इलाहाबाद विवि: प्रो. संगीता श्रीवास्तव पर फर्जी दस्तावेज के आधार पर कुलपति बनने का आरोप, कोर्ट ने VC से मांगा जवाब
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इलाहाबाद विवि: प्रो. संगीता श्रीवास्तव पर फर्जी दस्तावेज के आधार पर कुलपति बनने का आरोप, कोर्ट ने VC से मांगा जवाब

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही छात्र नेता अजय यादव सम्राट द्वारा दाखिल अर्जी में कहा गया है कि प्रो. संगीता श्रीवास्तव द्वारा कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए दी गई जानकारी गलत है. आरोप है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय कुलपति पद पर प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने आवेदन करते समय अपने आपको 1989 से प्रवक्ता बताया है.

फाइल फोटो.

मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय कि कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव एक बार फिर से विवादों में है. इस बार विवाद की वजह गलत तथ्यों और जानकारी छिपाकर कुलपति बनने की वजह सामने आ रही है. आरोप है कि उन्होंने गलत तथ्यों और जानकारियों को छुपाकर कुलपति पद पर नियुक्ति ली है. ऐसे में उनके खिलाफ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही छात्र नेता अजय यादव सम्राट ने जिला न्यायालय में 156 (3) के तहत एफआईआर दर्ज कराने की मांग को लेकर अर्जी दाखिल की है. कोर्ट ने छात्र नेता अजय यादव की अर्जी को स्वीकार करते हुए कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव को नोटिस जारी किया है. इसके साथ ही 4 मई तक उन्हे पक्ष रखने के लिए कहा है. 

कुलपति पर लगाए हैं ये आरोप 
अर्जी में कहा गया है कि प्रो. संगीता श्रीवास्तव द्वारा कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए दी गई जानकारी गलत है. आरोप है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय कुलपति पद पर प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने आवेदन करते समय अपने आपको 1989 से प्रवक्ता बताया है. जबकि याचिका में दाखिल तथ्यों के आधार पर उनका 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रवक्ता पद पर विनियमितीकरण हुआ है. 

प्रवक्ता के लिए डिफिल की उपाधि अनिवार्य होती है
याचिका में कहा गया है कि प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए डिफिल की उपाधि अनिवार्य होती है. जबकि संगीता श्रीवास्तव ने 1996 में डॉक्टरेट उपाधि हासिल की है. इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गृह विज्ञान में प्रवक्ता का पद जुलाई 2003 को यूपी के राज्यपाल द्वारा सृजित किया गया. विधिक व्यवस्था के अनुसार 2002 के पूर्व प्रवक्ता पद पर नियुक्ति भी असंभव है. साथ ही डॉक्टरेट की उपाधि के अनुसार 1989 में किसी विश्वविद्यालय में प्रवक्ता होने के लिए अर्ह ही नहीं थी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय कार्यपरिषद ने भी 4 मई 2002 को यह निर्णय लिया था वह प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए अर्ह नहीं रखती हैं.

याची की ओर से अर्जी में तमाम तथ्यों को रखा गया है, जिसको लेकर कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया है कि कुलपति द्वारा पद पर नियुक्ति के लिए दी गई जानकारी गलत है. उन्होंने तथ्यों को छुपा कर कुलपति पद हासिल किया है. ऐसे में उनका पक्ष जानने के लिए कोर्ट ने 4 मई की तारीख नियत की है. 

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