ZEE जानकारी : एनसीआर के चार बड़े प्राइवेट अस्पतालों की पोल खोलती NPPA की रिपोर्ट
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ZEE जानकारी : एनसीआर के चार बड़े प्राइवेट अस्पतालों की पोल खोलती NPPA की रिपोर्ट

आज डाकुओं का दौर तो समाप्त हो चुका है। लेकिन आम आदमी के साथ लूट का सिलसिला आज भी जारी है. बस, इसका तरीका थोड़ा बदल गया है. ये लूट कभी बैंकों में होने वाले घोटाले के रूप में होती है,  तो कभी प्राइवेट अस्पतालों के महंगे बिलों के ज़रिए की जाती है 

ZEE जानकारी : एनसीआर के चार बड़े प्राइवेट अस्पतालों की पोल खोलती NPPA की रिपोर्ट

आपने डाकू और लुटेरों से जुड़ी कहानियां ज़रूर सुनी होगी. इन कहानियों के आधार पर कई सुपर हिट हिंदी फिल्में भी बनी हैं. पुराने ज़माने में डाकू और लुटेरे... बंदूक की नोंक पर लोगों को लूट लिया करते थे और अपनी जान की सलामती के लिए ज़्यादातर लोग इस लूट का विरोध भी नहीं कर पाते थे . आज डाकुओं का दौर तो समाप्त हो चुका है. लेकिन आम आदमी के साथ लूट का सिलसिला आज भी जारी है.बस, इसका तरीका थोड़ा बदल गया है. ये लूट कभी बैंकों में होने वाले घोटाले के रूप में होती है,  तो कभी प्राइवेट अस्पतालों के महंगे बिलों के ज़रिए की जाती है. 

मरीज़ों पर अस्पतालों की गिरफ्त ऐसी है, कि जान की सलामती के लिए, ज़्यादातर मरीज़ इस लूट को चुपचाप सहन कर लेते हैं . आज के दौर में प्राइवेट अस्पतालों के महंगे बिल बंदूक की उस गोली की तरह हैं जिसे इंश्योरेंस का कवच भी रोक नहीं पाता. 

हमने आपको कुछ महीने पहले देश के दो बड़े प्राइवेट अस्पतालों - यानी Fortis और Medanta Hospital के महंगे बिल से जुड़ी हुई ख़बरें दिखाई थी. इन दोनों अस्पतालों ने डेंगू के बुखार से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए करीब 15-15 लाख रूपये का बिल बनाया था . हमारी इन ख़बरों को देखने के बाद कई सरकारी ऐजेंसियों ने महंगे बिलों के ख़िलाफ़ जांच शुरू की. और इस जांच के जो परिणाम सामने आये हैं उन्हें देखकर आज आपको झटका लगेगा. 
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देश में दवाइयों की कीमतों पर नियत्रंण करने वाली संस्था National Pharmaceutical Pricing Authority यानी NPPA ने दिल्ली और NCR के 4 प्राइवेट अस्पतालों के बिलों का अध्ययन करके एक रिपोर्ट जारी की है. 

इन चार अस्पतालों के नाम हैं - Medanta Hospital, Max Hospital, Fortis Hospital और BL कपूर Hospital. 

इस रिपोर्ट के मुताबिक ये प्राइवेट अस्पताल अपने बिलों में 1700 प्रतिशत तक का मुनाफा वसूल रहे हैं.

प्राइवेट अस्पताल अपने बिलों में दवाओं और मेडिकल उपकरणों के MRP में हेराफेरी करके ज़्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. 

हमारे देश में ये नियम तो है कि कोई भी सामान MRP यानी Maximum Retail Price से ज़्यादा कीमत पर नहीं बेचा जा सकता. लेकिन ज़्यादातर मामलों में इस बात का कोई नियम नहीं है कि सामान का MRP क्या होगा ? और दवा कंपनियां और प्राइवेट अस्पताल मिल जुलकर इसका भरपूर फ़ायदा उठाते हैं . 

NPPA की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि ये प्राइवेट अस्पताल, दवा कंपनियों पर दबाव बनाते है कि दवा का MRP ज़्यादा रखा जाए ताकि ग्राहकों से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सके. रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र किया गया है कि दवा कंपनियों की तुलना में प्राइवेट अस्पताल कई गुना ज़्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं . 

आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि किस तरह प्राइवेट अस्पताल इलाज के दौरान महंगा बिल तैयार करते हैं. NPPA ने इन 4 अस्पतालों के बिलों का अध्ययन करके, महंगे बिल के गणित को Decode किया है

मान लीजिए अगर किसी मरीज़ का बिल 1 लाख रुपये है तो इसमें करीब 4 प्रतिशत हिस्सा यानी करीब 4 हज़ार रूपये Scheduled Formulations का होता है आसान भाषा में आप इसे जीवन रक्षक या फिर ज़रूरी दवाएं कह सकते हैं. इन दवाओं की कीमत सरकार द्वारा तय की जाती हैं इसलिए इसमें हेराफेरी करना मुश्किल होता है . 

इसके बाद करीब 26 प्रतिशत हिस्सा यानी 26 हज़ार रूपये Non- Scheduled Formulations का होता है . ये ऐसी दवाएं होती हैं जिनकी कीमत सरकार तय नहीं करती है और इसका फ़ायदा प्राइवेट अस्पताल उठाते हैं .

इसके अलावा 16 प्रतिशत हिस्सा मेडिकल जांच का होता है और करीब 13 प्रतिशत हिस्सा डॉक्टर के परामर्श का होता है. इसके अलावा 41 प्रतिशत हिस्से में दूसरे खर्चे जोड़ दिये जाते हैं जिनमें कमरे का किराया और इलाज के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण शामिल हैं . 

इस पूरे बिल में ध्यान देने वाली बात ये है कि इस 1 लाख रुपये में से 96 प्रतिशत यानी 96 हज़ार रूपये के खर्च पर अस्पतालों का नियंत्रण होता है. यानी ये अस्पताल मुनाफा कमाने वाली Health Shop बन चुके हैं और इनका सारा फोकस सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने पर है.

प्राइवेट अस्पतालों की लूट पर National Pharmaceutical Pricing Authority की रिपोर्ट तो आ गई.. लेकिन रिपोर्ट आने के बाद क्या हुआ ? क्या इन अस्पतालों पर कोई कार्रवाई हुई ? क्या हमारा सिस्टम सिर्फ इस तरह की रिपोर्ट जारी करने के लिए है ? ऐसी रिपोर्ट का क्या फायदा जो सिस्टम में या समाज में कोई बदलाव नहीं ला सकती ? जो मरीज़ पहले ही इस लूट के शिकार हो चुके हैं और लाखों रुपये के बिल दे चुके हैं, क्या उनके पैसे लौटाए जाएंगे ? ऐसे अस्पतालों के खिलाफ एक मुहिम चलाने की ज़रूरत है और ज़ी न्यूज़ ये मुहिम चलाएगा.

ये रिपोर्ट आने के बाद भी इन चारों अस्पतालों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इन अस्पतालों में अभी भी मोटा मुनाफ़ा कमाने की प्रक्रिया आराम से चल रही है. आप समझ सकते हैं कि सरकार और सिस्टम को आपकी कितनी चिंता है. ये सब देखकर ऐसा लगता है - जैसे ये प्राइवेट अस्पताल हमारे सिस्टम से कह रहे हों कि कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ?

हमारे देश में किसी मरीज़ की चिकित्सा करने को एक सम्मानजनक पेशा माना जाता है. आज भी लोग डॉक्टर्स को.. डॉक्टर साहब कहते हैं. लेकिन दुख की बात ये है कि देश के प्राइवेट अस्पतालों की दिलचस्पी, मरीज़ों का दर्द दूर करने में नहीं, बल्कि पैसा कमाने में है. और बहुत सारे डॉक्टर ऐसे अस्पतालों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं. हमें लगता है कि 1700 प्रतिशत का मोटा मुनाफा कमाने वाले अस्पतालों को मानवता की सेवा करने वाली संस्था नहीं कहा जा सकता. ऐसे अस्पतालों को अपने नाम से अस्पताल शब्द हटा लेना चाहिए और इसकी जगह अपने नाम के आगे, Health Shop जोड़ देना चाहिए ताकि लोगों की ये गलतफहमी दूर हो जाए कि वो किसी अस्पताल में जा रहे हैं और वहां पर उनका उचित इलाज होगा. जो हालात हैं उन्हें देखकर यही लगता है कि अब लोगों को ये स्वीकार कर लेना चाहिए.. कि बड़े बड़े प्राइवेट अस्पताल अब Health Shop यानी इलाज की दुकान बन चुके हैं और वो अपना किफायती इलाज करवाने के लिए नहीं.. बल्कि Health Shops में अपनी जेबें ढीली करने जा रहे हैं.

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