ZEE Jankari: जानिए क्या भूमिका थी कांधार कांड के समय अजित डोवाल की
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ZEE Jankari: जानिए क्या भूमिका थी कांधार कांड के समय अजित डोवाल की

भारत के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की तस्वीर के साथ उन्होंने जो दूसरा प्रश्न पूछा है, वो तथ्यों पर आधारित नहीं है. राहुल गांधी ने अपने Tweet से ये साबित करने की कोशिश की है, जैसे मसूद अज़हर को रिहा करने में सबसे बड़ी भूमिका अजित डोवल की थी जबकि ये बात गलत है.

ZEE Jankari: जानिए क्या भूमिका थी कांधार कांड के समय अजित डोवाल की

आज देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों का अपमान हुआ है. आज पुलवामा के 40 शहीदों की आत्मा को चोट पहुंचाई गई है. आज देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत के सुरक्षाबलों के हौसले पर...हमला किया है. जिस आतंकवादी ने पुलवामा और पठानकोट में हमला किया हो, जिसने भारत की संसद पर हमला किया हो.. उस आतंकवादी को.. जी कहकर संबोधित करना और उसे सम्मान देना.. किसी पाप से कम नहीं है. लेकिन राहुल गांधी ने ये काम किया है.

हमारे देश में ये फैशन बन चुका है कि हर आतंकवादी हमले, और हाइजैक पर राजनीति होती है. पुलवामा पर राजनीति हुई, बालाकोट पर राजनीति हुई.. और बीस साल पहले

राहुल गांधी, जिस आतंकवादी को मसूद अज़हर 'जी' कहकर संबोधित कर रहे हैं, उसी के संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने 14 फरवरी को भारत के 40 सैनिकों को मारा था. ये वही आतंकवादी संगठन है, जो पिछले कई वर्षों से भारत का सीना छलनी करते आया है. लेकिन, ऐसा लग रहा है, कि आज वही मसूद अज़हर, राहुल गांधी का प्रिय हो गया है. ये कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा. लेकिन ऐसा लगता है, कि कांग्रेस पार्टी की विचारधारा, Nation First से हटकर, Terrorist First हो गई है. ये वही कांग्रेस पार्टी है, जिसके नेता, ओसामा बिन लादेन को 'ओसामा जी' कहकर संबोधित करते हैं. ये वही कांग्रेस पार्टी है, जिसके नेता मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज़ सईद के लिए सम्मानजनक शब्द 'साहब' का इस्तेमाल करते हैं.  और आज आतंकवादियों को सम्मान देने की हैट्रिक पूरी हो गई है. अब इस लिस्ट में एक और नया नाम जुड़ चुका है और वो नाम है, मसूद अज़हर का. सवाल ये है, कि राहुल गांधी, एक आतंकवादी को 'जी' कहकर क्यों संबोधित कर रहे हैं? इसके पीछे उनका कौन सा राजनीतिक स्वार्थ छिपा हुआ है.

राहुल गांधी ने अपने आधिकारिक Twitter Handle से 20 वर्ष पहले Indian Airlines के विमान IC-814 की Hijacking के संदर्भ में एक Tweet किया है और ऐसा लग रहा है, कि इस Tweet के माध्यम से उन्होंने अपने 'राजनीतिक विमान' को उड़ाने की कोशिश की है. राहुल गांधी ने अपने Tweet में लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी, कृपया CRPF के 40 शहीद जवानों के परिवारों को बताएं कि उनके हत्यारे मसूद अज़हर को किसने रिहा किया था? इसके साथ-साथ उन परिवारों को ये भी बताएं, कि देश के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार उस वक्त के Deal Maker थे, जिन्होंने कांधार जाकर, एक हत्यारे को पाकिस्तान के हाथों में सौंप दिया था.

इस Tweet को पढ़कर पता चलता है कि राहुल गांधी का ज्ञान इस मामले में अधूरा है और अधूरा ज्ञान बहुत ख़तरनाक होता है. ये बात तो सही है कि दिसम्बर 1999 में जब मसूद अज़हर को रिहा किया गया था, उस वक्त केंद्र में NDA की सरकार थी. लेकिन, भारत के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की तस्वीर के साथ उन्होंने जो दूसरा प्रश्न पूछा है, वो तथ्यों पर आधारित नहीं है. राहुल गांधी ने अपने Tweet से ये साबित करने की कोशिश की है, जैसे मसूद अज़हर को रिहा करने में सबसे बड़ी भूमिका अजित डोवल की थी जबकि ये बात गलत है.

इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट IC-814 को 24 दिसंबर 1999 को Hijack किया गया था और इसके बाद 26 दिसंबर को अजित डोवल, कांधार पहुंच गये थे. राहुल गांधी ने अजित डोवल की जो तस्वीर Tweet की है, वो भी 100 प्रतिशत सही है. आज हम 20 साल पुरानी तस्वीरों को खंगाल रहे थे, तो हमें अजित डोवल का वो वीडियो भी मिला, जिसमें वो विमान के नीचे के रास्ते लैडर से गुज़रते हुए कॉकपिट में गए थे. हालांकि, ये वीडियो थोड़ी दूरी से लिया गया है, लेकिन तस्वीरों में अजित डोवल साफ दिखाई दे रहे हैं.

लेकिन तस्वीर में दिखाई देने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है, कि मसूद अज़हर सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करने के पीछे अजित डोवल की ही सबसे बड़ी भूमिका थी. या वो खुद आतंकवादियों को लेकर विशेष विमान में गये थे? आज इसका जवाब खुद देश के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल देंगे. लेकिन उससे पहले राहुल गांधी को कुछ आवश्यक जानकारियां देना ज़रुरी हैं. इस वक्त राहुल गांधी की उम्र 48 साल है. इसका मतलब ये हुआ, कि वर्ष 1999 में उनकी उम्र करीब 28 साल थी. वैसे तो 28 साल की उम्र में देश और दुनिया के बारे में अच्छी खासी समझ आ जाती है. लेकिन हो सकता है कि राहुल गांधी ने तब अखबार ना पढ़े हों, और इस विषय पर उनका ज्ञान अधूरा रह गया हो.

जिस तस्वीर को हथियार बनाकर राहुल गांधी अजित डोवल पर निशाना साध रहे हैं, उस तस्वीर का सच ये है कि IC-814 की Hijacking के दौरान अजित डोवल भारत सरकार द्वारा बनाए गये Crisis Management Group का हिस्सा नहीं थे. बल्कि वो Intelligence Bureau में Special Director के पद पर तैनात थे. 20 साल पहले Crisis Management Group को तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी प्रभात कुमार हेड कर रहे थे. इसके अलावा Director General of Civil Aviation.. HS खोला इसके सदस्य थे और तमाम सुरक्षा एजेंसियों और Airport Authority of India के कुछ सदस्य भी CMG का हिस्सा थे.

उस वक्त IB के चीफ थे श्यामल दत्ता। लेकिन अजित डोवल IB में Special Director थे. और उनके पास कश्मीर और Counter Terrorism जैसे Desk थे. अजित डोवल ने काफी लम्बे समय तक Counter Terrorism के विषय पर काम किया था. इसलिए जब वो Special Director बने, तो उन्हें इसकी ज़िम्मेदारी भी दी गई. Special Director का काम होता है, आने वाले खुफिया Inputs का विश्लेषण करना. इसके बाद वो अपने अनुभव के आधार पर इसकी जानकारी IB के निदेशक को देते हैं. कई बार IB Director के कहने पर, Special Director, Counter Terrorism से जुड़े मामलों को Supervise भी करते हैं.

जहां तक कांधार Hijacking की बात है. अजित डोवल के अनुभव का इस्तेमाल किया गया और सरकार ने उन्हें Hostage Negotiation की ज़िम्मेदारी दी थी. इसके लिए उन्होंने सरकार की कई अहम बैठकों में हिस्सा लिया, जिनमें RAW के प्रमुख, तत्कालीन NSA और खुफिया एजेंसियों से जुड़े अधिकारी शामिल थे और ये सभी लोग, IC-814 की Hijacking से जुड़े सारे Inputs सरकार के साथ शेयर कर रहे थे. लेकिन IB का Special Director या Director ऐसे मामलों में कोई भी फैसला नहीं ले सकता. ऐसे फैसले हमेशा सरकार लेती है.

IC-814 की Hijacking के बाद तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने का फैसला भी सरकार ने ही लिया था. और इसकी सबसे बड़ी वजह थी - देश में बढता जनता का दबाव. वैसे, मौलाना मसूद अज़हर को छुड़ाने की दो कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं, जिनमें कश्मीर में विदेशी पर्यटकों को अगवा करके मार डाला गया. एक बार जेल तोड़ने की भी कोशिश हुई. लेकिन मसूद अज़हर भाग नहीं पाया था. IC-814 का मुख्य हाईजैकर मौलाना मसूद अज़हर का छोटा भाई था. आतंकवादियों की भारत सरकार से बातचीत चल रही थी. 26 दिसम्बर 1999 को भारत सरकार की एक टीम कंधार पहुंची. 30 घंटे की बातचीत के बाद आतंकवादियों ने मसूद अज़हर के साथ 36 आतंकवादी...एक मारे गए आतंकी सज्जाद अफगानी की लाश...और 200 मिलियन डॉलर यानी करीब 1400 करोड़ रुपये की मांग की. लेकिन, शुरुआत में भारत सरकार आतंकवादियों की मांग मानने के लिए तैयार नहीं थी.

इसलिए, बड़ी चालाकी से अपहरणकर्ताओं से बातचीत की अवधि को बढ़ाया गया. और अंत में मौलाना मसूद अज़हर, आतंकी उमर शेख और मुश्ताक अहमद ज़रगर नामक आतंकवादी की रिहाई पर फैसला लिया गया. यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है, कि इन तीन को छोड़ने के बाद भी...भारत ने बाकी बचे 33 आतंकवादियों को अपने चंगुल से बाहर नहीं निकलने दिया. और ये कोई छोटी-मोटी क़ामयाबी नहीं थी.

अगवा होने के 8वें दिन और नए वर्ष से एक दिन पहले IC- 814 के बंधक यात्री दिल्ली पहुंचे और उन्हें सकुशल भारत की धरती पर लाने वालों में से एक नाम अजित डोवल का भी था. इन तस्वीरों को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि 20 वर्ष पहले जिस नामुमकिन से दिखने वाले लक्ष्य को पूरा किया गया था, वो इतना आसान भी नहीं था. ये बात सच है, कि एक आतंकवादी को छोड़ना सबसे बड़ी गलती होती है और यही गलती भारत ने 20 वर्ष पहले की थी. लेकिन, उस वक्त 190 लोगों की जान बचाना तत्कालीन सरकार की प्राथमिकता थी. क्योंकि, मीडिया से लेकर विपक्षी नेताओं और आम लोगों ने... दिसम्बर 1999 में केंद्र सरकार पर बहुत बड़ा दबाव बना दिया था. आज हम विस्तार से 20 साल पुराने इस घटनाक्रम से जुड़ी बातें आपको बताएंगे और इसमें हमारी मदद करेंगे, देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और वर्ष 1999 में IB के तत्कालीन Special Director रहे, अजित डोवल. आज अजित डोवल खुद ही मसूद अज़हर की रिहाई के सारे राज़ आपके सामने खोलेंगे.
 

वर्ष 1999 में IB के Special Director और वर्तमान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल का ये इंटरव्यू 10 वर्ष पुराना है. उन्होंने Zee News को ये इंटरव्यू वर्ष 2009 में दिया था लेकिन, वर्तमान में इस इंटरव्यू में कही गई बातों का महत्व काफी बढ़ जाता है, क्योंकि, राहुल गांधी ने अपने बयान और Tweets के माध्यम से अजित डोवल को घेरने की कोशिश की है. 10 साल पहले के इंटरव्यू में अजित डोवल ने Anti Hijacking Law को और भी कड़ा किए जाने की बात कही थी. ताकि किसी भी विमान को अपहरण करने वाले व्यक्ति को सीधे-सीधे आतंकवादियों की श्रेणी में डाल दिया जाए. हमारे देश में वर्ष 1982 से ही एक पुराना कानून चला आ रहा था, जिसमें कड़ी सज़ा का प्रावधान नहीं था. लेकिन 5 जुलाई 2017 से एक नया Anti-Hijacking Act लागू किया गया. जिसके तहत, किसी भी प्रकार की Hijacking करने वाले अपहरणकर्ताओं को फांसी तक की सज़ा हो सकती है. इसके अलावा, उसकी संपत्ति को भी ज़ब्त किया जा सकता है. Hijacking की परिभाषा को भी बदला गया है, जिसके तहत, Hijacking की धमकी देना या कोशिश करना...दोनों को Hijacking की परिभाषा में जोड़ा गया है.

Zee News को दिए इंटरव्यू में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने Crisis Management Group का ज़िक्र किया. आगे बढ़ने से पहले आपको ये भी समझना चाहिए कि 20 साल पहले कैसे इस Group के ढीले रवैये की वजह से आतंकवादी, हाइजैक किए गये विमान को कंधार ले जाने में क़ामयाब हुए.

वर्ष 1995 में Crisis Management Group के Contingency Plan को Revise किया गया था, जिसके तहत एक Central कमिटी को, दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मौजूद ATC Building से Operate करने का फैसला लिया गया था और इसी कमिटी की ज़िम्मेदारी थी, कि वो किसी भी तरह की Hijacking की स्थिति से निपटने के लिए तत्काल प्रभाव से काम करे. 20 साल पहले इस Crisis Management Group को तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी प्रभात कुमार हेड कर रहे थे.

लेकिन, वर्ष 1999 में भारत की खुफिया एजेंसी RAW के तत्कालीन चीफ AS Dulat, इस Crisis Management Group पर कई गंभीर सवाल खड़े कर चुके थे. उनके मुताबिक, 24 दिसम्बर 1999 को IC-814 अमृतसर में उतरा. लेकिन उस वक्त न केंद्र सरकार और न ही पंजाब सरकार कुछ फैसला कर पाई. नतीजा ये हुआ कि CMG की 5 घंटों तक मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया.  बाद में सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे. अमृतसर में जहाज़ की मौजूदगी के दौरान ऑपरेशन को हेड कर रहे पंजाब पुलिस के प्रमुख सरबजीत सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हें कभी भी नहीं कहा कि IC-814 को उड़ान नहीं भरने देना है.

20 साल पहले जब IC-814 का अपहरण हुआ था, उस वक्त ये ख़बर पूरी दुनिया की हेडलाइन बन गई थी. Zee News उस वक्त देश का इकलौता ऐसा चैनल था, जो इस अपहरण कांड से जुड़ी हर छोटी-बड़ी ख़बर देश के सामने रख रहा था. अपने इंटरव्यू में IB के तत्कालीन स्पेशल डायरेक्टर अजीत डोवल ने भी स्वीकार किया कि उस वक्त IC-814 को हाईजैक करने वाले आतंकवादी भी Zee का नाम लेकर हर छोटी-बड़ी Development का ज़िक्र किया करते थे और ये सबकुछ ऐसी स्थिति में हो रहा था, जब Zee News की टीम कंधार में Ground Zero पर मौजूद नहीं थी, क्योंकि, कंधार में किसी भी भारतीय मीडिया House या News Channel को जाने की इजाज़त नहीं दी गई थी. तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री अरुण जेटली भी वर्षों पहले इस घटना का ज़िक्र कर चुके हैं.

अब आप समझ सकते हैं, कि उस वक्त कंधार जाना ही एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इसके बावजूद, जिस प्रकार की जानकारियां सामने आ रही थीं, वो सारी ख़बरें देश और दुनिया के अखबारों की Headlines बनीं.

किसी ने लिखा...TALKS BEGIN TO BREAK DEADLOCK...

किसी ने कहा...TALKS TAKE OFF ON COLD KANDHAR RUNWAY..

INDIANS BEGIN NEGOTIATIONS IN KANDHAR...

INDIAN TEAM OPENS TALK ...

INDIA WANTS PAK, DECLARED A TERRORIST STATE...

PM WANTS PAKISTAN DECLARED TERRORIST STATE..

DECLARE PAK A ROGUE STATE, SAYS VAJPAYEE...
 
ये सरकार और सिस्टम का Collective Failure था, जिसकी वजह से IC-814 जैसी Hijacking हुई। और देश के तीन आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा. हालांकि, आज हमें इसके पीछे की राजनीति भी समझनी होगी.
जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस वक्त लोगों को देश की नहीं, अपनों की फिक्र थी और इसीलिए शायद राष्ट्रहित से समझौता कर लिया गया. सड़क से लेकर संसद तक विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. सबकी सिर्फ एक मांग थी, कि जितने भी यात्री IC-814 की Hijacking में फंसे हुए हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा करवाया जाए. ये तत्कालीन केंद्र सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा था. लेकिन, साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखने की ज़रुरत थी, कि देश के लोगों की जान के साथ कोई समझौता ना किया जाए. इसीलिए, तत्कालीन NDA सरकार ने 20 साल पहले हर राजनीतिक पार्टी से उसकी राय जानी. और उसके बाद ही कोई फैसला लिया. लेकिन, अफसोस की बात ये है, कि उस वक्त देश के लोगों की भावनाओं को भड़काने वालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी, आज आतंकवादी मसूद अज़हर को, मसूद अज़हर 'जी' कहकर संबोधित करते हैं. IB के तत्कालीन Special Director, अजित डोवल को Deal Maker की संज्ञा देते हैं. आज उन्हीं राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व नेता राजेश पायलट की एक बात सुनाना बहुत ज़रुरी है. जब उन्होंने कांधार Hijack के कुछ दिन बाद ही, राजनीतिक बयानबाजी करनी शुरु कर दी थी. आज राहुल गांधी को पता होना चाहिए, कि 20 साल पहले इस मामले पर कांग्रेस पार्टी का रुख क्या था?

इस घटना के वक्त लाल कृष्ण आडवाणी भारत के गृहमंत्री थे. अपनी जीवनी 'मेरा देश मेरा जीवन' में लाल कृष्ण आडवाणी ने IC 814 के हाईजैक की पूरी कहानी बताई है. इस किताब में उन्होंने बताया है कि तब सरकार की मुश्किलें क्या थीं? लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखा है कि इस मामले में अपहरणकर्ताओं पर कोई दबाव नहीं था और वो जब तक चाहते, बंधकों को अपने कब्जे में रख सकते थे. क्योंकि तीन बातें उनके पक्ष में थीं—पहली बात ये कि, आतंकवादी एक अनुकूल क्षेत्र में थे. तालिबान-शासित अफगानिस्तान के साथ, भारत के कोई राजनयिक संबंध नहीं थे और तब वहां की सत्ता और प्रशासन ने अपहरणकर्ताओं पर दबाव डालने का कोई संकेत नहीं दिया.”

“दूसरी बात ये थी कि कोई भी कार्रवाई करने के लिए भारत के विमानों को पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से होकर गुजरना पड़ता, जिसकी इजाजत निश्चित रूप से नहीं मिलती. आडवाणी जी ने लिखा है कि जब उनके पास ये विश्वसनीय सूचना भी थी कि आतंकवादी, विमान को विस्फोटक से उड़ा देने के लिए तैयार थे.

और तीसरी और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये थी कि भारत सरकार पर, बंधकों को ‘कैसे भी’ छुड़ा लाने के लिए दबाव डाला जा रहा था. आडवाणी जी ने लिखा है कि जब इस संकट ने तीसरे दिन में प्रवेश किया तो कुछ बंधकों के रिश्तेदारों द्वारा प्रधानमंत्री आवास के सामने आवेशपूर्ण प्रदर्शन किए गए. उन्होंने ये भी लिखा कि मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि ये दबाव आंशिक रूप से ही सही, बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों के उकसाने का परिणाम था. कुछ टी.वी. चैनलों ने भी दिन-रात प्रसारण करके इन प्रदर्शनों को प्रमुखता से दिखाया, जिससे लोगों में ये धारणा बनती थी, जैसे कि इतने भारतीयों का जीवन खतरे में होने पर भी सरकार ‘कुछ नहीं’ कर रही थी. ये सब देखकर मैं हैरान हुआ कि ‘भारत के राज्य-तंत्र के बारे में कहा जाता है कि वो एक नरम तंत्र है. परंतु क्या भारतीय समाज भी एक नरम समाज बन गया है?’ तब ये देखकर कुछ सुकून मिला कि TV पर दिखाए जा रहे इन प्रदर्शनों ने कारगिल के शहीदों के रिश्तेदारों को बाध्य किया कि वो बंधकों के रिश्तेदारों से धैर्य रखने के लिए कहें.”

“कांधार में बातचीत के लिए गई हमारी टीम ने समझौते की चर्चा मज़बूती से की, जिसके कारण वो जेल में बंद 36 आतंकवादियों को रिहा करने की माँग को कम करके केवल तीन तक लाने में सफल रहे.”

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