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नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल (Viral Video) हो रहा है, जो दिल्ली के किसी चिड़ियाघर (Zoo) का बताया जा रहा है. वीडियो में चिड़ियाघर का सिक्योरिटी गार्ड भारी-भरकम हिप्पो (Hippo) को थप्पड़ मारता नजर आ रहा है. गार्ड हिप्पो को एक-दो नहीं बल्कि कई थप्पड़ मारता है और आसपास खड़े लोग ये देखकर हैरान रह जाते हैं. पहली नजर में यह बेजुबानों के प्रति क्रूरता का मामला नजर आता है, लेकिन हकीकत वो नहीं है, जो दिखाई दे रही है.
वीडियो कुछ दिन पुराना है, लेकिन अब एकदम से वायरल हो गया है. ये वीडियो Zoo में मौजूद एक शख्स ने बनाया है, जो गार्ड द्वारा हिप्पो को मारे जाने को लेकर हैरान है. हालांकि, न तो वो और न ही कोई दूसरा गार्ड को रोकने की कोशिश करता है. हिप्पो नाराज होता है, दर्द से चिल्लाता है लेकिन गार्ड उसे थप्पड़ मारना जारी रहता है. कुछ देर मार खाने के बाद हिप्पो वापस पानी में चला जाता है.
#Gravitas | A video from a zoo has gone viral.
It shows a security guard repeatedly slapping a hippo.
At first, the guard appears to be the villain of the story.
But is he really at fault here?@palkisu tells you more. pic.twitter.com/psoCyirWu3— WION (@WIONews) March 23, 2022
यहां तक देखने पर यह पशु क्रूरता का मामला नजर आता है, यानी हिप्पो विक्टिम है और गार्ड विलेन. लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. वीडियो में देखा जा सकता है कि हिप्पो अपने बाड़े से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है और आसपास बच्चों सहित कई लोग हैं. भले ही हिप्पो इंसानों को न खाता हो, वो हर्बीवोरस है, लेकिन उसका बाड़े से निकलकर इंसानों के बीच घूमना खतरनाक हो सकता था. अब इस लिहाज से देखें तो गार्ड ने जो कुछ किया, वो लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया.
हिप्पो कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ये भारी-भरकम जानवर अफ्रीका में हर साल 500 लोगों की मौत का कारण बनता है. आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि हिप्पो सबसे खतरनाक स्तनधारियों में शामिल है...निश्चित तौर पर इंसानों के बाद. हिप्पो का वजन 2000 किलो के आसपास होता है. संक्षिप्त में कहें तो गार्ड ने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाई. यदि हिप्पो अपने बाड़े से बाहर निकल जाता, तो कोई भी अनहोनी हो सकती थी.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी स्थिति आई ही क्यों? कौन इसके लिए जिम्मेदार है? इस कहानी में असली विलेन है Zoo. वैसे केवल यही Zoo नहीं, दुनियाभर के चिड़ियाघर बेजुबानों के साथ-साथ इंसानों की जान जोखिम में डाल रहे हैं. चिड़ियाघर के इतिहास की बात करें तो इसका ख्याल सबसे पहले 2500BC में आया. उस समय अमीर लोग जब अपनी यात्राओं पर जाते, तो वहां से जानवर लेकर आते. उन जानवरों को अपने घर में बंद रखते और उनकी देखभाल के लिए नौकर की नियुक्ति करते. बाद में ग्रीस, रूस और चीन में Zoo का चलन तेजी से जोर पकड़ने लगा, जहां वैज्ञानिक जानवरों के व्यवहार पर अध्ययन करने के लिए उन्हें कैद में रखते.
बाद में चिड़ियाघर वन्य प्राणियों के बारे में बच्चों को शिक्षित करने का जरिया बने और फिर ये तर्क दिया गया कि विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके जानवरों के लिए चिड़ियाघर जरूरी है, ताकि वो इंसानों के हाथों न मारे जाएं. लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है. Zoo में रखे जाने वाले केवल 18% जानवर ही विलुप्तप्राय की श्रेणी में हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो कम से कम 400 प्रजातियां चिड़ियाघरों में कैद हैं और उनमें से महज 700 विलुप्तप्राय हैं. तो फिर जानवरों को चिड़ियाघर में बंद रखने की क्या वजह है? इस सवाल का जवाब है पैसा. हर Zoo में एंट्री के लिए टिकट लगती है और हर रोज हजारों टिकट बेचीं जाती हैं. ऐसे में उनकी कमाई का अनुमान लगाया जा सकता है. महज पैसों के लिए बेजुबानों और इंसानों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है.
चिड़ियाघरों में वन्य प्राणियों और इंसानों के साथ हुई जानलेवा घटनाओं का अपना एक अलग इतिहास है. उदाहरण के तौर पर सैन फ्रांसिस्को के एक चिड़ियाघर में कुछ साल पहले कुछ युवाओं ने जब एक बाघिन को पत्थर मारकर परेशान किया, तो बाघिन इसका जवाब देने के लिए अपने बाड़े से बाहर आ गई. उसके हमले में दो युवकों की मौत हो गई और इसके बाद पुलिस ने बाघिन को भी मार गिराया. इसी तरह, 1987 में ब्रुकलिन ज़ू में पोलर बीयर के बड़े में एक युवक घुस गया. ऐसे में उसकी मौत स्वभाविक थी, लेकिन युवक की गलती का खामियाजा शांत समझे जाने वाले भालुओं के इस जोड़े को भी उठाना पड़ा. पुलिस ने दोनों को शूट कर दिया. बाद में सैन फ्रांसिस्को Zoo अथॉरिटी ने पाया कि बाघिन का बाड़ा पर्याप्त रूप से बड़ा नहीं था.
अब वापस वायरल वीडियो पर लौटते हैं. वीडियो में जिस चिड़ियाघर को दिखाया गया है, वहां हिपो के बाड़े में रैलिंग नदारद है. इसी मुद्दे को लेकर चर्चा होनी चाहिए, साथ ही इस पर भी कि आज चिड़ियाघरों का उद्देश्य क्या है? हमें आज शिक्षा के लिए Zoo की जरूरत नहीं है, क्योंकि टेक्नोलॉजी ने बेहतर विकल्प उपलब्ध कराये हैं. जहां तक वन्य प्रणालियों के संरक्षण का सवाल है तो करीब 40% शावक चिड़ियाघरों में एक महीने के होते-होते मर जाते हैं, जबकि जंगल में यह आंकड़ा काफी कम है. इसी तरह, चिड़ियाघरों में पैदा होने वाले अफ्रीकन हाथियों की उम्र औसतन 17 साल होती है, जबकि जंगल में रहने वाले हाथियों के उम्र इससे कहीं ज्यादा. कई जानवर चिड़ियाघरों में ट्रॉमा और शॉक के चलते मर जाते हैं. दिल्ली के चिड़ियाघर में ही 2020 में 30 वन्य प्रणालियों की मौत सदमे के चलते हुई. 2019 में यह संख्या 78 थी. तो फिर ये संरक्षण कैसे हुआ? असलियत यह है कि आज Zoo इंसानों और जानवर दोनों की जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. लिहाजा अब समय उन्हें बंद करने का है, इस बारे में विचार किया जाना चाहिए.