State of Palestine News: नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में क्यों दी मान्यता? इससे क्या फर्क पड़ेगा
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State of Palestine News: नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में क्यों दी मान्यता? इससे क्या फर्क पड़ेगा

State of Palestine News: आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है. तीनों यूरोपीय देश 28 मई से औपचारिक रूप से फलस्तीन को (देश) के रूप में मान्यता देंगे. आइए समझते हैं कि इन देशों ने फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में क्यों मान्यता दी है और इससे फलस्तीन की वर्तमान स्थिति पर क्या फर्क पड़ेगा.

 

State of Palestine News: नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में क्यों दी मान्यता? इससे क्या फर्क पड़ेगा

Palestinian state News: यूरोपीय देश नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने फलस्‍तीन को देश के तौर पर मान्यता देने की घोषणा की है. बुधवार 22 मई को नॉर्वे ने सबसे पहले इसकी घोषणा की. इसके तुरंत बाद आयरलैंड और स्पेन ने भी फलस्‍तीन को देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा की. तीनों देशों का यह निर्णय इसलिए भी अहम है क्योंकि यह पहली बार है कि किसी पश्चिमी यूरोपीय देश ने फलस्तीन को देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है. 

ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि देश का मतलब क्या है? फलस्तीन की वर्तमान स्थिति क्या है? दुनिया फलस्तीन को किस नजर से देखती है? तीनों यूरोपीय देशों के इस फैसले के क्या मायने हैं? किसी क्षेत्र को देश के रूप में मान्यता देने से क्या फर्क पड़ता है?

एक अलग देश के रूप में मान्यता मिलने का क्या मतलब है?

देशों के अधिकारों और कर्तव्यों पर हुए मोंटेवीडियो कन्वेंशन ने एक अलग देश के लिए चार मानक तय किए हैं. स्थायी जनसंख्या, परिभाषित क्षेत्रफल, वहां की सरकार और अन्य देशों के साथ संबंध बनाने की क्षमता. द कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू इंटरनेशनल लॉ के अनुसार, किसी क्षेत्र को देश का दर्जा देना लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय सिस्टम में केंद्रीय आयोजन का विचार रहा है.कई क्षेत्रों और लोगों ने वर्षों से खुद को स्वतंत्र देश घोषित करने की मांग की है. लेकिन उनकी औपचारिक मान्यता इस बात पर निर्भर करती है कि बाकी दुनिया उन्हें कैसे देखती है.

देशों को सदस्य के रूप में स्वीकार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के पास भी एक व्यापक मानदंड है. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता उन सभी अमन पसंद देशों के लिए खुली है जो चार्टर में निहित दायित्वों, संगठन के निर्णय और इन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम और इच्छुक हैं.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसी क्षेत्र को एक अलग देश के रूप में मान्यता देने की प्रक्रिया की बात करें तो यह संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो-तिहाई बहुमत से दिया जाता है. हालांकि, UNGA संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सिफारिश पर ही वोटिंग करवाता है.

UNSC में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस पांच स्थायी सदस्य हैं. जबकि 10 अस्थायी सदस्य होते हैं जो बारी-बारी से चुने जाते हैं. UNSC की सिफारिश को पारित करने के लिए मतदान होता है. इसमें कम से कम नौ सदस्य इसके पक्ष में हों और कोई भी स्थायी सदस्य अपने वीटो का उपयोग ना करें. सीधे तौर पर पांच स्थायी सदस्य ही किसी मुद्दे के भविष्य का फैसला करता है.

संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन की वर्तमान स्थिति क्या है?

वर्तमान में फलस्तीन संयु्क्त राष्ट्र में एक सदस्य देश नहीं बल्कि एक स्थायी पर्यवेक्षक देश है. संयुक्त राष्ट्र में एक और स्थायी पर्यवेक्षक देश है होली सी. होली सी, वेटिकन सिटी देश का प्रतिनिधित्व करता है. एक स्थायी पर्यवेक्षक देश के रूप में फलस्तीन को सुरक्षा परिषद से लेकर महासभा और इसकी छह मुख्य समितियों तक संगठन की सभी कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति है. हालांकि, इसके मुख्य अंगों और निकायों में मसौदा प्रस्तावों और निर्णयों पर मतदान की अनुमति नहीं है.

फलस्तीन को साल 2012 में गैर-सदस्य स्थायी पर्यवेक्षक देश के रूप में मान्यता दी गई थी. इससे पहले फलस्तीन संयुक्त राष्ट्र में पर्यवक्षक देश के रूप में था. फलस्तीन ने अप्रैल 2024 में संयुक्त राष्ट्र में एक देश के रूप में सदस्यता लेने की कोशिश की थी लेकिन अमेरिका ने वीटो कर दिया था.

कितने देशों ने अब तक फलस्तीन को दी है मान्यता?

नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन की घोषणा से पहले संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से 143 ने पहले ही फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दे दी थी. इनमें से अधिकतर देश एशियाई, अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देश हैं. भारत ने 1988 में फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में मान्यता दी.

1947 में संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना में UNGA संकल्प 181(II) के तहत एक यहूदी देश इजरायल और एक अरब देश फलस्तीन की स्थापना का प्रस्ताव दिया था. इसके तहत यरूशलेम को संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक कॉपर्स सेपरेटम यानी अलग निकाय के रूप में प्रशासित किया जाना था. इस प्रस्ताव को 'दो देश समाधान' के रूप में भी जाना जाता है.

इस प्रस्ताव के धारा एफ में कहा गया है कि योजना के अनुसार अगर कोई भी देश स्वतंत्र होता है तो संयु्क्त राष्ट्र की सदस्या के उसके आवेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाना चाहिए. हालांकि, फलस्तीनी नेताओं ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया था. उनका मानना था कि यह अरब हितों के विरुद्ध है. इसके कुछ दिन बाद ही अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया. इजरायल इस युद्ध की जीत गया. फिर 1949 में इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता प्रस्ताव पेश किया. इसके वोटिंग में ब्रिटेन अनुपस्थित रहा जबकि अन्य सभी स्थायी देशों ने वीटो का इस्तेमाल नहीं किया. इस तरह इजरायल संयु्क्त राष्ट्र का सदस्य बन गया.

नॉर्वे-आयरलैंड-स्पेन के इस कदम का क्या महत्व है?

कोई भी देश जब दूसरे क्षेत्र को देश के रूप में मान्यता देता है तो आमतौर पर उस देश में एक दूतावास की स्थापना और राजनयिक अधिकारियों की नियुक्ति करता है. नार्वे के विदेश मंत्री ने कहा है कि 1999 में उसने वेस्ट बैंक में जिस प्रतिनिधि कार्यालय कोखोला था उसे दूतावास बनाया जाएगा. 

तीनों यूरोपीय देशों का यह कदम गाजा युद्ध में इजरायल को मिल रहे पश्चिमी देशों के समर्थन में दरार का भी प्रतीक है. अमेरिका और ब्रिटेन ने भी स्वतंत्र फलस्तीन की बात की है लेकिन उन्होंने कहा है कि यह केवल इजरायल के साथ बातचीत से ही संभव होना चाहिए.

कई यूरोपीय देशों का कहना है कि वे मध्य-पूर्व में जारी संघर्ष के दीर्घकालीन राजनीतिक समाधान के हिस्से के रूप में ही फलस्‍तीन देश को मान्यता देंगे. लेकिन हालिया तीन यूरोपीय देशों की ओर से फलस्‍तीन को मान्यता देने की घोषणा से ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी समेत यूरोप के अन्य देशों पर भी फलस्‍तीन को समर्थन करने का दबाव बनेगा.

 

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