ZEE जानकारी: अब मोबाइल फ़ोन चार्जिंग पर लगा कर सोते हैं, किताबें पुराने दोस्तों की तरह हो गई हैं
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ZEE जानकारी: अब मोबाइल फ़ोन चार्जिंग पर लगा कर सोते हैं, किताबें पुराने दोस्तों की तरह हो गई हैं

Pew Research Center के मुताबिक अमेरिका में पिछले 1 वर्ष के दौरान किताब पढ़ने वाले लोगों की संख्या में करीब 6 प्रतिशत की कमी आई है.

ZEE जानकारी: अब मोबाइल फ़ोन चार्जिंग पर लगा कर सोते हैं, किताबें पुराने दोस्तों की तरह हो गई हैं

आपको कोई किताब पढ़े हुए... कितने दिन हो गये. आपमें से बहुत से लोगों का जवाब ये होगा कि बहुत दिन हो गये. कहा जाता है कि किताबें.... इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है लेकिन डिजिटल दुनिया के ज़माने में ये दोस्ती थोड़ी कच्ची हो गई है. नये जमाने में Smart Phones और Tabs ....लोगों के बहुत करीबी दोस्त बन गये हैं. ये ऐसे दोस्त हैं जो एक Touch पर आपको दुनिया की तमाम जानकारियां उपलब्ध करवा देते हैं. लेकिन जानकारी और ज्ञान में बहुत फ़र्क होता है. आज भी बहुत से लोग किताब के पढ़ने के शौकीन हैं लेकिन हैरानी बात ये है कि किताब पढ़ने वालों की संख्या... किताब खरीदने वालों की तुलना में कम हैं. ये अजीब सा विरोधाभास है कि लोग किताबें खरीद तो रहे हैं.. लेकिन उनके पास पढ़ने का समय नहीं बचता. जब भारत के अलग अलग शहरों में पुस्तक मेले शुरू होते हैं.. तब लोगों को एहसास होता है कि उन्हें किताबों के करीब जाना चाहिए... 

 वर्ष 2013 में हुए एक सर्वे के मुताबिक देश के 75 प्रतिशत लोगों का मानना है कि टीवी देखने और इंटरनेट पर समय बिताने की तुलना में किताबें पढ़ना ज़्यादा फायदेमंद हैं, जबकि 48 प्रतिशत युवाओं ने माना कि टीवी और इंटरनेट की वजह से किताबें पढ़ने का चलन कम हो गया है. 77 प्रतिशत लोगों का मानना है कि ज्ञान पाने का ज़रिया सिर्फ़ किताबें ही हो सकती है. World Culture Score Index के एक सर्वे के मुताबिक भारत में एक व्यक्ति हर रोज़ औसतन डेढ़ घंटे किताबें पढ़ता है, इस सर्वे में कोर्स की किताबें पढ़ने वाले Students भी शामिल हैं. हालांकि पढ़ने की मजबूरी ना हो.. तो अलग से कोशिश करके किताब पढ़ने वालों की संख्या कम होगी.

दूसरी तरफ भारत के लोग TV देखने में हर रोज़ औसतन 3 घंटे 16 मिनट और मोबाइल फोन पर औसतन 2 घंटे 50 मिनट बिताते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि टीवी और मोबाइल फोन पर समय बिताने वालों की तुलना में पढ़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हैं. किताबें पढ़ने से याददाश्त भी तेज होती है. कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि इंटरनेट  पर देखी गई चीज़ों के तुलना में किताबों में पढ़ी गई बातें लंबे समय तक दिमाग में रहती हैं. लेकिन इंटरनेट का Addiction ऐसा है.. कि किताबों के ये फायदे किसी को दिखाई नहीं देते.

Pew Research Center के मुताबिक अमेरिका में पिछले 1 वर्ष के दौरान किताब पढ़ने वाले लोगों की संख्या में करीब 6 प्रतिशत की कमी आई है.. और आने वाले वर्षों में इसमें और कमी आएगी. ये ट्रेंड भारत में भी देखने को मिलेगा.. क्योंकि भारत तेज़ी से डिजिटल युग की तरफ बढ़ रहा है. अक्सर किताब ना पढ़ने के मामले में लोगों कि ये दलील हो होती है कि उन्हें किताबें पढ़ने का समय नहीं मिलता... कुछ लोग ये भी कहते हैं कि मोबाइल और Tabs के ज़माने में..... कागज़ वाली किताबें पढ़ना...थोड़ा Outdated हो गया है.  WhatsApp, Facebook, Twitter और Instagram के दौर में किताबों के साथ समय कम बीतता है. पहले लोग अपने सिरहाने किताबें रखकर सोते थे लेकिन अब मोबाइल फ़ोन.... चार्जिंग पर लगा कर सोते हैं. किताबें पुराने दोस्तों की तरह हो गई हैं. वो अब ड्राइंग रूम की सज्जा के काम आती हैं. किताबों के साथ इंसान के रिश्ते पर हमने Friday Special DNA टेस्ट तैयार किया है.. ये विश्लेषण आपको किताबों के करीब ले जाएगा.. इससे आपका ज्ञान बढ़ेगा और आपका नज़रिया भी साफ होगा.

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