राधारानी की ननिहाल में निभाई गई सदियों पुरानी परंपरा, जलते दीपों की रोशनी में हुआ चरकुला नृत्य
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राधारानी की ननिहाल में निभाई गई सदियों पुरानी परंपरा, जलते दीपों की रोशनी में हुआ चरकुला नृत्य

राधाजी की नानी मुखरा देवी के नाम पर बसे गांव मुखराई में द्वापर युगीन चरकुला नृत्य की अनूठी और कलात्मक परंपरा का निर्वहन, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच दर्जनों महिलाओं ने सिर पर बजनी थाल रखकर किया....108 दीपों के साथ चरकुला नृत्य कर मनमोहिक प्रस्तुतियां दी गईं.

राधारानी की ननिहाल में निभाई गई सदियों पुरानी परंपरा, जलते दीपों की रोशनी में हुआ चरकुला नृत्य

कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा: राधारानी के ननिहाल गांव मुखराई से शुरू हुआ चरकुला नृत्य अब ब्रज की होली का हिस्सा बन चुका है. ब्रज में जहां भी होली महोत्सव का आयोजन होता है, वहां चरकुला नृत्य का आयोजन देखने को मिलता है. चरकुला नृत्य के बिना होली का कार्यक्रम अधूरा सा दिखाई देता है. ग्रामीण महिलाओं ने चरकुला नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी. इस कार्यक्रम में देशी-विदेशी भक्तों की भीड़ जुटी.

राधाजी की नानी मुखरा देवी के नाम पर बसे गांव मुखराई में द्वापर युगीन चरकुला नृत्य की अनूठी और कलात्मक परंपरा का निर्वहन, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच दर्जनों महिलाओं ने सिर पर बजनी थाल रखकर किया. जिसके चलते 108 दीपों के साथ चरकुला नृत्य कर मनमोहिक प्रस्तुतियां दी गईं.

मृदंग की थाप पर हुंरगा का आयोजन
ढप,ढोल,मृदंग की थाप पर हुरंगा का आगाज हुआ और हुरयारों ने लोकगीतों की बोछार की तो सजी-संवरी हुरयारिनों ने हुरयारों पर प्रेम पगी लाठियां बरसाईं. हुरियारों ने लोक गीत युग-जुग जीयो नांचन हारी, नांचन हारी पै दो-दो हुंजो, एक मुकदम दूजौ पटवारी आदि समाज गायनों की प्रस्तुति दी तो देशी-विदेशी भक्तों ने जमकर ठुमके लगाए।

मुखराई गांव में शनिवार को चरकुला नृत्य और ब्रज की कलाओं से ओत-प्रोत दर्जनों सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कलाकारों की मनमोहिक प्रस्तुतियां हुईं जिसको देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए.

यह है पौराणिक मान्यता
ऐसी मान्यता है कि राधारानी की ननिहाल गांव मुखराई में मुखरादेवी ने राधाजी के जन्म की खबर सुनी तो खुशी में रथ के पहिया को उठा कर नृत्य किया.  द्वापर युगीन की अनूठी और कलात्मक परंपरा चरकुला नृत्य का निर्वहन मुखराई गांव के ग्रामीणों द्वारा प्रतिवर्ष की भांति वर्षों से होली पर्व के दौज पर चरकुला नृत्य का आयोजन किया जाता है. 

ब्रज लोककला फाउण्डेशन के अध्यक्ष दानी शार्मा, सचिव पंकज खण्डेलवाल ने बताया कि चरकुला नृत्य ने जापान, इण्डोसिया, रूस, चीन, सिंगापुर, आस्टेलिया आदि देशों में अपनी शाख जमाई है. अतिथियों का दानी शर्मा ने पट्का व स्मृति चिन्ह भेंटकर स्वागत किया.

प्यारेलाल ने दिया चरकुला नृत्य को नया रूप
देवीराम शर्मा ने बताया कि चरकुला नृत्य का सामान मथुरा संग्राहलय में जमा होने के बाद सन् 1845 में गांव के प्यारेलाल बाबा ने चरकुला नृत्य को नया रूप दिया. उन्होंने लकड़ी का घेरा, लोह की थाल एंव लोह की पत्ती और मिट्टी के 108 दीपक रख 5 मंजिला चरकुला बनाया था. चरकुला नृत्य रामादेई और छीतो देवी ने 108 जलते दीपकों के साथ चरकुला को सिर पर रख मदन मोहन जी मन्दिर के निकट चैक में नृत्य किया था. सन् 1930 से 1980 तक लक्ष्मी देवी और असर्फी देवी ने किया. चरकुला नृत्य राधाजी के जन्म से शुरू हुआ था.

इन महिलाओं ने दी चरकुला नृत्य की प्रस्तुति 
मुखराई गांव के चरकुला नृत्य में तोतीदेवी, जयदेवी, उर्मिलादेवी, शांती देवी, जमुना देवी प्रभा देवी आदि महिलाओं ने नृत्य किया। ग्रामीण व बृज लोक कला फाउण्डेशन के निदेशक दानी शर्मा व पंकज खण्डेलवाल के कलाकारों की अहम भूमिका रही.

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