PM मोदी की चाह थी संन्यासी बनूं या सोल्जर और कैसे भटकते-भटकते प्रधानमंत्री बन गए
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PM मोदी की चाह थी संन्यासी बनूं या सोल्जर और कैसे भटकते-भटकते प्रधानमंत्री बन गए

इस इंटरव्यू में पीएम मोदी ने अभिनेता अक्षय कुमार के साथ उनकी जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं पर चर्चा की. इंटरव्यू के दौरान अक्षय कुमार ने उनसे संन्यासी बनने या सेना में भर्ती होने पर सवाल किया. 

इस बातचीत में उन्होंने बताया कि कैसे वह PM बन गए. (फोटो साभार- @BJP4India)

नई दिल्ली: देश में लोकसभा चुनाव 2019 के तीन चरण का मतदान हो चुका है, चौथे चरण के चुनाव के लिए राजनेता लगे हुए हैं. लेकिन इन व्यस्तताओं बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभिनेता अक्षय कुमार को पहला गैरराजनीतिक इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में पीएम मोदी ने अभिनेता अक्षय कुमार के साथ उनकी जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं पर चर्चा की. इंटरव्यू के दौरान अक्षय कुमार ने उनसे संन्यासी बनने या सेना में भर्ती होने पर सवाल किया. 

क्या था सवाल
आप संन्यासी बनने या सेना में भर्ती होना चाहते थे, क्या आपने सोचा था, कि आप पीएम बनेंगे?  

पीएम मोदी ने ये दिया जवाब
अक्षय कुमार ने उनसे सवाल किया, क्या आप संन्यासी बनना चाहते थे, आप सेना में भर्ती होना चाहते थे? अक्षय कुमार के इस सवाल पर उन्होंने कहा कि अपने बिलकुल सही कहा, बचपन में मेरा स्वाभाव था किताबें पढ़ना, बड़े बड़े लोगों का जीवन पढ़ता था. कभी फौज वाले निकलते थे तो बच्चों की तरह खड़ा होकर उन्हें सेल्यूट करता था.

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इतने में साल 1962 की लड़ाई के दौरान मेहसाणा स्टेशन पर जब फौजी जवान जाते थे, तो लोग उनका सत्कार करते थे, तो मैं भी चला जाता था. उन्हें देखकर मेरे मन में हो गया कि ये देश के लिए जीने मरने वाला रास्ता है. उस दिशा में सोचता था.

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इतने में मैंने पढ़ा कि गुजरात में सैनिक स्कूल है. मैं भी उसमें भर्ती होना चाहता था. उसकी जानकारी 1-2 रुपये में मिलती थी, लेकिन अंग्रेजी नहीं आती तो हमारे मोहल्ले में एक प्रिंसिपल रास बिहारी मणिहार रहते थे, मैं उनके पास चला जाता था. मैं कभी भी बड़े आदमी से मिलने से संकोच नहीं करता था.

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बस यहीं मन था, तो मैं राम कृष्ण मिशन में चला गया. एक स्वामी आस्थामन जी हुआ करते थे. अभी उनका 100 वर्ष की आयु में निधन हुआ. सीएम बना तो मैंने उन्हें घर बुलाया. पीएम बनाने के बाद उनके यहां चला जाता था. वह मुझे बहुत प्यार करते थे, समझाते थे, जिंदगी क्या है, टिकना क्या है. राम कृष्ण मिशन आश्रम में कुछ समय रखते थे, विवेकानंद जी जिस कमरे में रहते थे, उस कमरे में घंटों तक बैठने का मौका देते थे. तो ये नए-नए अनुभव होने लगे. 

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हिमालय की दुनिया में चल पड़ा. बहुत भटका, दुनिया देखी और ये सब 18-22 साल में करता रहा. लेकिन कुछ कंफ्यूजन भी था, कुछ इरादे भी थे और कोई गाइडेंस नहीं मिल रहा था. लेकिन मन में सवाल खुद पैदा करता था और जवाब पैदा करता था. ऐसे भटकता भटका यहां पर आ पहुंचा. 

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