सपा की साइकिल पर सवार हुई BJP की यह महिला विधायक, पति तय करते हैं राजनीतिक दिशा
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सपा की साइकिल पर सवार हुई BJP की यह महिला विधायक, पति तय करते हैं राजनीतिक दिशा

माधुरी वर्मा की छवि दलबदलू नेत्री की रही है. वह 2010 से 2012 तक पहली बार बहराइच श्रावस्ती क्षेत्र से बसपा समर्थित उम्मीदवार के रूप में विधानपरिषद सदस्य निर्वाचित हुई थीं. माधुरी वर्मा 2012 में कांग्रेस के टिकट पर नानपारा सीट से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं थीं. 

सांकेतिक तस्वीर.

बहराइच: बहराइच जिले की नानपारा विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की विधायक माधुरी वर्मा ने सोमवार को समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया.  राजधानी लखनऊ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलवाई. माधुरी वर्मा की छवि दलबदलू नेत्री की रही है. वह 2010 से 2012 तक पहली बार बहराइच श्रावस्ती क्षेत्र से बसपा समर्थित उम्मीदवार के रूप में विधानपरिषद सदस्य निर्वाचित हुई थीं. माधुरी वर्मा 2012 में कांग्रेस के टिकट पर नानपारा सीट से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं थीं. 

फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा और लगातार दूसरी बार नानपारा सीट से विधानसभा पहुंचीं. माधुरी वर्मा के पति और पूर्व विधायक दिलीप वर्मा की बीते साल मई में 14 साल बाद समाजवादी पार्टी में वापसी हुई थी. इधर माधुरी वर्मा लगातार पार्टी लाइन का उल्लंघन कर रही थीं. तबसे ही इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि वह भी देर सबेर समाजवादी पार्टी में जा सकती हैं. कहा जा रहा है कि आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में सपा माधुरी वर्मा को नानपारा सीट से टिकट दे सकती है.

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नानपारा विधानसभा सीट की बात करें तो यहां 40 फीसदी मुस्लिम, 33 फीसदी ओबीसी, 14 फीसदी सवर्ण और 12 फीसदी दलित मतदाता है. माधुरी वर्मा की बगावत के चलते इस बात की पूरी उम्मीद थी कि भाजपा इस बार नानपारा सीट से अपना उम्मीदवार बदलती. माधुरी वर्मा को लेकर कहा जाता है कि इनकी राजनीतिक दिशा और दशा दिलीप वर्मा ही तय करते हैं. माधुरी वर्मा को अपने पति दिलीप वर्मा की विवादित कार्यशैली के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा था, जिसके बाद उन्होंने बगावती तेवर अख्तियार कर लिए. विधायक माधुरी वर्मा जनसंख्या नियंत्रण के प्रस्तावित मसौदे के दौरान भी सुर्खियों में रही थीं. इनके खुद के सात बच्चे हैं.

दिलीप वर्मा की बात करें तो उनका विवादों से पुराना नाता रहा है. वर्ष 2005-06 में रामगांव थाना में तैनात एक आरक्षी की पिटाई के मामले में वह जेल की सजा भी काट चुके हैं. न्यायालय ने उन्हें सजा दी थी. वह लंबे समय तक जेल में बंद रहे थे. दिलीप वर्मा ने 16 नवम्बर 2018 को नानपारा में दलित तहसीलदार मधुसूदन आर्य को उनके चैम्बर में थप्पड़ जड़ दिया था. जब मामले ने तूल पकड़ा तो नानपारा कोतवाली में मौजूद एडीएम और एडिशनल एसपी के सामने ही उन्होंने सीओ पर भी हाथ उठा दिए थे. इन घटनाओं को लेकर दिलीप वर्मा के खिलाफ मामला दर्ज हुआ और उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

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दिलीप वर्मा साल 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर महसी विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए थे. वर्ष 1996 में सपा के टिकट पर दोबारा विधायक चुने गए. साल 2002 में सपा के ही टिकट पर महसी सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हर गए. साल 2003 में महसी से बसपा विधायक अली बहादुर की मौत के बाद 2004 में मध्यावधि चुनाव हुआ. सपा ने दिलीप वर्मा को फिर टिकट दिया और वह विधायक चुने गए. साल 2007 में बेनी प्रसाद वर्मा ने सपा से अलग होकर खुद की समाजवादी क्रांति दल बनाई. दिलीप वर्मा ने एसकेडी से चुनाव लड़ा और पराजित हुए.

बाद में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी का दाम थाम लिया. बसपा के टिकट पर अपनी पत्नी माधुरी वर्मा को एमएलसी निर्वाचित करवाया. इसी बीच आरक्षी के साथ मारपीट करने के मामले में न्यायालय से सजा मिलने के बाद चुनाव लड़ने से वह वंचित रह गए. वर्ष 2012 में पूर्व विधायक ने एमएलसी पत्नी माधुरी को कांग्रेस के टिकट पर नानपारा विधानसभा से चुनाव लड़वाया. वह जीतने में सफल रहीं. वर्ष 2017 में पूर्व विधायक भाजपा में चले गए और पत्नी माधुरी वर्मा को भाजपा से टिकट दिलवाकर विधायक बनवाया. दिलीप वर्मा ने जिला पंचायत चुनाव में भाजपा समर्थित उम्मीदवार के सामने अपनी पुत्री को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतार दिया. जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी मांगी, जिसके बाद भाजपा ने अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया.

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