समंदर में कूदे और मिला ऐसा 'खजाना' कि उड़ गए होश, डाइवर्स को भी नहीं हुआ यकीन
Advertisement
trendingNow12588140

समंदर में कूदे और मिला ऐसा 'खजाना' कि उड़ गए होश, डाइवर्स को भी नहीं हुआ यकीन

जहाज को लेकर डिपार्टमेंट साइंस ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक और गोताखोरों की टीम के संरक्षक इदरीस बाबू ने कहा कि इस इलाके में पहले इस तरह के जहाज मलबा दर्ज नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा,'यह जहाज लगभग 50-60 मीटर लंबा हो सकता है.

समंदर में कूदे और मिला ऐसा 'खजाना' कि उड़ गए होश, डाइवर्स को भी नहीं हुआ यकीन

Lakshdweep: लक्षद्वीप में समुद्री जीवन के बारे में तलाश कर रहे गोताखोरों के एक ग्रुप को हैरान कर देने वाला युद्धपोत यानी जहाज का मतला मिला है. जांचकर्ताओं का मानना है कि जहाज तोपों से लैस था, 17वीं या 18वीं शताब्दी में प्राचीन समुद्री रास्ते पर वर्चस्व के लिए हुए संघर्ष के दौरान डूब गया होगा. यह जहाज पुर्तगाली, डच या ब्रिटिश जैसे किसी यूरोपीय शक्ति का हो सकता है.

गोताखोरों की टीम का नेतृत्व कर रहे ब्रैनाडाइव्स के समुद्री अन्वेषक सत्यजीत माने ने कहा,'जब हमने कल्पेनी के पश्चिमी किनारे पर मलबा देखा तो हमें नहीं पता था कि यह युद्धपोत हो सकता है, लेकिन जब हमने तोप और लंगर पाया, तो समझ में आया कि यह एक महत्वपूर्ण खोज हो सकती है.' उन्होंने आगे कहा कि वे इस खोज की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को देंगे.

सत्यजीत का कहना है,'हमें यह मलबा समुद्र की सतह से सिर्फ चार-पांच मीटर की गहराई पर मिला. मलबा अरब सागर के गहरे हिस्सों में फैला हुआ प्रतीत होता है.' सत्यजीत के मुताबिक  जहाज के आकार, तोप और धातु को देखकर लगता है कि यह एक यूरोपीय युद्धपोत था और इस बारे में ज्यादा जांच की जरूरत है.

सत्यजीत माने ने कहा कि ब्रिटिशों के ज़रिए लोहे के जहाजों का इस्तेमाल किए जाने के दौरान, पुर्तगाली लोहे और लकड़ी के जहाजों का इस्तेमाल करते थे. मलबे पर कोरल की वृद्धि और जंग से यह तुरंत पता लगाना मुश्किल है कि जहाज पूरी तरह लोहे का था या इसमें लकड़ी के हिस्से भी थे. कोरल की वृद्धि से पता चलता है कि यह जहाज कई सदियों से पानी के नीचे है.

डिपार्टमेंट साइंस ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक और गोताखोरों की टीम के संरक्षक इदरीस बाबू ने कहा कि इस इलाके में पहले इस तरह के जहाज मलबा दर्ज नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा,'यह जहाज लगभग 50-60 मीटर लंबा हो सकता है. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में इस रास्ते पर लोहे के जहाजों का इस्तेमाल शुरू किया था. हमें इसके बारे में और जानने के लिए पानी के अंदर पुरातात्विक अध्ययन की जरूरत है. तब तक इस जगह की सुरक्षा जरूरी है.'

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news