ZEE जानकारी: अज्ञानता की गलियों में भटक गया CAA के विरोध का आंदोलन?
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ZEE जानकारी: अज्ञानता की गलियों में भटक गया CAA के विरोध का आंदोलन?

क्या नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर जो आंदोलन शुरू हुआ था वो अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है ? 

ZEE जानकारी: अज्ञानता की गलियों में भटक गया CAA के विरोध का आंदोलन?

आज हम जो बड़ा सवाल लेकर आए हैं वो ये है कि. क्या नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर जो आंदोलन शुरू हुआ था वो अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है ? कोई इस आंदोलन के नाम पर मोदी सरकार का विरोध कर रहा है, कोई Free कश्मीर की बात कर रहा है, कोई धर्म निरपेक्षता की बात कर रहा है तो कोई कह रहा है कि मुसलमान खतरे में आ गए हैं,कोई JNU की हिंसा का विरोध कर रहा है. असल में ये जो भटकाव है इसकी पृष्ठभूमि में अज्ञानता और एजेंडा है. अज्ञानता और एजेंडे की मिलावट ने इस आंदोलन को अपने मूल उद्देश्य से भटका दिया है. और इसी अज्ञानता की वजह से प्रदर्शन करना Progressive होना यानी प्रगितिशील होने की पहचान बन गया है.

हालांकि ये पहचान पूरी तरह से झूठी है. प्रोटेस्ट के नाम पर खुद को Progressive साबित करने की होड़ लगी है. इस होड़ में बहुत सारे Celebrities, बुद्धिजीवी और पत्रकार भी शामिल हो गए हैं. और इन सबके लिए प्रदर्शनों में हिस्सा लेना Fashion बन गया है.इसलिए आज हम अज्ञानता की गलियों में भटके हुए आंदोलनों को.. ज्ञान के रास्ते पर लाने वाला एक विश्लेषण करेंगे . प्रदर्शन का दर्शनशास्त्र कहता है कि आंदोलन एक सोए हुए समाज में गति लाने का काम करता है .

लेकिन दिशाहीन और भटके हुए आंदोलन सिर्फ समय की बर्बादी बन जाते हैं, इसमें की गई अज्ञानता और एजेंडे की मिलावट अव्यवस्था का कारण बन जाती हैं और देश के लोग जानकारी के अभाव में गुमराह होने लगते हैं . ऐसा ही आजकल हमारे देश में भी हो रहा है...पिछले कई दिनों से नए नागरिकता कानून, विश्व-विद्यालयों में होने वाली हिंसा, NRC, और ना जाने कितनी वजहों से सरकार के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं . लेकिन असल में ये सारा विरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हो रहा है .

इन सब विरोध प्रदर्शनों को.. जो एक कड़ियां आपस में जोड़ती है...उनका नाम है अज्ञानता और एजेंडा...अज्ञानता अक्सर हिंसक हो जाने वाले इन आंदोलनों की आग में घी का काम करती है . आंदोलनों का असली काम..देश को जोड़ना होता है..उसे नई दिशा दिखाना होता है . लेकिन हमारे देश में आंदोलनों के नाम पर कई लोग ऐसी Treadmill पर चढ़ गए हैं...जिस पर वो तेज़ी से दौड़ तो रहे हैं..लेकिन कहीं पहुंच नहीं पा रहे .

ऐसे लोगों को एजेंडे की इस Treadmill से उतरकर..कुछ पल ठहरना चाहिए और सोचना चाहिए कि जिन कानूनों और नीतियों का विरोध ये लोग कर रहे हैं...उसकी सच्चाई क्या है..उसका मकसद क्या है . हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री जूही चावला ने ऐसे लोगों को एक ज़रूरी संदेश दिया है . जूही चावला ने अज्ञानता की राह पर चल रहे आंदोलनकारियों से निवेदन किया है कि प्रतिक्रियाएं देने से पहले...वो ज़रा ये समझने की कोशिश करें कि आखिर नया कानून है क्या. .

पिछले 36 दिनों से अफवाहों और अज्ञानता के खतरनाक फार्मूले का इस्तेमाल करके..देश को हिंसा की आग में झोंकने वालों को..जूही चावला का ये 1 मिनट 45 Seconds का बयान जरूर सुनना चाहिए .जूही चावला की बातें सुनकर आप समझ गए होंगे कि कैसे कुछ मुट्ठी भर राजनेता, छात्र राजनेता, अंग्रेज़ी बोलने वाले Celebrities, और डिजाइनर पत्रकार मिलकर....देश को झूठी तस्वीर दिखा रहे हैं...और अज्ञानता का ये भंवर..सच्चाई को डुबोने की कोशिश कर रहा है .

आज भी देश की राजधानी दिल्ली में.. JNU, जामिया मिलिया इस्लामिया और दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों ने एक विरोध मार्च निकाला . इस विरोध मार्च में कुछ राजनेताओं ने भी हिस्सा लिया . लेकिन शाम हो जाने के बाद भी ये साफ नहीं हो पाया..कि इस मार्च का मुख्य मुद्दा क्या था . किसी के लिए ये मार्च..फीस वृद्धि के खिलाफ था.कोई JNU के वाइस चांसर को हटाने की मांग कर रहा था..कोई नए सत्र में छात्रों के रजिस्ट्रेशन को रोकने की मांग कर रहा था, किसी के लिए ये नए नागरिकता कानून का विरोध करने का ज़रिया था. तो किसी के लिए ये प्रदर्शन दिल्ली पुलिस के खिलाफ था .

कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहा था..तो कोई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS का विरोध कर रहा था .

यानी सबकी अपनी अपनी ढफली और अपना अपना राग था . ये लोग जो नारेबाज़ी कर रहे थे..उसका सीधा सा मतलब ये था कि देश में हर तरफ दहशतगर्दी है और जहां देखो वहीं सरकार के गुंडे मौजूद हैं..पहले आप इस नारेबाज़ी और प्रदर्शन की एक झलक देखिए..फिर हम आपको पते की बात बताएंगे .

इसके बाद शाम होते होते फिर से वही होने लगा जिसके लिए ये विरोध प्रदर्शन लगातार बदनाम हो रहे हैं . प्रदर्शनकारी JNU के वाइस चांसलर को हटाने की मांग कर रहे थे और इस दौरान ये प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गए और इनकी पुलिस से भिड़ंत हो गई .

कुल मिलाकर ग्रेजुएशन करने के बाद.. जितने Career options..भारत के छात्रों के पास नहीं होते..उससे ज्यादा Options इन आंदोलनकारियों के पास हैं . आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में ग्रेजुएशन करने वाले ज्यादातर छात्र ले-देकर सिर्फ 7 अलग अलग Career Options ही चुन पाते हैं . ये Options हैं..Engeineering, Accounts, IT, Medicine, Law, Management और Designing . जबकि भारत में Career बनाने के 250 से ज्यादा विकल्प मौजूद हैं.ऐसा इसलिए होता है..क्योंकि भारत में ज्ञान का बहुत अभाव है.

एक सर्वे के मुताबिक भारत के 14 से 21 वर्ष के 93 प्रतिशत युवाओं को ये पता ही नहीं है कि इन सात Fields के अलावा भी वो किसी और Field में करियर बना सकते हैं . और अब ऐसा लग रहा है कि प्रदर्शनों को करियर के आठवें विकल्प के तौर पर पेश किया जा रहा है...क्योंकि अज्ञानता की वजह से...हज़ारों छात्र इन प्रदर्शनों का हिस्सा बने हुए हैं लेकिन इनमें से ज्यादातार को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं है कि ये प्रदर्शन हो क्यों रहे हैं .

डिजिटल आंदोलनों के इस युग में.. हाथ में पोस्टर उठाए आपकी तस्वीर, आपकी कविता या आपकी नारेबाजी तेज़ी से वायरल तो हो सकती है...लेकिन इससे कोई हल नहीं निकलता . Tweeter Vs Tear Gas के इस युग में आंदोलनों का आकार तो बड़ा हुआ है..लेकिन ये आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया की Walls को ही तोड़ पा रहे हैं...जबकी इनके असली मकसद के बारे में किसी को कुछ नहीं पता .

भटके हुए युवाओं को.. और ज्यादा गुमराह करने वाले इन आंदोलनों को भड़काने के लिए अज्ञानता का चिंगारी की तरह इस्तेमाल हो रहा है . इसे समझने के लिए आपको एक Viral Video देखना चाहिए . इस Video में ललित अंबरदार नामक एक व्यक्ति एक आंदोलनकारी छात्रा को समझा रहे हैं...कि CitizenShiip Amendment Act की हकीकत क्या है..और ये क्यों ज़रूरी है .

ये Videos साबित करते हैं.. कि देश के करोड़ों लोग ज्ञान के अभाव में गलत दिशा में भटक गए हैं . इस समस्या की जड़ में वो अज्ञानता है..जिसे देश के राजनेता पिछले 72 वर्षों में भी दूर नहीं कर पाए हैं . स्थिति ये हो गई है कि नागरिकता कानून के विरोध में शुरु हुए प्रदर्शन....अब Free Kashmir के फैशन को देश के दूसरे हिस्सों में फैला रहे हैं .

तीन दिन पहले मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के पास..Free Kashmir के पोस्टर्स लहराए गए...फिर कल दिल्ली यूनिवर्सिटी में कश्मीर की आज़ादी के नारे लगाए गए और आज कर्नाटक की मैसूर यूनिवर्सिटी में भी Free Kashmir के पोस्टर्स दिखाई दिए..ऐसा लग रहा है कि सरकार विरोधी प्रदर्शनों के नाम पर Free Kashmir की फ्रैंचाइज़ देश के अलग अलग हिस्सों में बांटी जा रही है .

पहले आप आज की ताज़ा तस्वीर और पिछले दो तस्वीरों का Recap देखिए...फिर हम अपने इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे .

अब आपको इन विरोध प्रदर्शनों का क्रम यानी Chronology समझनी चाहिए . ये विरोध प्रदर्शन नए नागरिकता कानून के विरोध में शुरू हुए थे...और इस कानून को देश के मुसलमानों के खिलाफ बताया गया..जबकि सच ये है कि इस कानून का देश में रहने वाले मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है .

फिर इसमें National Register of Citizens यानी NRC की एंट्री कराई गई जिसे लेकर अभी तक कुछ तय नहीं हुआ है..जो कानून अभी आया भी नहीं है..उसे लेकर डर का माहौल तैयार किया गया . फिर National Population Register यानी NPR के नाम पर लोगों को भड़काया गया.. और कहा गया कि लोग अपने नाम और पते से जुड़ी गलत जानकारियां अधिकारियों को दें ....इसी दौरान विरोध प्रदर्शनों में छात्रों की एंट्री कराई गई और कई छात्रों के प्रदर्शन देखते ही देखते गुंडागर्दी में बदल गए.

इसके बाद इसमें Free Kashmir से जुड़ी नारेबाज़ी, और Posters को शामिल कर दिया गया और इन प्रदर्शनों की पटकथा पूरी तरह से टुकड़े टुकड़े गैंग द्वारा लिखी जाने लगी . लेकिन अभी भी इन विरोध प्रदर्शनों में Star प्रदर्शनकारियों की कमी दिखाई दे रही थी..इसलिए फिल्मी सितारों को इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया ...जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी जैसे विश्व-विद्यालयों को फिल्मी प्रमोशन का अड्डा बना दिया गया और नेताओं और छात्र-नेताओं के बाद अभिनेताओं ने भी इस मुद्दे का फायदा उठाना शुरू कर दिया .

स्थिति ये हो गई है..कि अब इस मुद्दे पर फिल्म इंडस्ट्री भी बंट गई है कुछ एक्टर्स के लिए ये विरोध प्रदर्शन ज्ञान के अभाव का नतीजा है..तो दीपिका पादुकोण जैसी अभिनेत्रियां...उन लोगों के साथ मंच साझा कर रही हैं..जिन पर देश के खिलाफ नारेबाज़ी करने के आरोप लगते रहे हैं .

फिल्मों के नायकों और नायिकाओं को भारत के लोग बड़ी उम्मीद से देखते हैं....क्योंकि फिल्मों में यही लोग...बुराइयों के खिलाफ लड़ते हैं..खलनायकों के साथ युद्ध करते हैं और अंत में Happy Ending का संदेश भी देते हैं . लेकिन असल जिंदगी में जब मुद्दों की बात आती है..तो Bollywood के कई Celebreties भी ज्ञान के अभाव में भटक जाते हैं .

दीपिका पादुकोण JNU के छात्रों के साथ एकता का इजहार तो करती हैं....लेकिन दिल्ली आकर निर्भया की मां को भूल जाती हैं.. वो भी तब जिस दिन..कोर्ट ने निर्भया के दोषियों के फांसी का समय और तारीख तय किया था . फिल्मी सितारों को किसके साथ खड़े होना है..ये उनकी Choise है . यानी उनकी मर्ज़ी है. लेकिन फिल्मी सितारों को ये नहीं भूलना चाहिए कि इस देश के करोड़ों लोग.

.उन्हें बड़ी उम्मीद से देखते हैं और उनकी Choise का असर..देश की आम जनता पर भी होता है . इसलिए Celebrities को ज्ञान के अभाव में ऐसे किसी मुद्दे पर नहीं बोलना चाहिए...जो जनता को भड़का देता हो . क्योंकि अक्सर ये Celebrities घर बैठे बैठे.. हाथ में Placard लेकर...फोटो खींचकर Twitter पर डाल देते हैं और देश का युवा सड़कों पर उतर आता है . हिंसा करने लगता है और अपना करियर दांव पर लगा देता है.

जिस तरह फिल्म शुरू होने से पहले डिस्क्लेमर दिया जाता है कि फिल्म में काम करने वाले कलाकार..धूम्रपान या शराब के सेवन का समर्थन नहीं करते..उसी प्रकार फिल्म शुरू होने से पहले ये भी बता दिया जाना चाहिए कि ये सितारे किस विचारधारा का समर्थन करते हैं और किसका नहीं . ऐसा होने पर जनता भी ये समझ पाएगी कि वो जिनकी तरफ उम्मीद से देख रही है वो देश को लेकर क्या सोचते हैं.

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