कोरोना वायरस महामारी से निजात पाने के लिए दुनियाभर में वैश्विक टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन वैज्ञानिकों को एक सवाल खटक रहा कि- यदि कोरोना कभी खत्म नहीं होता है तो क्या होगा. काफी रिसर्च के बाद इसका जवाब भी मिल गया है.
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नई दिल्ली: यदि कोरोना वायरस (Coronavirus) कभी खत्म नहीं होता है तो क्या होगा? विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी के कुछ रूप सालों तक बने रहेंगे लेकिन भविष्य में यह कैसा होगा, यह अभी लगभग अस्पष्ट है. दुनिया भर में पहले ही 20 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुके कोविड-19 का वैश्विक टीकाकरण अभियान के जरिए क्या चिकन पॉक्स (Chicken Pox) की भांति आखिरकार पूरा सफाया कर लिया जाएगा? या फिर यह वायरस हल्की परेशानी के रूप में अपने आपको तब्दील करके सर्दी-जुकाम की तरह लंबे समय तक बना रहेगा.
वायरस का अध्ययन करने वाले और पोलियो एवं HIV/AIDS से निपटने के भारत के प्रयास का हिस्सा रहे डॉ. जैकब जॉन (Dr. Jacob John) का अनुमान है कि सार्स-कोव-2 नाम से चर्चित यह वायरस उन कई अन्य संक्रामक रोगों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा जिसके साथ इंसान ने जीना सीख लिया है. लेकिन पक्के तौर पर किसी को कुछ पता नहीं है. यह वायरस तेजी से पनप रहा है और कई देशों में नए स्टेन भी सामने आ रही हैं.
इन नई किस्मों के जोखिम की बातें तब प्रमुख रूप से सामने आई थीं, जब नोवावैक्स इंक (Novavax Inc) ने पाया कि उसका टीका ब्रिटेन (Britain) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में सामने आई नई किस्मों पर कारगर साबित नहीं हुआ. जानकारों का मानना है कि यह वायरस जितना फैलेगा, उतनी ही ऐसी संभावना है कि नई किस्म वर्तमान जांच, इलाज और टीकों को छकाने में समर्थ हो जाएगी.
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लेकिन फिलहाल वैज्ञानिकों के बीच इस इमीडियेट प्रायोरिटी पर सहमति है कि जहां तक संभव हो लोगों को टीका लगाया जाए. अगला चरण कुछ कम पक्का है और काफी हद तक टीकों द्वारा पेड रेसिस्टिविटी और प्राकृतिक संक्रमण पर निर्भर करता है और यह भी कि वह कब तक रहता है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी में वायरस का अध्ययन करने वाले जेफ्री शमन ने कहा, 'क्या लोग थोड़े-थोड़े समय पर बार-बार संक्रमित हाने जा रहे हैं? हमारे पास यह जानने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं.'
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अन्य रिसर्चर्स की तरह उनका भी मानना है कि इस बात की बहुत ही कम संभावना है कि टीके से लाइफ टाइम रेसिस्टिविटी मिलेगी. तो क्या मानव को कोविड-19 के साथ रहना सीख लेना चाहिए. लेकिन उस सह अस्तित्व की प्रकृति बस इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि कब तक प्रतिरोधकता रहती है, बल्कि इस पर भी निर्भर करती है कि यह वायरस आगे पनपता कैसे है? क्या यह हर साल अपने आपमें बदलाव कर लेगा और फ्लू की भांति हर साल टीके की जरूरत होगी या कुछ सालों में टीके की जरूरत पड़ेगी?
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अब आगे क्या होता है, यह सवाल एमोरी यूनिवर्सिटी में विषाणुविद जेन्नी लेवाइन को भी आकर्षित करता है. हाल ही में विज्ञान में उनके सहलेखन से प्रकाशित हुए रिसर्च पेपर में रिलेटिविली आशावादी तस्वीर पेश की गई. जब ज्यादातर लोग इस वायरस के सम्मुख आ जाएंगे-- या टीकाकरण के जरिए या फिर संक्रमण से निजात पाने के बाद, तब यह संक्रमण जारी तो रहेगा लेकिन वह सर्दी-जुकाम की भांति बस मामूली रूप से बीमार करेगा.
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