Supreme Court Judgement On Mining Royalty: सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ ने 8:1 से फैसला सुनाया है कि खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों के पास है.
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Supreme Court Judgement Today: राज्यों के अधिकार से जुड़े एक अहम फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खनिज अधिकारों पर टैक्स वसूलने का हक संसद के पास नहीं है. यह अधिकार राज्य सरकारों के पास है. 9 जजों की संविधान पीठ ने 8-1 से फैसला सुनाया कि जब तक संसद कोई सीमा नहीं लगाती, तब तक खनिज अधिकारों पर कर लगाने का राज्य का पूर्ण अधिकार अप्रभावित रहता है. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए अलग फैसला दिया.
सुप्रीम कोर्ट के 8 जजों ने बहुमत से फैसला दिया कि खदान पट्टेधारकों द्वारा खनिज भूमि मालिकों को दी जाने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जा सकता. SC ने कहा कि रॉयल्टी, खदान के लाइसेंस धारक और राज्य सरकार के बीच एक तरह के कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा है. अदालत ने कहा कि सरकार को भुगतान किए जाने वाली हर राशि को टैक्स नहीं माना जा सकता है.
रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं: सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा, 'यदि संसद के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है तो क्या वह उस पर कर लगाने के लिए अवशिष्ट अधिकारों का उपयोग कर सकती है? इसे नकारात्मक माना जाएगा. कराधान का क्षेत्र नियामक कराधान प्रविष्टियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है. चूंकि सूची 1 की प्रविष्टि 54 एक सामान्य प्रविष्टि है, इसलिए इसमें कराधान की शक्ति शामिल नहीं होगी.
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सीजेआई ने आगे कहा, 'यदि संसद के पास सूची 1 की प्रविष्टि 54 के अंतर्गत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है, तो क्या वह ऐसा करने के लिए अवशिष्ट शक्ति का उपयोग कर सकती है? इसका उत्तर नकारात्मक है. सूची 2 के अंतर्गत गणना करना राज्यों को संवैधानिक रूप से सौंपा गया कार्य है. यह न्यायालय उससे बंधा हुआ है. कराधान के क्षेत्र को कराधान प्रविष्टि से प्राप्त किया जाना चाहिए, न कि नियामक प्रविष्टि से.'
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SC ने फैसले में कहा कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है. रॉयल्टी एक संविदात्मक प्रतिफल है जो खनन पट्टादाता द्वारा पट्टेदार को दिया जाता है. सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए कर नहीं माना जा सकता क्योंकि किसी कानून में बकाया राशि की वसूली का प्रावधान है.