ज़ी जानकारीः जानिये, क्यों असुरक्षित हैं हमारी सरहदें
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ज़ी जानकारीः जानिये, क्यों असुरक्षित हैं हमारी सरहदें

राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की ताकत को बारूद से कमजोर करने की कोशिश हो रही है। आतंकवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खूनी सलाम पेश कर रहे हैं। अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक जनवरी 2016 से अप्रैल 2016 तक सिर्फ 4 महीनों के अंदर जम्मू-कश्मीर में 26 आतंकवादी घुसपैठ करने में कामयाब रहे।

ज़ी जानकारीः जानिये, क्यों असुरक्षित हैं हमारी सरहदें

नई दिल्ली : राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की ताकत को बारूद से कमजोर करने की कोशिश हो रही है। आतंकवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खूनी सलाम पेश कर रहे हैं। अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक जनवरी 2016 से अप्रैल 2016 तक सिर्फ 4 महीनों के अंदर जम्मू-कश्मीर में 26 आतंकवादी घुसपैठ करने में कामयाब रहे।

हालांकि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष अप्रैल के महीने तक करीब 20 आतंकवादी लाइन ऑफ कंट्रोल पार करके घुसपैठ करने में कामयाब रहे। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक 22 मई 2016 तक जम्मू-कश्मीर में जो घुसपैठ हुई है, उसकी वजह से 3 नागरिकों और सुरक्षा बलों के 10 जवानों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा इन घटनाओं में 47 आतंकवादी मारे गए हैं।

रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में घुसपैठ की 118 कोशिशें की गई, जिनमें से 33 कामयाब रहे। जबकि वर्ष 2016 में मार्च के महीने तक घुसपैठ की 24 घटनाएं सामने आई जिनमें 18 मौकों पर आतंकवादी देश की सीमा में दाखिल होने में क़ामयाब रहे। 

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गर्मियों में ऊंची पहाड़ियों पर बर्फ पिघलने के साथ ही सीमा पार से घुसपैठ की आशंका बढ़ जाती है। सर्दियों में बर्फबारी की वजह से कई बार नियंत्रण रेखा पर लगी बाड़ यानी तारबंदी को भी भारी नुकसान पहुंचता है, जिससे आतंकवादियों को भारत की सीमा में दाखिल होने में आसानी होती है। घुसपैठ के लिए आतंकवादियों को पाकिस्तान की सेना और आईएसआई का समर्थन भी हासिल होता है।

बर्फबारी के दिनों में आतंकवादी जानबूझकर पहाड़ी इलाकों से घुसपैठ की कोशिश करते हैं, ताकि वो बर्फ की सफेद चादर का सहारा लेकर सेना को गुमराह करते हुए भारत में दाखिल हो सकें। आपको बता दें कि आतंकवादी घुसपैठ के लिए पूरी तैयारी के साथ आते हैं, जैसे भारी बर्फबारी के मौसम में घुसपैठ के लिए वो यूरोप में बने उच्च गुणवत्ता के कपड़े और जूते पहनकर आते हैं।

आतंकवादियों के पास प्रोसेस्ड फूड, ड्राय फ्रुट्स और यहां तक कि लोकेशन ट्रैक करने के लिए जीपीएस फोन और नेविगेशन सिस्टम भी मौजूद होता है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने अपने स्लीपर सेल बनाए हुए हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनका पता लगाना, सुरक्षा बलों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। जम्मू-कश्मीर में कई इलाके ऐसे हैं, जहां ओवर ग्राउंड वर्कर्स आतंकियों की मदद कर रहे हैं। ये ऐसे लोग होते हैं जो आतंकियों को घुसपैठ कराने से लेकर उन्हें हमले वाले ठिकानों तक पहुंचाने का काम भी करते हैं।

इतना ही नहीं ये स्लीपर सेल हथियारों को छिपाने, सूचना देने, सुरक्षा की लोकेशन, उनकी तैनाती और रेकी जैसे हर काम राज्य सरकार की नाक के नीचे कर रहे हैं। इन्हें अलगाववादियों का समर्थन भी हासिल होता है।

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