अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह खबर आपके लिए खास हो सकती है. यूपी में आज भी कई सारे ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं.
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चित्रकूट: अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह खबर आपके लिए खास हो सकती है. यूपी में आज भी कई सारे ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं. जिन्हें हर कोई जानना और पढ़ना चाहता है. यूपी के जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अपनी एक अलग विशेषता है, जो सभी जिलों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है.
लकड़ी के खिलौने बनाने का काम है सदियों पुराना
इसी क्रम में आज हम यूपी के चित्रकूट शहर के बारे में बात करेंगे. चित्रकूट शहर में लकड़ी अधिक मात्रा में पाई जाती है. ऐसे में इस शहर में लकड़ी के खिलौने काफी अधिक संख्या में बनाए जाते हैं. चित्रकुट में लकड़ी के खिलौने को बनाने का काम सदियों पुराना है. यहां के खिलौने प्रदेश के कई शहरों में मेले और प्रदर्शनियों के लिए भेजे जाते हैं. आज इस खबर में जानेंगे चित्रकूट के इस उद्योग से जुड़ी हर एक दिलचस्प बात...
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6 मई 1997 को हुआ था चित्रकूट जिले का गठन
चित्रकूट शहर का गठन बांदा जिले के कुछ भाग को काट कर 6 मई 1997 को किया गया था. पहले यह नगर छत्रपति शाहूजी नगर के नाम से जाना जाता था. इसके बाद 4 सितंबर 1998 को इस जनपद का नाम बदलकर चित्रकूट रखा गया. चित्रकूट अध्यात्म और पौराणिक, धार्मिक महत्ता का स्थल है. अयोध्या के महाराज राम अपनी राजधानी छोड़कर चित्रकूट में जाकर बस गये, इस अंचल में वही आता है, जो किसी विपदा का मारा होता है. कहा जाता है जिसपर आपत्ति आती है उसे चित्रकूट जाने पर शांति का एहसास होता
कुटीर उद्योग को प्रदेश सरकार ने दिया बढ़ावा
बता दें, धर्मनगरी चित्रकूट में लकड़ी के खिलौने बनाने के कुटीर उद्योग को प्रदेश सरकार ने बढ़ावा देने की घोषणा की थी. जिसके तहत इसे वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल किया गया था. इससे तमाम कारीगरों को उम्मीद की किरण नजर आने लगी. आजादी के समय से लकड़ी के खिलौने बनाने का कुटीर उद्योग फलफूल रहा था. पहले इसे सरकार द्वारा प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था. कई कारखाने भी बंद हो गए थे.
प्लास्टिक के खिलौने बाजार में आने से कारीगर थे परेशान
एक वक्त था जब प्लास्टिक के खिलौने और चाइनीज खिलौने बाजार में आ जाने से लकड़ी के कारोबार में खासा प्रभाव पड़ा था, लेकिन प्रदेश सरकार ने चित्रकूट जिले में लकड़ी के खिलौने बनाने के कारोबार को बढ़ावा दिया. यहां पर्यटन को भी मजबूत किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस शहर में आएं और लकड़ी के खिलौने खरीद सकें.
फर्नीचर बनाने का भी होता है काम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खिलौना उद्योग को लेकर सपना देखा है. जिसे साकार करने में लगातार सरकार काम कर रही है. चित्रकूट जनपद की काष्ठकला का देश भर में अपना अलग स्थान है. पारंपरिक शैली को आधुनिकता के रंग में सजाकर यहां के शिल्पकारों ने इस कला को नया आयाम दिया है. फर्नीचर से लेकर हर दिन प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का लकड़ी से निर्माण यहां किया जाता है. लकड़ी पर नक्काशी का एक नया रूप आपको यहां देखने को मिलेगा.
इस शहर में न सिर्फ खिलौने बल्कि घर बनाने में प्रयोग की जाने वाली सामग्री और दरवाजों व खिड़कियों की चौखट-बाजुएं यहां से अन्य शहरों में भी जाती हैं. वर्तमान में इस उद्योग में आधुनिक प्रौद्योगिकी का छोटे पैमाने पर प्रयोग होता है, क्योंकि यह उद्योग यहां पर पारम्परिक रूप से चला आ रहा है और कुटीर उद्योग के रूप में फैला है.
लकड़ी के खिलौना किसे नहीं पसंद, जब भी हम सभी मार्केट जाते हैं, तो पुरानी चीजों को खरीदना हमें ज्यादा पसंद आता है. लकड़ी के खिलौने सिर्फ चित्रकूट में नहीं बल्कि काशी, लखनऊ, कानपुर आदि जैसे कई शहरों में मिलते हैं. इस कारोबार को बढ़ावा देने के लिए देश के कई हिस्सों में मेले लगाए जाते हैं. ताकि अधिक से अधिक लोग लकड़ी के खिलौने के बारे में जान सके और इन्हें खरीदे.
वोकल फॉर लोकल के माध्यम से उद्यमियों को मिला मौका
साल 2021 में केंद्र सरकार खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए देश में पहली बार वोकल फॉर लोकल के माध्यम से 'इंडियन टॉय फेयर वर्चुअल मेले' का आयोजन का किया गया था. इस मेले का उद्देश्य भारतीय खिलौने को मार्केट में तैयार करना था. इस मेले में शामिल होने के लिए चित्रकूट से 18 शिल्पी और उद्यमियों को मौका मिला था. उन्होंने अपने लकड़ी के खिलौनों की प्रदर्शनी लगाई थी. जिससे उनके चेहरे पर काफी खुशी थी.
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