ZEE जानकारीः भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ो ने कुचल दिया था
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ZEE जानकारीः भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ो ने कुचल दिया था

इसके बाद अंग्रेज़ों ने अपनी असली चाल चली. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने भारत को आज़ाद तो किया.

ZEE जानकारीः भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ो ने कुचल दिया था

इतिहास दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है . बड़ी से बड़ी अदालत के फैसले भी इतिहास में दर्ज हो जाते हैं और इतिहास की घटनाएं ही बाद में ये तय करती हैं कि फैसला सही था या गलत ? इसीलिए लोगों को सही इतिहास के बारे में ज़रूर पता होना चाहिए . हमारे देश में इतिहास की दुकानों की पुरानी परंपरा रही है, आपको अपने आसपास इतिहास की बड़ी बड़ी दुकानें मिल जाएंगी और इनमें बैठने वाले बहुत सारे दुकानदार खुद को इतिहासकार कहकर आपको नकली सामान बेचते हैं. अब वक़्त आ गया है कि आप ऐसी दुकानों का शटर डाउन कर दें और पूरे सत्य को पढ़ने और समझने की कोशिश करें.

आज का दिन बहुत ऐतिहासिक है . आज 9 अगस्त है . आज से 76 वर्ष पहले भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था. 8 अगस्त 1942 की शाम को कांग्रेस के Bombay अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया था. अगर भारत छोड़ो आंदोलन सफल हो गया होता तो वर्ष 1942 में ही, यानी 5 साल पहले ही भारत को आज़ादी मिल सकती थी . तब शायद भारत के टुकड़े भी नहीं होते और आज पाकिस्तान जैसे किसी देश का आस्तित्व नहीं होता . भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव में ये साफ-साफ कहा गया था कि हिंदुस्तान में ब्रिटिश शासन का अंत, तुरंत होना परम आवश्यक है .

लेकिन अंग्रेज़ों ने बहुत क्रूरता से भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया . अंग्रेज़ों ने कांग्रेस को साफ तौर पर कहा था कि वो दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ही वो भारत की आज़ादी के बारे में सोचेंगे. अंग्रेज़ों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन्हें विश्व युद्ध में लड़ने के लिए भारत के संसाधनों और थोड़े समय की ज़रूरत थी. वो अपनी ज़िद पर अड़े रहे और भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने से उन्हें समय और संसाधनों वाला बोनस मिल गया.

इसके बाद अंग्रेज़ों ने अपनी असली चाल चली. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने भारत को आज़ाद तो किया. लेकिन आज़ादी के उपहार के साथ-साथ बंटवारे का घाव भी दे दिया जो आज भी पाकिस्तान के रूप में हमारे लिए सिरदर्द बना हुआ है. 

शायद आप हमारी इन बातों को सुनकर बहुत आश्चर्य में पड़ गए होंगे . क्योंकि आपने आज तक यही पढ़ा और सुना होगा कि भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से ही अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए थे . ये भारत में अंग्रेज़ों के खिलाफ आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था . ये राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के राजनीतिक जीवन का एक बड़ा फैसला था. लेकिन इस आंदोलन के लिए प्रस्ताव Pass होने के तुरंत बाद महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया था . और वो बहुत हताश हो गए थे . 

महात्मा गांधी ने जेल में ही 21 दिन का अनशन भी किया . पूरे देश को लगा कि महात्मा गांधी के प्राणों पर संकट है . लेकिन अंग्रेज़ इतने निर्मम थे कि उन्होंने आज़ादी की मांग को स्वीकार करने के बजाय, ये तय कर लिया था कि महात्मा गांधी की मृत्यु हो जाने देते हैं. अंग्रेज़ों ने उनकी चिता के लिए चंदन की लकड़ियों का इंतज़ाम भी कर लिया था.

भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में ये बातें शायद आपको इससे पहले कभी किसी ने नहीं बताई होंगी . लेकिन ये सारे तथ्य देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी जीवनी India Wins Freedom में लिखी हैं . इसी किताब का हिंदी अनुवाद आज हमारे पास है . मौलाना आज़ाद की ये किताब इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है . क्योंकि वो वर्ष 1940 से वर्ष 1946 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे .आज़ादी के लिए चलाए गए सभी आंदोलनों की आधिकारिक ज़िम्मदारी उनके कंधों पर थी. इसलिए भारत छोड़ो आंदोलन को समझने के लिए उनकी इस किताब का अध्ययन बहुत ज़रूरी है. 

एक लाइन में कहा जाए तो भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ो ने कुचल दिया था. लेकिन इस आंदोलन ने भारत में अगस्त क्रांति की मशाल जला दी थी. और भारत को दूर से ही सही लेकिन आज़ादी की रोशनी दिखाई देने लगी थी. उस दौरान Secretary of State for India के आंकड़ों के मुताबिक 9 अगस्त से 30 नवंबर 1942 तक भारत छोड़ो आंदोलन में 1 हज़ार 28 लोगों की मौत हुई थी . 3 हज़ार 215 लोग घायल हुए थे और एक लाख से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया था . यानी एक हजार से ज़्यादा लोग भारत छोड़ो आंदोलन के संघर्ष में शहीद हो गए थे .

लेकिन इसके बावजूद उस वक्त अंग्रेज़ों ने भारत नहीं छोड़ा. उस दौर में भारत के संसाधन, अंग्रेज़ों के लिए बहुत कीमती थे. विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने भारत का खूब इस्तेमाल किया और इस दौरान अंग्रेज़ों को भारत के बंटवारे का प्लान बनाने का मौका मिल गया. पैकेज में हम ये बताएंगे कि भारत छोड़ो आंदोलन और भारत की आजादी का दूसरे विश्व युद्ध से क्या संबंध था क्या असर था

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद वर्ष 1940 से वर्ष 1946 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष थे . मौलाना आज़ाद एक बहुत स्पष्टवादी व्यक्ति थे . उन्होंने अपनी जीवनी में महात्मा गांधी के साथ मतभेदों को स्वीकार किया है . भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर भी मौलाना आज़ाद और महात्मा गांधी में गहरे मतभेद थे . महात्मा गांधी को लगता था कि 1942 का साल अंग्रेज़ों के खिलाफ अंतिम संघर्ष के लिए एकदम सही समय है . लेकिन मौलाना आज़ाद दूसरे विश्व युद्ध के नतीजों का इंतज़ार करना चाहते थे. महात्मा गांधी को लगता था कि अंग्रेज़ कांग्रेस के नेताओं को अहिंसक आंदोलन का पूरा मौका देंगे. 

लेकिन मौलाना आज़ाद को पहले से ही ये जानकारी मिल गई थी कि भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव के बाद कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा . ये सभी बातें मौलाना आज़ाद ने अपनी जीवनी India Wins Freedom में बहुत अच्छी तरह से कही हैं . 

मौलाना आज़ाद को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की गहरी समझ थी . वो यथार्थवादी थे.. इसलिए वो फैसला लेने में ज़्यादा सक्षम थे . उन्होंने ये भी लिखा है कि जब भारत के सैनिक दूसरे विश्व युद्ध में अपना पराक्रम दिखाकर भारत लौटे, तो उनकी देशभक्ति की भावना भी पूरे देश में फैल गई... जो भारत की आज़ादी के लिए निर्णायक साबित हुई . आगे DNA के अगले Episodes में हम आपको ये भी दिखाएंगे कि भारत की सेना का भारत की आज़ादी में क्या योगदान था . और आखिर भारत को आज़ादी कैसे और किन हालात में मिली थी?

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