ZEE जानकारीः पटाखों को लेकर सुप्रीम के आदेशों का पालन कैसे होगा?
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ZEE जानकारीः पटाखों को लेकर सुप्रीम के आदेशों का पालन कैसे होगा?

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाने का आदेश दिल्ली और NCR में लागू होगा, पूरे देश में नहीं. 

ZEE जानकारीः पटाखों को लेकर सुप्रीम के आदेशों का पालन कैसे होगा?

दीवाली अभी दूर है, लेकिन उससे पहले ही दिल्ली और NCR की ये हालत हो गई है. दिल्ली में कई ऐसे लोग हैं, जो इस बार दीवाली पर शहर छोड़कर बाहर जाने का Plan बना रहे हैं. ताकि उनकी दीवाली प्रदूषण से मुक्त हो सके. प्रदूषण को लेकर भले ही सरकारें सख्त न हों, लेकिन सुप्रीम कोर्ट सख्त है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष भी पटाखे बेचने पर रोक लगाई थी. और इस साल भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और NCR में दीवाली पर सिर्फ 2 घंटे के लिए ही पटाखे जलाने की अनुमति दी है. हालांकि इस आदेश में कुछ Confusion था, इसलिए आज सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्थिति साफ की है. 

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाने का आदेश दिल्ली और NCR में लागू होगा, पूरे देश में नहीं. इसके अलावा ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल का आदेश भी सिर्फ दिल्ली और NCR पर ही लागू होगा. देश के दूसरे राज्यों में भी दो घंटे तक पटाखे जलाने की समय सीमा होगी, लेकिन पटाखे जलाने का समय क्या होगा... ये राज्य सरकारें तय करेंगी.

लेकिन समस्या इस बात की है कि सुप्रीम के आदेशों का पालन कैसे होगा? पिछले वर्ष दीपावली से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और NCR में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इसके बाद भी दिवाली पर पटाखे जलाए गए . और हमें ऐसा लगता है कि इस साल भी ऐसा ही होगा. सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी कई ऐसे आदेश दे चुका है, जो पूरी तरह से लागू ही नहीं हुए. हम आपको 3 साल पहले का एक उदाहरण देना चाहते हैं. 

3 साल पहले 7 अप्रैल 2015 को National Green Tribunal यानी NGT ने दिल्ली और NCR में 10 साल पुराने डीज़ल के वाहनों पर और 15 साल पुराने Petrol के वाहनों पर रोक लगा दी थी. इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद 20 अप्रैल 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने NGT के आदेश पर मुहर लगाई. लेकिन इसके बावजूद दिल्ली और NCR में ऐसी गाड़ियां चलती हैं. 

यही वजह है कि कल ही सुप्रीम कोर्ट को ये कहना पड़ा कि अगर 10 साल पुरानी डीज़ल या 15 साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियां दिखें तो उन्हें तुरंत सीज़ किया जाए और ऐसी गाड़ियों के नंबर दिल्ली सरकार का परिवहन विभाग अपनी Website पर डाले. 

यानी अभी तक ऐसी गाड़ियां दिल्ली और NCR की सड़कों पर चल रही हैं. समस्या इस बात की है कि हमारे पास ऐसा सिस्टम नहीं है, जो इन आदेशों का पालन करवाए. पुलिस के ऊपर अदालत के आदेशों का पालन करवाने की बड़ी ज़िम्मेदारी होती है, लेकिन दिल्ली और NCR में पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों की कमी है. 

दिल्ली में इस वक्त कुल 81 हज़ार 703 पुलिसकर्मी हैं, जबकि यहां 91 हज़ार पुलिसकर्मियों की ज़रूरत है. इसी तरह नोएडा में 3 हज़ार 84 पुलिसकर्मी हैं, जबकि ज़रूरत करीब साढ़े 4 हज़ार पुलिसकर्मियों की है. गाज़ियाबाद में भी करीब 1 हज़ार 900 पुलिसकर्मी हैं और ज़रूरत है 2400 की. इसी तरह गुरुग्राम में 5 हज़ार 650 पुलिसकर्मी हैं, जबकि यहां 6 हज़ार 850 पुलिस कर्मियों की ज़रूरत है.

फरीदाबाद में 3 हज़ार 630 पुलिसवाले हैं, जबकि 5 हज़ार 400 की ज़रूरत है. आपको बता दें कि इनमें ट्रैफिक पुलिस के कर्मचारी भी शामिल हैं. ज़ाहिर है ऐसे हालात में अदालत के आदेशों का पालन कैसे होगा ? वैसे सुप्रीम कोर्ट के और भी बहुत से आदेश हैं, जिनका पालन नहीं हो रहा है. 

इनमें सबसे बड़ा आदेश तो हाल का ही है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटाया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का लगातार विरोध हो रहा है. राज्य सरकार की पूरी कोशिशों के बाद भी ये आदेश लागू नहीं हो पाया. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार लाउड स्पीकर के इस्तेमाल को लेकर गाइडलाइंस जारी की हैं, लेकिन पूरे देश में आज भी हर रोज़ इन गाइडलाइंस का उल्लंघन होता है . 

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जलीकट्टू के खेल पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन ये लागू नहीं हो पाया. क्योंकि राज्य सरकार इस आदेश के खिलाफ कानून लेकर आ गई. इसी साल दिल्ली में अतिक्रमण को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा आदेश दिया था. अदालत ने ये कहा था कि पूरी दिल्ली में जहां भी अतिक्रमण है, उसे तुरंत हटाना चाहिए. लेकिन ये आदेश भी लागू नहीं हो पाया. 

अब हम आपको एक दिलचस्प तस्वीर दिखाना चाहते हैं. ये तस्वीर दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर की है. जहां दिल्ली ट्रैफिक पुलिस का एक बोर्ड लगा हुआ है. और इस पर लिखा हुआ है - दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश है कि इस इलाके में Parking नहीं होनी चाहिए, यहां तक कि गाड़ियां खड़ी करके इंतज़ार करना भी मना है. लेकिन इसी बोर्ड के नीचे एक लाइन से गाड़ियां खड़ी हुई हैं. ये तस्वीर बताती है कि हमारे देश में किसी नियम, कानून या अदालती आदेश को लागू करवाना कितना मुश्किल है.

भारत में आज भी धर्म और जाति के नाम पर वोट दिए जाते हैं और वोट मांगे जाते हैं. लेकिन कोई सरकार ये नहीं कहती कि हम प्रदूषण कम करेंगे इसलिए हमें वोट दीजिए. लोग भी सरकार ने नहीं पूछते कि प्रदूषण को कम करने को लेकर आपके पास क्या योजनाएं हैं. शायद ही किसी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में प्रदूषण से लड़ाई का जिक्र होता होगा. क्योंकि नेता ये जानते हैं कि लोगों से धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगे जा सकते हैं.

लेकिन प्रदूषण में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है. गौर करने वाली बात ये है प्रदूषण हमारे देश की सबसे धर्मनिरपेक्ष समस्या है, प्रदूषण भी आतंकवाद की तरह सभी धर्मों के लोगों की जान ले रहा है. लेकिन प्रदूषण से कोई भी सरकार गंभीरता से नहीं लड़ना चाहती. भारत में 25 लाख लोग हर साल प्रदूषण की वजह से मारे जाते हैं . लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता . हमें लगता है कि ये एक तरह का औद्योगिक आतंकवाद है और हमें इससे लड़ना ही होगा. इसलिए अगली बार जब कोई नेता आपसे वोट मांगने आए तो उससे आप ये ज़रूर पूछिएगा कि प्रदूषण को कम करने को लेकर उसके पास क्या योजना है. हमें लगता कि धर्म और जाति से ऊपर उठकर प्रदूषण जैसे विषयों को चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए. ताकि देश के लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का समान अधिकार मिल पाए . 

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