उपराष्ट्रपति ने जिस फैसले पर उठाए थे सवाल, CJI ने उसे 'धुव्र तारे' की तरह मार्गदर्शक बताया
Advertisement
trendingNow11539342

उपराष्ट्रपति ने जिस फैसले पर उठाए थे सवाल, CJI ने उसे 'धुव्र तारे' की तरह मार्गदर्शक बताया

CJI: चीफ जस्टिस  डी वाई चंद्रचूड़ का यह बयान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़  द्वारा हाल के दिनों में केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की तीखी आलोचना के बाद सामने आया है.

उपराष्ट्रपति ने जिस फैसले पर उठाए थे सवाल, CJI ने उसे 'धुव्र तारे' की तरह मार्गदर्शक बताया

CJI DY Chandrachud: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत ‘धुव्र तारे’ की तरह संविधान की व्याख्या और उसके अमल में हमारा मार्गदर्शन करता है. 1973 के केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच ने 7-6 के बहुमत से ये सिद्धांत दिया था. चीफ जस्टिस का यह बयान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़  द्वारा हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तीखी आलोचना के बाद सामने आया है.

क्या कहा था उपराष्ट्रपति ने?
पिछले दिनों अपने बयान में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने  ग़लत नजीर पेश की और अगर कोई ऑथोरिटी संविधान में संशोधन के संसद के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देती है तो फिर यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक देश में है.

चीफ जस्टिस ने फैसले को अभूतपूर्व बताया
बॉम्बे बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित 18 वें नानी पालकीवाला मेमोरियल लेक्चर में बोलते हुए चीफ जस्टिस ने इस फैसले को अभूतपूर्व करार देते हुए कहा कि एक जज की कुशलता इसी में ही है कि वह संविधान की मूल आत्मा को कायम रखते हुए बदलते वक्त के साथ संविधान की व्याख्या करें. संविधान की व्याख्या/ अमल करने के जटिल रास्ते में ये फैसला ‘धुव्र तारे’ की तरह मार्गदर्शन करता है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान के मूल ढांचे के अंतर्गत संविधान की सर्वोच्चता, क़ानून का शासन, शक्तियों का विभाजन, न्यायिक समीक्षा का अधिकार, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता,राष्ट्र की एकता- अखंडता और व्यक्ति विशेष की गरिमा आती है .

नानी पालकीवाला को किया याद
चीफ जस्टिस ने इस मौके पर केशवानंद भारती केस में 13 जजों की बेंच के सामने प्रमुखता से दलील रखने वाले वकील नानी पालकीवाला को याद किया. चीफ जस्टिस ने कहा कि समय-समय पर हमे नानी पालकीवाला जैसे न्यायविदों की ज़रूरत होती है, जो मुश्किल वक़्त में हमे रास्ता दिखाए. पालकीवाला ने हमे सिखाया कि संविधान की कुछ ऐसी खासियत हैं, जिन्हें बदला नहीं जा सकता.

क्या था केशवानंद भारती केस में फैसला
संविधान में संसद की असीमित शक्तियों पर लगाम लगाने वाला ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने केरल के संत केशवानंद भारती की याचिका पर साल 1973 में सुनाया था. 13 जजों की बेंच ने 7-6 के बहुमत से ये फैसला दिया था कि संसद, संविधान के मूल अधिकार समेत किसी भी हिस्से में संसोधन कर सकती है लेकिन संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता.  संविधान की सर्वोच्चता, देश की एकता अखंडता, धर्मनिरपेक्षता,न्यायपालिका की स्वतंत्रता, केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का बंटवारा आदि संविधान के मूल ढांचे के अन्तर्गत आते है.

संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत के आधार पर ही आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में सरकार की ओर से किए गए कई संसोधन को निरस्त किया. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिया लाया गया नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट को रद्द करने वाला फैसला भी इसी पर आधारित था.

पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की जरूरत नहीं

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news