ZEE जानकारी: सबसे सरल और भाषा में समझिए, आखिर दिल्ली चुनाव में BJP क्यों हारी?
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ZEE जानकारी: सबसे सरल और भाषा में समझिए, आखिर दिल्ली चुनाव में BJP क्यों हारी?

आम आदमी पार्टी को 62 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत मिला है. जबकि बीजेपी को सिर्फ 8 सीटें मिल पाईं है. 

ZEE जानकारी: सबसे सरल और भाषा में समझिए, आखिर दिल्ली चुनाव में BJP क्यों हारी?

8 तारीख को बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी ने Tweet करके कहा था कि दिल्ली में बीजेपी 48 सीटें जीतेगी. उन्होंने लोगों से ये TWEET Save करने लिए भी कहा था. हमने भी ये Tweet Save कर लिया था. उन्होंने वोटिंग के बाद क्या लिखा था पहले वो हम आपको पढ़कर सुना देते हैं. उन्होंने कहा था ये सभी एग्ज़िट पोल फेल होंगे. मेरा ये ट्वीट सम्भाल के रखियेगा. बीजेपी दिल्ली में 48 सीटें ले कर सरकार बनायेगी. कृपया EVM को दोष देने का अभी से बहाना ना ढूंढें. EVM का तो पता नहीं लेकिन आज शायद बीजेपी के बहुत सारे नेता मनोज तिवारी के इस अति आत्मविश्वास वाले Tweet को ज़रूर दोष दे रहे होंगे. इसलिए नेताओं को नतीजे आने से पहले ऐसे दावे नहीं करने चाहिए.

दिल्ली चुनाव का फाइनल स्कोर फिलहाल इस प्रकार है.
आम आदमी पार्टी को 62 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत मिला है. जबकि बीजेपी को सिर्फ 8 सीटें मिल पाईं है. बीजेपी के जितने विधायक जीते हैं वो सभी सिर्फ एक Eight Seater गाड़ी में बैठकर विधान सभा जा सकते हैं. जबकि कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला है और कांग्रेस को अब दिल्ली की राजनीति से कुछ समय के लिए सन्यांस ले लेना चाहिए.

आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 53.6 प्रतिशत बीजेपी का 38.5 प्रतिशत और कांग्रेस का 4 प्रतिशत है. और अभी इन आंकड़ों में बदलाव संभव है क्योंकि कुछ सीटों के नतीजे आने बाकी हैं. आप ऐसे मानकर चलिए कि दिल्ली का चुनाव एक One Day International Cricket मैच की तरह था. जिसे आम आदमी पार्टी ने पूरे 10 विकेट से जीत लिया है.

51 साल के अरविंद केजरीवाल Man Of The series बन गए, उन्होंने जीत की ट्रॉफी उठा ली. जबकि बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं को सांत्वना पुरस्कार तक नहीं मिल पाया. बीजेपी दिल्ली की ये चुनावी ट्रॉफी पिछले 23 वर्षों से जीतने की कोशिश कर रही थी. लेकिन अब उसे इसके लिए 5 वर्षों का इंतज़ार और करना होगा.

इस मैच से पहले दोनों टीमों यानी बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने अपनी पुरानी टीम में कुछ बदलाव किए थे. यानी नए और पुराने खिलाड़ियों के मिश्रण से चुनाव लड़ने वाली टीमें तैयार की गई थीं. आम आदमी पार्टी ने चुनाव प्रचार में भी इसी टीम का इस्तेमाल किया. जबकि बीजेपी ने रणजी ट्रॉफी मैच में भी World Cup जीतने वाली टीम को उतार दिया.

असली मैच से पहले दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच खूब Sledging हुई. सबने एक दूसरे के खिलाफ बयान दिए. लेकिन एक कैप्टन के तौर पर अरविंद केजरीवाल शालीन बने रहे.

बीजेपी ने उन्हें आतंकवादी कहा तो अरविंद केजरीवाल ने खुद को दिल्ली का बड़ा बेटा बताया. बीजेपी टुकड़े टुकड़े गैंग और शाहीन बाग की बात करती रही. अरविंद केजरीवाल अपने काम काज जनता को गिनवाते रहे.
बीजेपी ने राष्ट्रीय मुद्दों के ऊपर ये चुनाव लड़ा, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने स्थानीय मुद्दों का साथ नहीं छोड़ा.

बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल की हनुमान भक्ति पर सवाल उठाया. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे को भी अपने पक्ष में मोड़ लिया. यानी जैसे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के बड़े बड़े नेता प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ हो जाते हैं..वैसे ही दिल्ली में बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं के सामने केजरीवाल अकेले थे. यानी बीजेपी का चुनावी प्रचार काफी नेगेटिव था, जबकि केजरीवाल सकारात्मक तरीके से चुनाव प्रचार करते रहे.

इस शानदार जीत के बाद आज केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को संबोधित भी किया. इस दौरान वो एक नए दौर के नेता के तौर पर लोगों के सामने आए. पारंपरिक नेताओं की तरह उन्होंने कोई लिखा हुआ भाषण नहीं पढ़ा. बल्कि युवाओं और दिल्ली वालों की स्टाइल में ही लोगों को शुक्रिया कहा. दिल्ली की 55 प्रतिशत आबादी की उम्र 18 से 40 वर्ष के बीच है. यानी दिल्ली युवाओं का शहर है और अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि युवाओं को कैसे आकर्षित करना है. 

केजरीवाल ने मंगलवार के दिन चुनाव जीता है इसलिए उनके भाषण के दौरान हनुमान जी का भी जिक्र आ गया. 

आज का मैच हारने वाली टीम बीजेपी है और बीजेपी के नेता अब इस हार को मन मारकर ही सही स्वीकार कर रहे हैं. बीजेपी के नेता मान रहे हैं कि वो इस चुनावी पिच को ठीक से समझ नहीं पाए..उन्हें उम्मीद थी कि ये पिच बहुत Flat होगी और इस पर बीजेपी अच्छा स्कोर करेगी..लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. और अब बीजेपी के नेता ये स्वीकार कर रहे हैं कि ये मैच उनकी उम्मीद से ज्यादा मुश्किल था.

अरविंद केजरीवाल ने ही इस मैच की शर्तें तय कीं और बीजेपी को उस पिच पर खेलने के लिए मजबूर कर दिया. जिसका अंदाज़ा बीजेपी के अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों को नहीं था. जिस चुनावी पिच को बीजेपी के नेता बिल्कुल सपाट और समतल समझ रहे थे..वो एक Turning Pitch निकली...और केजरीवाल की Free वाली गुगली के सामने बीजेपी की राष्ट्रवाद वाली Batting चल नहीं पाई.

बीजेपी ने अपने स्टार Batsman मैदान में तो उतारे. लेकिन ये बल्लेबाज़ भी Free वाली गुगली और विकास वाली बाउंसर को सही तरीके से खेल नहीं पाए. बीजेपी के बल्लेबाज़ बार-बार शाहीन बाग की तरफ Shot मार रहे थे. लेकिन उस तरफ की बाउंड्री बहुत दूर थी. और बीजेपी के स्टार बल्लेबाज़ों को ज्यादातर रन दौड़कर लेने पड़े. 240 सांसदों और मंत्रियों के साथ मैदान पर उतरी बीजेपी को लग रहा था कि आम आदमी पार्टी, शाहीन बाग के मुद्दे पर Clean Bold हो जाएगी. लेकिन दिल्ली की जनता ने इसे No Ball करार दे दिया.

लेकिन इस मैच को जीतने के लिए अरविंद केजरीवाल ने जिस खिलाड़ी की परफ़ॉर्मेंस को शायद सबसे करीब से देखा और समझा उनका नाम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी विकास और गुजरात मॉडल की बात करके देश के प्रधानमंत्री बने इसके फौरन बाद जब दिल्ली में दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तो केजरीवाल ने भी विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बातें की और 70 में 67 सीटें जीत लीं.

वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर अपने काम काज पर वोट मांगे. देश की जनता ने उनको प्रचंड बहुमत दिया. अब दिल्ली चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने भी एक बार फिर से अपने काम काज का हवाला देकर ही जनता से वोट मांगे और उन्हें एक बार फिर शानदार जीत हासिल हुई. अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी की परफ़ॉर्मेंस को बहुत करीब से देखा..उसका विश्लेषण किया उनके सारे राजनीतिक शॉट्स को बार बार Replay करके देखा और वही सारे Shots लगाए जो नरेंद्र मोदी लगाया करते हैं.

नरेंद्र मोदी की विकास वाली राजनीति को कॉपी करके अरविंद केजरीवाल अब अरविंद्र मोदीवाल बन गए हैं जो मोदी के विरोधी तो हैं. लेकिन राजनीति में उन्हीं के रास्ते पर चलना चाहते हैं.

लेकिन यहां बीजेपी से एक भूल हो गई. Twenty-Twenty के भारत में बीजेपी के नेता 1991 वाले Mode में चले गए. 1991 में बीजेपी ने राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू किया था और अपनी छवि एक हिंदुवादी पार्टी की बना ली थी. तब राम मंदिर, धारा 370 और यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी के मुख्य मुद्दे हुआ करते थे. और इन मुद्दों ने बीजेपी को दो से 85 सीटों पर ला दिया था. लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी है. दिल्ली युवाओं का शहर है. यहां कि 55 प्रतिशत आबादी 18 से 40 वर्ष के बीच है.

ये युवा 20 साल पुराने Mode में जाना पसंद नहीं करते. Twenty Twenty का नया Model विकास का है. और ये विकास भी Twenty Twenty की स्पीड से होना चाहिए. लोग बीजेपी से उम्मीद करते हैं कि वो नए भारत में विकास वाले मॉडल पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन इस Model के साथ अगर बीजेपी के कई नेता जनता के बीच गए भी तो उनका खेलने का तरीका Test Match जैसा था. बीजेपी के नेता टेस्ट मैच वाली रफ्तार से जनता के बीच जा रहे थे. जबकि अरविंद केजरीवाल ने One Day Style में खेलते हुए स्टेडियम की सभी Sight Screens पर Free की योजनाओं और विकास वाले Offers टांग दिए थे.

अर्थव्यस्था की सुस्त रफ्तार ने भी दिल्ली वालों को निराश किया है. भारत की GDP पिछले कई वर्षों के मुकाबले कम रफ्तार से बढ़ रही है. रोज़गार का संकट बढ़ा है और मौजूदा नौकरियां जाने के डर ने भी लोगों को चिंता में डाला है. इसके अलावा केंद्र के बजट में भी आम आदमी को कोई बड़ी राहत नहीं मिली और अब बीजेपी के नेता भी इसे हार की एक बड़ी वजह बता रहे हैं.

अब आपको दिल्ली के चुनावों के Highlights के बारे में बताते हैं.

केजरीवाल ने 2015 में मुकाबला जीतने के बाद भी मैच Practice करना नहीं छोड़ा. उनकी टीम भी लगातार लोगों के बीच जाती रही और Final मैच से पहले उनकी तैयारी बीजेपी से ज्यादा बेहतर थी.

केजरीवाल ने Slog Overs का इंतज़ार नहीं किया. उन्होंने जनता के बीच अपने काम काज का Run rate हमेशा अच्छा रखा और विकास वाली पिच पर Consistent Batting करते रहे.

चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपनी टीम में कई बदलाव किए 23 नए चेहरों को जगह दी और युवा खिलाड़ियों को मौका देकर अपनी टीम में अनुभव और नयेपन का एक संतुलन बनाया.

केजरीवाल ने पूरे मैच के दौरान इस पर नज़र बनाए रखी कि बीजेपी ने अपना कौन सा फील्डर कहां खड़ा किया है. वो बीजेपी के गेंदबाज़ों को गलती करने का मौका देते रहे. और खराब गेंद पड़ते ही वो एक ज़ोरदार छक्का जड़ देते.

केजरीवाल ने विपक्षी टीम के कप्तान यानी प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की. बल्कि कुछ मौकों पर तो वो उनके काम काज की तारीफ भी कर देते थे. मैच के आखिरी क्षणों में बीजेपी ने केजरीवाल एंड टीम पर बहुत दबाव बनाया. ताकि वो गलती करें और उनका विकेट गिराया जा सके. लेकिन केजरीवाल एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह पिच पर डटे रहे. अपना स्कोर बेहतर करते रहे और उनका दिया हुआ Target बीजेपी हासिल नहीं कर पाई.

अब ये समझिए कि बीजेपी के लिए इस Macth के Highlights क्या रहे.
बीजेपी ने Middle Overs में बहुत Slow Batting की. Slog Overs में काफी ज़ोर लगाया. लेकिन तब तक Asking rate बहुत ज्यादा हो चुका था. और आखिरकार बीजेपी इस मैच को हार गई. बीजेपी ने इस मैच के लिए Practice भी समय पर शुरू नहीं की. बीजेपी के पास खिलाड़ी तो बहुत शानदार थे. लेकिन जिन्हें पिच पर उतरकर रन बनाने थे. वो आपसी राजनीति में उलझे रहे. दिल्ली का कप्तान कौन होगा यानी बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस मुद्दे पर दिल्ली बीजेपी के कई बड़े नेता आपस में बंट चुके थे. और दिल्ली में बीजेपी के जो नेता मुख्यमंत्री बनने की रेस में थे. वो एक दूसरे को टांग खींचकर गिराने में लगे रहे.

बीजेपी को लगा कि शाहीन बाग़ की तरफ की बाउंड्री बहुत फास्ट है. और वहां लगातार Shots मारकर अच्छा स्कोर किया जा सकता है. लेकिन इसी जल्दबाज़ी में बीजेपी के कई नेता बाउंड्री पर ही कैच आउट हो गए.
बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के मुकाबले ज्यादा Sledging की. विपक्षी टीम पर कई टिप्पणियां की अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी तक कह दिया लेकिन ये Sledging बीजेपी को मैच जितवा नहीं पाई.

बीजेपी ने इस मैच में World Cup जीतने वाली टीम तो उतार दी. लेकिन टीम के कई खिलाड़ी ये भूल गए कि चुनाव भी एक Team Sport की तरह होता है. ये खिलाड़ी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की चुनावी Skills पर भरोसा कर रहे थे. इन्होंने अपना खेल सुधारने की कोई कोशिश नहीं की. टीम के बाकी के खिलाड़ियों के खराब प्रदर्शन की वजह से बीजेपी ये मुकाबला बुरी तरह हार गई.

सबसे बड़ा हाईलाइट ये है कि राष्ट्रवाद की लहर पर सवार बीजेपी आम आदमी पार्टी को एक कमज़ोर टीम मानती रही और बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को प्रचार में कोई खास जगह ही नहीं दी. जबकि राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी ने जितने भी मुद्दे उठाए उनमें से कोई भी नहीं चला चाहे वो धारा 370 हो, शाहीन बाग़ हो, पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक हो या फिर राम मंदिर का मुद्दा.

इसका नतीजा ये हुआ कि विपक्षी टीम स्थानीय मुद्दों पर एक-एक करके रन चुराती रही जबकि बीजेपी इस उम्मीद में बैठी रही कि हर गेंद को राष्ट्रवाद के नाम पर Stadium के बाहर भेज देगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

हर टीम में कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो एक विशेष स्टाइल में Batting या Bowling करते हैं. इस चुनाव प्रचार के दौरान वो खिलाड़ी छाए रहे जिनका पसंदीदा स्टाइल ध्रुवीकरण है. ध्रुवीकरण के सबसे ज्यादा आरोप बीजेपी के नेताओं पर लगे कहा गया कि बीजेपी के नेता हिंदुओं का वोट हासिल करने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं.

लेकिन नतीजे बताते हैं कि ध्रुवीकरण हिंदुओं का नहीं बल्कि मुसलमानों का हुआ है. दिल्ली में करीब 20 लाख मुस्लिम वोटर्स हैं और करीब 10 सीटें ऐसी हैं. जहां मुस्लिम मतदाता हार और जीत का फैसला कर सकते हैं. 
इन्हीं में से 4 सीटें ऐसी हैं. जहां मुस्लिम प्रत्याशी बहुत भारी अंतर से जीते हैं. ओखला जहां पर शाहीन बाग भी है. वहां से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अमानतुल्ला खान 71 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीते हैं.

मटियामहल से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार शोएब इकबाल की जीत का अंतर भी 50 हज़ार से ज्यादा है. सीलमपुर से अब्दुर रहमान भी 36 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीते हैं. जबकि बल्लीमारान से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार इमरान हुसैन की जीत का अंतर भी 36 हज़ार से ज्यादा है. जिन 10 सीटों पर उम्मीदवारों ने सबसे ज्यादा अंतर से जीत दर्ज की है. उनमें से 4 सीटें आम आदमी पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों ने जीती हैं.

अमानतुल्लाह खान ओखला सीट से जीते हैं. और शाहीन बाग इसी सीट के अंतर्गत आता है. सभी मुस्लिम उम्मीदवारों में उनकी जीत का अंतर सबसे ज्यादा है. अब आप सोचिए कि अगर हिंदुओं का ध्रुवीकरण हुआ होता तो क्या नतीजे ऐसे ही आते? ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि हिंदुओं ने धर्म निरपेक्षता का पालन किया और अपने वोटों को एक धर्म या जाति की तरफ केंद्रित नहीं होने दिया. जबकि शाहीन बाग़ के बाद से दिल्ली के ज्यादातर मुसलमानों ने एकजुट होकर वोट डाले और ये सुनिश्चित किया कि उनका उम्मीदवार भारी अंतर से जीत जाए. यानी जो लोग ये आरोप लगा रहे थे कि शाहीन बाग़ का मुद्दा उछालकर बीजेपी हिंदुओं के वोट हासिल करना चाहती है. उन लोगों का आंकलन पूरी तरह से गलत साबित हुआ.

हिंदुओं के कंधों पर धर्म निरपेक्षता की जो जिम्मेदारी 1947 में डाल दी गई थी. हिंदू आज भी उसी जिम्मेदारी का पालन कर रहे हैं. और बहुसंख्यक होने के बावजूद हिंदू आसानी से ध्रुवीकरण का शिकार नहीं होते.

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