आप अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की तुलना भी किसी नारियल से कर सकते हैं. जो बाहर से दिखने में बहुत सख्त होती है.
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आज प्रधानमंत्री मोदी ने महाबलीपुरम में शी जिनपिंग को नारियल पानी भी पिलाया. आप अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की तुलना भी किसी नारियल से कर सकते हैं. जो बाहर से दिखने में बहुत सख्त होती है. लेकिन अगर थोड़ी सी मेहनत की जाए को इसका फल बहुत मीठा, और मुलायम होता है. लेकिन भारत ने चीन के साथ इस Coconut कूटनीति का इस्तेमाल पहली बार नहीं किया है. आज से 63 वर्ष पहले यानी 1956 में जब चीन के पहले प्रधानमंत्री Zhou En-lai (ज़ाऊ एन लाई) भारत आए थे तब उन्होंने भी महाबलीपुरम का दौरा किया था और वो भी शी जिनपिंग की तरह भारत की सांस्कृतिक विरासत को देखकर दंग रह गए थे. इस दौरान Zhou En-lai (ज़ाऊ एन लाई ) महाबलीपुरम से 10 किलोमीटर आगे एक गांव में भी गए थे. तब वहां के स्थानीय लोगों ने उन्हें नारियल पानी पीने के लिए दिया. मेहमानों को नारियल पानी देना तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा है. हमारे संवाददाता अमित प्रकाश उस गांव में पहुंचे और जानने की कोशिश की कि चीन के पहले प्रधानमंत्री का नारियल पानी पीने का अनुभव कैसा था.
नारियल का पेड़ बहुत ऊंचा होता है और उस पर चढ़कर नारियल तोड़ने में काफी मेहनत लगती है. इसी तरह दुनिया में अपने देश की छवि अच्छी करने के लिए भी नेताओं को काफी मेहनत करनी पड़ती है. और फिलहाल शी जिनपिंग दुनिया में अपनी बिगड़ती छवि से परेशान हैं. Hong-kong में चीन के खिलाफ प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. Hong Kong में चीन की दमनकारी नीति की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है और इससे शी जिनपिंग की छवि खराब हो रही है. इसी तरह चीन ताइवान पर भी कब्ज़ा करना चाहता है और वहां के लोग भी लगातार चीन की नीतियों का विरोध कर रहे हैं. चीन पर उइगर मुसलमानों के दमन का भी आरोप है और इस दमन में चीन की सरकार का साथ देने के आरोप में अमेरिका ने चीन की 28 कंपनियों पर पाबंदी लगा दी है.
चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध भी चल रहा है. इस वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हो रहा है. अमेरिका व्यापारिक तौर पर भारत के करीब आ रहा है और ये बात भी शी जिनपिंग को परेशान कर रही है. चीन का साथी माना जाने वाला पाकिस्तान भी पूरी दुनिया में अलग-थलग हो चुका है. इसलिए चीन उससे भी किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं कर सकता. शी जिनपिंग एक कमज़ोर राजनेता की तरह भारत पहुंचे हैं क्योंकि उनके सामने कई सारी चुनौतियां हैं. शी जिनपिंग कितने घबराए हुए हैं. इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 3 सितंबर को अपने एक भाषण में उन्होंने 50 बार संघर्ष शब्द का इस्तेमाल किया था. यानी ये बात वो भी जानते हैं कि आज उनका देश संघर्ष कर रहा है.
शी जिनपिंग के मुकाबले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत मजबूत स्थिति में हैं. प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी मजबूती ये है कि उन्होंने 2019 का चुनाव 2014 के मुकाबले बड़े अंतर से जीता है. प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने जैसा एतिहासिक फैसला भी लिया और पूरे देश ने उनके इस फैसले का समर्थन किया है. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले पर दुनिया के ज्यादातर देशों ने भी भारत का साथ दिया. यानी मोदी कूटनीतिक तौर पर भी पहले से ज्यादा मजबूत हो गए हैं. Howdy Modi जैसे कार्यक्रम में दुनिया ने मोदी की विश्व नेता वाली छवि को देखा जिससे शी जिनपिंग का परेशान होना स्वाभाविक है. भारत चीन के दोस्त पाकिस्तान को भी कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग कर चुका है. यानी भारत आज चीन के मुकाबले कमज़ोर नहीं बल्कि मजबूत है. और चीन भी ये बात अच्छी तरह समझता है. इसलिए शी जिनपिंग दक्षिण भारतीय भोजन करते हुए भारत की कूटनीति का स्वाद भी चख रहे हैं.