी का असर 60 करोड़ से ज्यादा भारतीयों पर पड़ेगा. औसत तापमान 29 डिग्री माना जाता है. इसमें अगर 1.5 डिग्री की बढ़त हो तो बुरे असर 6 गुना कम होंगे, लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा. दुनिया में अगर तापमान की औसत बढ़त 1 डिग्री सेल्सियस है तो भारत में ये 1.2 डिग्री सेल्सियस मापी गई है. आने वाले समय में इस वजह से 9 करोड़ भारतीय बढ़ती गर्मी और लू का प्रकोप झेलने को मजबूर होंगे. अनुमान है कि हर 0.1 डिग्री तापमन बढ़ने के साथ 14 करोड़ लोग भीषण गर्मी की चपेट में आएंगे. फिलहाल दुनिया भर के छह करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे हैं, जहां औसत तापमान 29 डिग्री से ऊपर है.
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन ने अनुमान लगाया था कि अब से 2022 से 2027 यानी पांच वर्षों के बीच धरती का तापमान 19वीं सदी के मध्य की तुलना में 1.5 डिग्री से ज्यादा पर बढ़ जाएगा. एक अनुमान ये भी है कि अगर धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो 15 फीसदी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. धरती जैसे ही 2.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म होगी, तो 30 फीसदी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी.
दरअसल भारत उन देशों में है जो अब तेजी से विकास की राह पर हैं. तेजी से हो रहा निर्माण और इंडस्ट्री बनाए जाने का ही नतीजा है कि तापमान तेज़ी से बढ़ रहे हैं. 2023 की शुरुआत से अब तक मौसम कुछ ऐसा रहा है कि फरवरी यानी सर्दी के महीने में दिल्ली से लेकर मध्यभारत यानी गुजरात तक हीट वेव का अलर्ट जारी किया गया. 2023 की फरवरी 1877 के बाद सबसे गर्म रही, जबकि इस वर्ष मई यानी गर्मी के मौसम में बारिश ने रिकॉर्ड तोड़ा. देश के सबसे गर्म राज्य राजस्थान में बारिश ने 100 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा. 7 बार वेस्टर्न डिस्टरबेंस की वजह मौसम अचानक पलटा. मई के महीने में राजस्थान में 62 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड हुई, लेकिन बिना चेतावनी अचानक आए आंधी तूफान और ताबड़तोड़ बारिश की वजह से 20 लोगों की मौत हो गई. हालांकि ये मौसम की मार से हुई मौतें हैं. फिलहाल लोग इन परिणामों से बेखबर मौसम के बदलते मिज़ाज से तालमेल ही बिठा रहे हैं.
मौसम का ये सुहाना अंदाज कुछ दिन का ही है. जून का महीना आने तक केवल पंखे से उत्तरभारत में लोगों का गुजारा चल रहा है लेकिन औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है. Lancet की रिपोर्ट के मुताबिक गर्मी की वजह से भारत में वर्ष 2000 के मुकाबले 2021 में 55% ज्यादा मौते हुई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अकेले 2020 में 3 लाख 30 हजार लोग भारत में प्रदूषण और Fossil Fuel यानी गैसों के उत्सर्जन के शिकार होकर मारे गए.
मौसम में हो रहे लगातार बदलाव की वजह से सीजनल फ्लू समेत कई इंफेक्शऩस और वायरस की मार साल भर झेलनी पड़ सकती है. हो सकता है कि मौसमी बुखार का कोई मौसम ही ना रहे, जैसे इस साल की शुरुआत में उत्तर भारत में लोगों ने दो हफ्ते से लेकर दो महीने तक खांसी जुकाम और बुखार को झेला जबकि मौसमी बुखार आमतौर पर एक हफ्ते ही टिक पाता है.
(The Earth commission ) द अर्थ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक climate change की वजह से पूरी दुनिया में बीमारियों का खतरा बढ जाएगा. भारत भी उन देशों में शामिल हैं जहां गर्मी, मलेरिया और दूसरी वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा. इस अनुमान को रिपोर्ट में पूरी दुनिया के मैप से दिखाया गया है, जहां जितना गहरा रंग नज़र आ रहा है.... वहां खतरा उतना बड़ा है.
पर्यावरणविद् राजेश सोलोमन पॉल के मुताबिक भारत कार्बन उत्सर्जन कम करने पर काम कर रहा है. पूरी दुनिया में कार्बन एक्सचेंज पर काम चल रहा है. मसलन अगर आपको पेड़ काटने पड़ रहे हैं और आप इंडस्ट्री लगा रहे हैं तो या तो आप किसी दूसरी जगह पर कई गुना ज्यादा पेड़ उगाएं या फिर किसी दूसरे देश या राज्य में पेड़ों की कटाई को रोकें.
गेहूं, मक्का और धान भारत में उगाई जाने वाली तीन बड़ी फसले हैं. गेहूं 29 डिग्री से ज्यादा का तापमान नहीं झेल पाती. लेकिन अब जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से ऐसी गेहूं बनाने की कोशिश की जा रही है जो तेज गर्म मौसम को झेल पाए. ऐसे प्रयोग कई फसलों को लेकर हो रहे हैं. जिससे आर्थिक नुकसान भी कम हो और खाने पीने की कमी भी ना हो.
जलवायु परिवर्तन अब सेमिनार में चर्चा का विषय नहीं रहा हमारे और आपके जीवन में प्रवेश कर चुका है. आप अपनी गाड़ी का इंजन रेड लाइट पर बंद करके, घर में बिजली की बचत करके अपना छोटा सा योगदान देकर तापमान कम करने में मदद कर सकते हैं.