Zee जानकारी : दहेज प्रथा बुराई है या फिर सामाजिक प्रतिष्ठा
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Zee जानकारी : दहेज प्रथा बुराई है या फिर सामाजिक प्रतिष्ठा

Zee जानकारी : दहेज प्रथा बुराई है या फिर सामाजिक प्रतिष्ठा

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि जो भी व्यक्ति दहेज को शादी की ज़रूरी शर्त बना देता है वो अपनी शिक्षा, और अपने देश को बदनाम करता है और साथ ही पूरी महिला जाति का अपमान भी करता है। महात्मा गांधी ने ये बात भारत की आज़ादी से भी पहले कही थी लेकिन विडंबना देखिए कि हमारे देश के लोग आज भी दहेज मांगते हैं...और दहेज के रूप में जो नोट उन्हें मिलते हैं..उन पर भी महात्मा गांधी की ही तस्वीर होती है। यानी दहेज लेने और देने के मामले में हमारा समाज बेशर्मी की सारी हदें पार कर जाता है। लेकिन आज हम दहेज प्रथा का विश्लेषण इसलिए कर रहे हैं..क्योंकि महाराष्ट्र में समाजशास्त्र की एक किताब में दहेज पर छपे Chapter ने विवाद को जन्म दे दिया है। 

महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की 12वीं कक्षा की Sociology की किताब में एक Chapter है जिसका नाम है ‘Major Social Problems in India यानी भारत की प्रमुख सामाजिक बुराइयां..इस Chapter में बताया गया है कि दहेज प्रथा भारत की सामाजिक बुराइयों में से एक है.... । इस किताब में दहेज प्रथा के कारणों और प्रभावों पर भी चर्चा की गई है। दहेज प्रथा के कारणों में धर्म, जाति व्यवस्था, सामाजिक प्रतिष्ठा, और मुआवज़े के सिद्धांत जैसे कारणों का ज़िक्र है। लेकिन इनमें से जो कारण सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है वो है बदसूरती और शारीरिक विकलांगता। 

किताब में दहेज मांगने के कारणों का जिक्र करते हुए Ugliness शब्द का इस्तेमाल किया गया है। किताब में लिखा गया है कि अगर दुल्हन Ugly यानी बदसूरत होती है। या फिर Handicapped यानी विकलांग होती है..तो लड़की के माता-पिता को उसकी शादी करवाने में काफी दिक्कत होती है। ऐसे में दूल्हा और उसके घरवाले ज्यादा दहेज मांगते हैं। जिसकी वजह से लड़की के माता-पिता विवश हो जाते हैं...और उन्हें दूल्हे के घरवालों की मर्ज़ी के मुताबिक दहेज देना पड़ता है। इससे दहेज प्रथा को बढ़ावा मिलता है।

किताब के ये अंश पढ़कर ये पता लगाना मुश्किल है..कि इसमें दहेज प्रथा को एक बुराई बताया गया है..या फिर उसके कारण गिनाकर उसे न्यायसंगत ठहराने की कोशिश की गई है। किताब में दहेज के कारणों में सामाजिक प्रतिष्ठा यानी social prestige को भी शामिल किया गया है। जिसके बारे में लिखा गया है कि दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रतिष्ठा बन चुकी है। 

ज़ाहिर है किताब में दहेज प्रथा के जो कारण बताए गए हैं..उनमें से बहुत सारे कारण हमारे समाज की हकीकत हैं। ये भी सच है कि लोगों ने दहेज को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। लेकिन सवाल ये है कि बच्चों को पढ़ाई जाने वाली एक किताब में ऐसे कारणों का जिक्र एक सामाजिक मजबूरी की तरह क्यों किया जाता है ?

भारत.... वर्ष 2014 में पोलियो मुक्त हो गया था...वर्ष 2020 तक हमारा देश TB जैसी बीमारी से भी मुक्त हो जाएगा, भारत एक दिन एड्स और कैंसर जैसी बीमारियों को भी हरा सकता है..लेकिन जब तक भारत दहेज प्रथा जैसी बुराईयों को अपने समाज में जगह देगा..तब तक दहेज का कैंसर देश की बहू-बेटियों की जान लेता रहेगा। 

वर्ष 2016 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने संसद में एक आंकड़ा पेश किया था..जिसके मुताबिक वर्ष 2012 से वर्ष 2014 के बीच भारत में दहेज की वजह से करीब 25 हज़ार महिलाओं की या तो हत्या कर दी गई..या उन्होंने आत्महत्या कर ली। यानी भारत में हर रोज़ करीब 20 महिलाओं की मौत की वजह दहेज प्रथा होती है।

दहेज प्रथा के खिलाफ महापुरुषों के कई कथन स्कूल की किताबों में पढ़ाए जाते हैं। इन महापुरुषों की जयंती पर कई बार अवकाश भी होता है। लेकिन छुट्टी वाले दिन भी हम बैठकर दहेज जैसी बुराई के बारे में बात नहीं करते। लड़का जितना पढ़ा लिखा और जितने बड़े पद पर होता है..उसके घर वाले इसी आधार पर लाखों या करोड़ों रुपये के दहेज की मांग करते हैं। इसका दूसरा पहलू ये है कि लड़की के घर वाले भी ऐसे वर की तलाश करते हैं...जो पढ़ा लिखा हो...जिसके पास अच्छी नौकरी हो..कार हो..और अपना घर हो। ऐसे लोगों को आम बोलचाल की भाषा में Well Settled भी कहा जाता है। कई बार लड़के और लड़की को प्रेम विवाह इसलिए नहीं करने दिया जाता..क्योंकि या तो लड़का बड़े पद पर नहीं होता है..या उसका खुद का घर नहीं होता..कार नहीं होती । या फिर दूल्हा और दुल्हन अलग अलग जातियों से होते हैं।

भारत में शादियों के विज्ञापन में भी अक्सर Fair और Very Fair जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है..यानी भारत में रहने वाले ज्यादातर लोग अपने लिए गोरा जीवन साथी चुनना ही पसंद करते हैं । दूल्हे और दुल्हन के रंग रूप को शादी में अड़चन की तरह देखा जाता है। छोटी छोटी शारीरिक कमियों की वजह से भी रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं..या फिर मोटा दहेज मांगा जाता है। साफ रंग वाली बहू पाना आज भी भारत के ज्यादातर परिवारों की प्राथमिकता होती है। ज़ाहिर है ऐसी स्याह सोच के साथ..एक साफ सुथरे समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है 

ये प्रथा बहुत Unfair है..और बहुत अनैतिक है। त्वचा के रंग और Physical Appearance से.. किसी इंसान के बारे में राय बनाना.. अपने आप में एक दूषित विचारधारा है.. और इस विचारधारा को मिटाने के लिए एक DNA टेस्ट करना ज़रूरी है। हमारे इस विश्लेषण के दो पहलू हैं। पहला है दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई..और दूसरा पहलू है इस बुराई को परंपरा की आड़ में जीवित रखना और इस प्रथा के नाम पर लड़की के मां-बाप की मजबूरी का फायदा उठाना।

सरकार दहेज प्रथा के खिलाफ बड़े बड़े विज्ञापन बनाती है..जिसमें दहेज लेने वालों को नसीहत दी जाती है कि वो ऐसा ना करें..क्योंकि दहेज लेना, और दहेज देना दोनों ही दंडनीय अपराध हैं। लेकिन बाकी बातों की तरह इन विज्ञापनों का भी कोई असर नहीं होता है। आजकल लोग ऐसी बहू की तलाश करते हैं जिसने उच्च शिक्षा हासिल की हो..और वो नौकरी भी करती हो..लेकिन ऐसी बहू मिल जाने पर भी लोग दहेज मांगते हैं। 

आज हमनें पूरे दिन दहेज के विषय पर रिसर्च किया तो हमें कुछ चौकाने वाले आंक़ड़े मिले । रिसर्च के दौरान हमें पता चला कि अगर दूल्हा सरकारी नौकरी में है..और ऊंचे पद पर है तो उसे सबसे ज्यादा दहेज मिलता है। अलग अलग News Reports को आधार बनाकर जब हमनें गणना की तो पता चला कि... 

- IAS अधिकारी को दहेज के रूप में 60 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक मिलते हैं। और ये रकम इससे भी ज्यादा हो सकती है। 

- इसी तरह एक IPS अधिकारी दहेज के रूप में 40 से 80 लाख रुपये..या इससे भी ज्यादा की रकम मांग लेता है । 

- सॉफ्टवेयर इंजीनियर लड़के के माता पिता अक्सर 30 से 40 लाख रुपये तक का दहेज मांगते हैं। 

- अगर लड़का डॉक्टर है..तो माता पिता चाहते हैं कि उनके बेटे को 40 से 60 लाख रुपये तक दहेज के रूप में मिल जाएं....

- बैंक में काम करने वाले को 20 से 25 लाख और Peon के रूप में नौकरी करने वाले को भी 5 लाख रुपये तक के दहेज की उम्मीद होती है। 

दूल्हों की ये Rate List गर्व का नहीं..बल्कि शर्म का विषय है। हमनें आपको ये Rate List सिर्फ इसलिए बताई है..ताकि आपको हमारे समाज के विकृत चेहरे का अंदाज़ा हो पाए...हम ये नहीं कह रहे कि सभी लोग दहेज मांगते हैं..और सभी लोग इसका समर्थन करते हैं...हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि जो लोग ऐसा करते हैं...उन्हें शर्म आनी चाहिए...और वो एक तरह से समाज के खलनायक हैं। हमें अपने बीच मौजूद इन खलयानकों की तलाश करनी चाहिए..और इन्हें समाज में अलग थलग कर देना चाहिए...क्योंकि जो असली मर्द होता है..वो दहेज नहीं लेता...लेकिन हमारा समाज ऐसा नहीं करता..बल्कि एक दूसरे को दहेज के लिए प्रोत्साहित करता है। 

जब हम दहेज के विषय पर रिसर्च कर रहे थे। तो हमें एक Website के बारे में पता चला.. इस साइट का नाम है-- dowrycalculator.Com इस साइट पर लिखा है Dedicated to all the match making aunties of India यानी ये साइट जोड़ियां मिलाने वाली महिलाओं को समर्पित हैं। इस साइट पर एक Calculator है..जिसमें दूल्हा अपनी जानकारियां भरकर दहेज की गणना कर सकता है। हम ये नहीं जानते कि ये Website एक कटाक्ष है..या हमारे समाज की अपाहिज सोच का नतीजा। जिस तरह किसी Loan की Monthly Installment Calculate की जाती है...उसी तरह दहेज की गणना की जा रही है । हमारी ये रिपोर्ट देखकर आपके मन में सवाल उठेगा कि आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं ? 

भारत में हर साल करीब 1 करोड़ 20 लाख शादियां होती हैं...हर शादी में अलग अलग तरह के खर्चे होते हैं.. कुछ लोग शादियों में बहुत ज़्यादा पैसे खर्च करते हैं..और ज़्यादा दहेज देते हैं...  तो कुछ लोग बहुत ही सीमित संसाधनों में शादी कर लेते हैं और ना के बराबर दहेज देते हैं.. इसलिए एक शादी के खर्च का सीधा सीधा अनुमान लगाना तो मुश्किल है.. लेकिन अगर सारी शादियों का औसत निकाला जाए तो औसतन हर शादी में करीब 5 लाख रूपये दहेज के तौर पर दिए जाते हैं। इस हिसाब से भारत में दहेज का कारोबार करीब 6 लाख करोड़ रुपये का है। 

आपने देखा होगा.. कि कई शादियों में दहेज के सामान की नुमाइश की जाती है। लोगों को दिखाया जाता है कि दूल्हे को कितना दहेज मिला है..दहेज में मिली कार, मोटरसाइकिल और दूसरे सामान को भी सजा कर.. शादी के Venue पर ही खड़ा कर दिया जाता है । लेकिन शादी में आया कोई भी मेहमान इस सामान की तस्वीर खींच कर पुलिस में शिकायत नहीं करता। कोई भी मेहमान ये नहीं कहता कि ये गलत है..ज़्यादातर लोगों की दिलचस्पी या तो खाने में होती है.. या फिर शादी के इंतज़ामों की बुराइयां निकालने में। दूल्हा दुल्हन के कपड़ों पर चर्चा होती है। Return Gift का इंतज़ार किया जाता है। लोग लिफाफों पर दूल्हे और दुल्हन को शगुन देते हैं। कई शादियों में तो इस शगुन की भी गणना की जाती है। Per Plate खाने पर आने वाले खर्च की चर्चा की जाती है। यानी कुल मिलाकर दो लोगों के विवाह को एक व्यापार में बदल दिया जाता है। 

दूल्हा और दुल्हन को एक Price Tag के साथ पेश किया जाता है। लेकिन कोई इसका विरोध नहीं करता ..दहेज की प्रथा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है..भारत समेत अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में भी दहेज प्रथा प्रचलित है। लेकिन हमें लगता है कि ये एक बुराई है..एक बीमारी है और इसे हर हाल में खत्म किया जाना चाहिए...अगर कोई मां-बाप अपनी खुशी से तोहफा देते हैं..तो इसमें कोई बुराई नहीं है..लेकिन ये लेन-देन.. दबाव, सामाजिक प्रतिष्ठा, रंग रूप, जाति या धर्म पर आधारित नहीं होना चाहिए। जब तक हम दहेज प्रथा जैसी बुराइयों को खत्म नहीं करते..हम एक सुपरपावर नहीं बन सकते।

वैसे इस खबर के दूसरे पहलू पर भी बात होनी चाहिए..दूसरा पहलू ये है कि सरकार ने दहेज प्रथा को रोकने के लिए 498 A जैसी कड़ी कानूनी धारा बनाई है। लेकिन कई बार इस धारा का गलत इस्तेमाल भी किया जाता है। दहेज मांगने से लड़की का जीवन बर्बाद होता है..लेकिन दहेज की झूठी शिकायत करने से दूल्हे और उसके पूरे परिवार का जीवन बर्बाद हो जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अब पुलिस.. 498 A जैसी धाराओं में मामला दर्ज करके..सीधे कार्रवाई करने की बजाय पहले जांच करती है।

लेकिन फिर भी इस धारा का गलत इस्तेमाल रुक नहीं रहा है..और कई महिलाएं इस धारा का गलत इस्तेमाल करके बेकसूर सास ससुर और अपने पति को परेशानी में डाल देती है।..हमें लगता है कि ये दहेज प्रथा से जुड़ा एक ऐसा पहलू जिस पर हमारे देश में बहुत कम बात होती है। इसलिए इस कानून का दुरुपयोग करने वालों को भी कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। कुल मिलाकर बात ये है कि चाहे हमारे देश में कितने भी कड़े कानून बना लिए जाएं.. लोग उसके दुरुपयोग का रास्ता निकाल ही लेते हैं।

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