Haldwani Banbhoolpura Eviction: रेलवे के मुताबिक उक्त जमीन पर 4,365 अतिक्रमणकारी हैं जबकि जमीन पर काबिज लोगों का दावा है कि वे जमीन के मालिक हैं. विवादित जमीन पर 4,000 से अधिक परिवारों के लगभग 50,000 लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम समुदाय के हैं.
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Haldwani Supreme Court: पिछले साल पांच जनवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे के दावे वाली 29 एकड़ जमीन पर से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. कोर्ट ने कहा था कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’है और 50,000 लोगों को रातोंरात नहीं हटाया जा सकता. बाद में केंद्र ने याचिका दायर कर उस आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया. याचिका में कहा गया कि रेलवे परिचालन को सुगम बनाने के लिए उक्त भूमि तत्काल उपलब्ध कराई जानी चाहिए क्योंकि पटरियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवार ढह गई है. इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वाले 50,000 से अधिक लोगों के पुनर्वास के लिए केंद्र और रेलवे के साथ बैठक करें.
सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी देरी के राज्य सरकार को बुनियादी ढांचा विकसित करने और रेलवे लाइन के लिए आवश्यक जमीन की पहचान करने का निर्देश दिया. उसने अतिक्रमण हटाने के कारण प्रभावित होने वाले परिवारों की पहचान करने का भी निर्देश दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि भूमि पर अधिकार का दावा करने वालों को उचित अवसर दिया जाना चाहिए. साथ ही उसने उत्तराखंड सरकार को ऐसी जगह का सुझाव देने का निर्देश दिया, जहां ऐसे प्रभावित/ हटाए गए परिवारों का पुनर्वास किया जा सके.
रेलवे के मुताबिक उक्त जमीन पर 4,365 अतिक्रमणकारी हैं जबकि जमीन पर काबिज लोगों का दावा है कि वे जमीन के मालिक हैं. विवादित जमीन पर 4,000 से अधिक परिवारों के लगभग 50,000 लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम समुदाय के हैं.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को यह योजना बतानी होगी कि इन लोगों का कैसे और कहां पुनर्वास किया जाएगा. अदालत ने कहा, ‘‘यह मानते हुए कि वे अतिक्रमणकारी हैं, लेकिन वे भी इंसान हैं और दशकों से वहां रह रहे हैं. उन्होंने पक्के मकान भी बना लिए हैं, तो इस स्थिति से कैसे निपटा जाए.’’ पीठ ने कहा, ‘‘अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं और साथ ही लोगों को अतिक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित भी नहीं कर सकतीं. यह बहुत ही विचित्र स्थिति है.’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां भी शामिल हैं.
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जनहित याचिका की जरूरत क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की शुरुआत में इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि रेलवे ने एक निजी व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका के आधार पर उत्तराखंड हाई कोर्ट से बेदखली का आदेश प्राप्त किया. पीठ ने सवाल किया, ‘‘ क्या आपने अतिक्रमण करने वालों को कोई नोटिस जारी किया? आप जनहित याचिका की आड़ क्यों ले रहे हैं? अगर वहां पर अतिक्रमणकारी हैं तो रेलवे को अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी करना चाहिए.’’
रेलवे की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत को सूचित किया कि सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम 1971 के तहत भी अतिक्रमकारियों के खिलाफ कार्यवाही लंबित है.
भाटी ने अदालत से ‘क्रमिक आधार पर’ रोक हटाने या इसमें संशोधन करने का अुनरोध करते हुए कहा कि अतिक्रमणकारियों के अवैध कब्जे के कारण रेलवे की कई विस्तार योजनाएं रुकी हुई हैं. उन्होंने अदालत को बताया कि मौजूदा समय में 1200 झोपड़ियों को हटाने की जरूरत है और स्पष्ट किया कि रेलवे के पास अतिक्रमकारियों के पुनर्वास के लिए कोई योजना नहीं है.
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स्थानीय लोगों ने जताई खुशी
हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासियों ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट का राज्य सरकार को रेलवे की अतिक्रमित जमीन पर रहने वालों के पुनर्वास के लिए एक योजना दाखिल करने का निर्देश जनहित में है. उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट चाहे जो भी निर्णय ले, वह उनके पक्ष में ही होगा.
बनभूलपुरा के निवासी और समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अब्दुल मतीन ने कहा, ‘‘4365 परिवारों और 50,000 लोगों को रातोंरात बेदखल करना न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध है. उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए अंतरिम निर्देश स्वागतयोग्य हैं.’’
एक स्थानीय निवासी एवं सामाजिक कार्यकर्ता सरताज आलम ने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देश प्रशंसनीय हैं. अदालत चाहे जो भी निर्णय ले, वह निश्चित रूप से जनहित में ही होगा.’’
हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश ने कहा कि राज्य सरकार और रेलवे को गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अगर रेलवे गोला नदी के किनारे से सुरक्षा दीवार बनाती है तो उसे कहीं जमीन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. रेलवे और राज्य सरकार को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट की तरह गरीबों के हित में निर्णय लेना चाहिए.