11 साल से कम उम्र के बच्चों में बढ़ा इस बीमारी का खतरा, तेजी से बिछा रही अपना जाल
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11 साल से कम उम्र के बच्चों में बढ़ा इस बीमारी का खतरा, तेजी से बिछा रही अपना जाल

अगर आपके बच्चे इंस्टाग्राम (Instagram) और स्नैपचैट (Snapchat) का इस्तेमाल करते हैं तो सावधान हो जाइए. सोशल मीडिया (Social Media) ऐप बच्चों को मानसिक तौर पर बीमार कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर वर्चुअल दुनिया में भी बच्चों के व्यवहार में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: अगर आपके बच्चे की उम्र 11 साल या उससे कम है और वह इंस्टाग्राम (Instagram) और स्नैपचैट (Snapchat) का इस्तेमाल करता है. तो आपको भी अलर्ट रहने की जरूरत है. ऐसा इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया ऐप (Social Media App) बच्चों को रियल लाइफ में मानसिक तौर पर बीमार कर रहे हैं. वहीं वर्चुअल वर्ल्ड में भी इनका दुस्प्रभाव दिखने लगा है. बच्चों का व्यवहार चिड़चिड़ा और डिप्रेशन से भर गया है. 

  1. कहीं आपका बच्चा तो नहीं हो रहा चिड़चिड़ा?
  2. ऑनलाइन दुनिया में खो रहे हैं छोटे-छोटे बच्चे
  3. 'वेलस्ली सेंटर फॉर वूमेन' की रिपोर्ट में खुलासा
  4.  

'ऑनलाइन दुनिया में खो रहे बच्चे'

अमेरिकी जर्नल 'कंप्यूटर इन ह्यूमन बिहेवियर' में छपी एक हालिया रिपोर्ट किस तरह इस बात का खुलासा करती है, आइए बताते हैं. दरअसल कई पैरेंट्स ने अपने बच्चों के अचानक चिड़चिड़े होने को लेकर चिंता जताई है. यह बात किसी से नहीं छिपी कि सोशल मीडिया की वजह से बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. अब इसकी पुष्टि नई-नई रिपोर्ट्स में भी हो रही है.

'वेलस्ली सेंटर फॉर वूमेन' की रिपोर्ट

अमेरिकी जर्नल 'कंप्यूटर इन ह्यूमन बिहेवियर' में छपी 'वेलस्ली सेंटर फॉर वूमेन' की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अगर 11 साल से छोटी उम्र के बच्चे इन दोनों एप्लीकेशंस का इस्तेमाल करते हैं तो यह डिजिटल या वर्चुअल दुनिया में भी बच्चों को चिड़चिड़ा और डिप्रेशन का शिकार बना रहे है. यानी असल जिंदगी में तो बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ ही रहा था अब वर्चुअल वर्ल्ड में भी बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं.

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अमेरिका (US) की एक रिसर्च लैब 'वेलस्ली सेंटर फॉर वूमेन' ने उत्तर पूर्वी अमेरिका के करीब 773 स्कूलों में सभी वर्ग और उम्र के स्कूली बच्चों पर एक सर्वे किया. इस दौरान यह जानने लगाने की कोशिश की गई कि वर्चुअल वर्ल्ड में किस उम्र के बच्चों को कौन से एप्लीकेशन्स सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं. रिसर्च में पाया गया कि बाकी सोशल मीडिया ऐप की तुलना में इंस्टाग्राम और स्नैपचैट 11 साल से कम उम्र के बच्चों पर बुरा असर डाल रहे हैं. इस एज ग्रुप के बच्चों ने असल जिंदगी में चिड़चिड़ेपन के साथ जवाब देने के अलावा इन दोनों ऐप पर कहीं भी किसी भी व्यक्ति या संस्थान पर बिना बात कोई भी कमेंट या टिप्पणी कर रहे थे.

'पैरेंट्स की जिम्मेदारी बढ़ीं'

दरअसल पूरी दुनिया से अभी कोरोना महामारी का खतरा टला नहीं है. ऐसे में कहीं स्कूल खुल गए हैं तो कहीं पर अब भी बंद है. यही वजह है कि दुनिया के करोड़ों बच्चे अब भी ऑनलाइन क्लास लेने को मजबूर हैं. ऐसे में सभी बच्चों को पेरेंट्स लैपटॉप या मोबाइल दे देते हैं. लेकिन सही समझ ना होने के कारण इसका बच्चे कई बार गलत फायदा उठा लेते हैं. ऐसे में पेरेंट्स के लिए यह चुनौती बनी हुई है कि बच्चों को इस वर्चुअल वर्ल्ड से आखिरकार कैसे दूर रखा जाए.

मनोरंजन के नाम पर एडिक्शन?

ऐसे में ज़ी न्यूज़ की टीम ने दिल्ली और नोएडा के कुछ बच्चों के पैरेंट्स से बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल खुलने की वजह से इनकी ऑनलाइन क्लासेस सिर्फ 1 घंटे की होने लगी है. दिल्ली के कुछ स्कूलों के बच्चे ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन पढ़ाई भी कर रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बच्चे एमएस टीम और गूगल की मददलेते हैं. लेकिन पढ़ाई के बाद मनोरंजन के लिए यह दूसरे एप्लीकेशन भी चलाने लग जाते हैं. जिसकी वजह से यह असल जिंदगी के साथ ऑनलाइन दुनिया में भी अजीब बरताव करने लगे हैं. इसी वजह से इनके माता-पिता काफी ज्यादा परेशान होने लगे हैं.

क्या कहती है NCPCR की रिपोर्ट?

इसी साल जुलाई महीने में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 3491 बच्चों पर एक सर्वे किया था. जिसमें पाया गया कि 42.9% बच्चों ने सोशल मीडिया एप्लीकेशंस पर अकाउंट होने की बात मानी है. सर्वे में देश के 6 राज्यों के अलग-अलग शहरों में किया गया था.

इसमें दिल्ली मुंबई हैदराबाद भुवनेश्वर रांची और गुवाहाटी जैसे शहरों को शामिल किया गया था. देश के 6 राज्यों में किए गए सर्वे से पता चला कि 10 साल से कम उम्र के करीब 38 प्रतिशत बच्चों का फेसबुक पर अकाउंट है. वहीं 24% बच्चों ने इंस्टाग्राम पर अकाउंट बना लिया है. इस सर्वे के मुताबिक सिर्फ भारत के 30.2% बच्चे जिनकी उम्र 8 से 18 साल है उनके पास अपना खुद का स्मार्टफोन है. वहीं 52% बच्चे स्मार्टफोन या दूसरे उपकरणों के माध्यम से चैट करते हैं.

 

 

 

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