ZEE Jankari : टीपू सुल्तान की जयंती मनाना सही है या गलत?
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ZEE Jankari : टीपू सुल्तान की जयंती मनाना सही है या गलत?

इन Urban Naxals और बुद्धिजीवियों ने देश के इतिहास को इस तरह प्रस्तुत किया है कि देश की जनता आज भी इस भ्रम में है. कि हमारे देश के नायक कौन हैं और खलनायक कौन हैं? अब हम इतिहास के एक ऐसे ही सुल्तान का DNA टेस्ट करेंगे. जिसके बारे में आज भी लोग ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो नायक है या खलनायक ?

ZEE Jankari : टीपू सुल्तान की जयंती मनाना सही है या गलत?

लोकतंत्र में सबसे बड़ा फैसला जनता की अदालत में होता है. नवंबर और दिसंबर में देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. एक बार फिर सारे राजनीतिक दल जनता की अदालत में हैं. और जनता की सबसे बड़ी अदालत में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Urban Naxals पर सबसे बड़ा प्रहार किया है. सबसे पहले आप देखिए कि आज छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में Urban Naxals से पूरे देश को कैसे सावधान किया?

आपको याद होगा... सबसे पहले Zee News ने Urban Naxals के मुद्दे को देश के सामने उठाया था. हमने बार-बार देश की सरकार, राज्यों की सरकार, प्रशासन, खुफिया एजेंसियों और पूरी व्यवस्था को सावधान किया था कि Urban Naxals बहुत तेज़ी से अपनी जड़ों को मजबूत कर रहे हैं. और आज खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वही बात एक बार फिर देश के सामने रख दी. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू को भी याद किया और कांग्रेस से ये सवाल भी पूछा कि जो नक्सलवादी... आम लोगों को गोलियों से भून देते हैं उन्हें क्रांतिकारी क्यों कहा जाता हैं?

Note करने वाली बात ये भी है कि जब नक्सलियों का समर्थन करने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई तो बुद्धिजीवियों ने पूरा देश सिर पर उठा लिया था] लेकिन जब नक्सलियों ने दूरदर्शन के एक पत्रकार की हत्या की तो बुद्धिजीवियों का पूरा Gang ख़ामोश हो गया. आपको याद होगा कि पिछले साल पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हो गई थी, गौरी लंकेश को नक्सलवादियों का समर्थक माना जाता था इसलिए तमाम बुद्धिजीवियों ने उनकी हत्या को लेकर विरोध प्रदर्शन किए थे. और कैंडल मार्च निकाले थे. उस समय ये कहा गया था कि ये अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने की कोशिश है.

वो पत्रकार जो AC कमरों में बैठकर देश विरोधी Agenda चलाते हैं उनके लिए तो बुद्धिजीवियों के मन में काफी पीड़ा है. लेकिन जो पत्रकार War Zone में काम करते हैं उनकी चुनौतियों को कोई नहीं समझता.

दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में मौत हुई थी. इसी हमले के दौरान एक और पत्रकार ने नक्सली हमले के Video को Record किया था. आज आपको एक बार फिर ये Video देखना चाहिए. इसे देखते हुए आप गौर कीजिएगा कि एक पत्रकार के लिए War Zone में काम करना कितना मुश्किल और खतरनाक होता है. दुख की बात ये है कि हमारे देश के बुद्धिजीवियों ने दूरदर्शन के कैमरामैन की हत्या को अभिव्यक्ति की आज़ादी से नहीं जोड़ा.

नक्सलियों की जड़ें आज भी देश में बहुत गहरी हैं. हमारे देश के शिक्षा संस्थानों पर भी लंबे समय तक Urban Naxals का कब्ज़ा रहा है. आज भी देश की छोटी-बड़ी संस्थाओं में ये लोग कुर्सियों से चिपके हुए हैं. ये लोग Coffee और Green Tea पीते हुए धीरे-धीरे अपना Agenda.. लोगों के मन में Push करते हैं.

इन Urban Naxals और बुद्धिजीवियों ने देश के इतिहास को इस तरह प्रस्तुत किया है कि देश की जनता आज भी इस भ्रम में है. कि हमारे देश के नायक कौन हैं और खलनायक कौन हैं? अब हम इतिहास के एक ऐसे ही सुल्तान का DNA टेस्ट करेंगे. जिसके बारे में आज भी लोग ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो नायक है या खलनायक ?

क्या आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति की जयंती या पुण्यतिथि मनाएंगे, जिसने भारत के लोगों का नरसंहार किया हो? मंदिरों को तोड़ा हो ? और बहुत बड़ी संख्या में लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया हो. कभी नहीं. आपका मन कभी इसकी इजाज़त नहीं देगा, लेकिन राजनीति का एक ही ईमान होता है. वोट बैंक. राजनीति में सब कुछ स्वीकार कर लिया जाता है.. फिर चाहे हत्यारों के नाम की जयंती ही क्यों ना मनानी पड़े?

10 नवंबर वर्ष 1750 में मैसूर के शासक, टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था. कर्नाटक की सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाए जाने का समर्थन किया है. और अब इस पर विवाद हो रहा है. पिछले कई वर्षों से कर्नाटक की सरकार इस दिन को टीपू जयंती के रूप में मना रही है. और एक बहुत बड़ा वर्ग इस फैसले का लगातार विरोध कर रहा है. हैरानी की बात ये है कि कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने से पहले HD कुमारस्वामी. टीपू जयंती मनाने का विरोध कर चुके हैं. पिछले साल उन्होंने कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार का विरोध किया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद टीपू सुल्तान के प्रति उनके मन में श्रद्धा का भाव आ गया है.

आज देश में इस बात पर बहस हो रही है कि टीपू सुल्तान की जयंती मनाना ठीक है या नहीं? आज हमने इस पर काफी गहरा Research किया है, जिसके आधार पर हम आपके सामने टीपू सुल्तान के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य रखेंगे. इसके बाद आप खुद ही ये तय कर पाएंगे, कि टीपू सुल्तान की जयंती मनाना सही है या गलत? टीपू सुल्तान का पूरा नाम फतेह अली टीपू था. उसका जन्म 10 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनहल्ली में हुआ था. ये जगह आज कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरू में है. वर्ष 1782 के दिसंबर महीने में टीपू सुल्तान, अपने पिता हैदर अली की जगह मैसूर के तख्त पर बैठा था. तब उसकी उम्र 32 वर्ष थी.

टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली ने चार बार अंग्रेज़ों से युद्ध किया था. पहला युद्ध वर्ष 1767 से 1769 के बीच, दूसरा युद्ध 1780 से 1784 के बीच, तीसरा युद्ध 1790 से 1792 के बीच हुआ. और चौथा और आखिरी निर्णायक युद्ध.. वर्ष 1799 में हुआ था. इस युद्ध के दौरान 4 मई 1799 को टीपू सुल्तान को अंग्रेज़ों ने मार दिया था.

आज़ादी के बाद मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध के आधार पर टीपू सुल्तान को महान देशभक्त बताने की कोशिश की. लेकिन इन इतिहासकारों ने बहुत चालाकी से टीपू सुल्तान के अत्याचारों को छुपा लिया. और इन्हें जनता के सामने नहीं आने दिया. इतिहासकार और बुद्धिजीवी देश को भ्रमित करने में एक तरह से सफल हो गए थे.

इसके बाद वर्ष 1990 से 1991 के बीच दूरदर्शन पर एक धारावाहिक शुरू हुआ़ जिसका नाम था - The Sword of Tipu Sultan. इस धारावाहिक में टीपू सुल्तान को परम देशभक्त, अंग्रेज़ों के दुश्मन, धर्मनिरपेक्ष और सहनशील राजा की तरह प्रस्तुत किया गया था. इस धारावाहिक के Producer और Director फिल्म अभिनेता संजय खान और अकबर खान थे. उस वक्त भी इस धारावाहिक का विरोध किया गया था. लेकिन तब इस धारावाहिक में एक Disclaimer दिखाकर विरोध को शांत कर दिया गया था. इस Disclaimer में क्या लिखा था.. इस पर भी गौर कीजिए...

ये धारावाहिक भगवान गिडवानी के ऐतिहासिक उपन्यास The Sword of Tipu Sultan पर आधारित है, जो उन्होंने टीपू सुल्तान की जीवन कथा पर लिखा है. हम इस धारावाहिक की किसी भी कड़ी या घटना के बारे में ऐतिहासिक सत्यता और वास्तविकता का दावा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि ये धारावाहिक टीपू सुल्तान के इतिहास पर नहीं बल्कि ऐतिहासिक उपन्यास पर आधारित है. इस धारावाहिक की विशेषता टीपू का अंग्रेज़ों के विरुद्ध ऐतिहासिक युद्ध है.. जिसका टीपू की केरल और कूर्ग की मतभेद वाली भूमिका से कोई संबंध नहीं है.

Disclaimer से ही ये साफ हो जाता है कि धारावाहिक में इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है. Disclaimer में ये भी लिखा गया है कि टीपू सुल्तान की केरल और कूर्ग की मतभेद वाली भूमिका से कोई संबंध नहीं है. Disclaimer में ये बात इसलिए लिखनी पड़ी, क्योंकि टीपू सुल्तान पर ये आरोप लगता है कि उसने केरल में बहुत बड़ी संख्या में मंदिरों को तोड़ा था. इसके अलावा कर्नाटक के ही कुर्ग इलाके में टीपू सुल्तान की सेना ने हिंदुओं का नरसंहार किया और महिलाओं पर भी अत्याचार किए थे.

लेकिन धारावाहिक के निर्माता-निर्देशक ने बहुत चालाकी से टीपू सुल्तान का असली चेहरा, जनता से छुपा लिया और चुने हुए तथ्यों को देश की जनता के सामने पेश किया. इससे टीपू सुल्तान के चरित्र को लेकर देश में और भी ज़्यादा भ्रम फैला. क्योंकि धारावाहिक की शुरुआत में दिखाए जाने वाले Disclaimer पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया. आमतौर पर जितने भी निर्माता और निर्देशक होते हैं वो बहुत ही चालाकी से छोटा सा Disclaimer तैयार करते हैं और उसे कोई भी व्यक्ति ध्यान से नहीं पढता.
लोगों ने टीपू सुल्तान के बारे में दिखाए जा रहे उन दृश्यों पर गौर किया जिनमें टीपू सुल्तान एक महान देशभक्त की तरह अंग्रेज़ों से मुकाबला कर रहा है और अपनी हिंदू प्रजा के साथ भी सहनशील है.

लेकिन आज हम इतिहास की प्रामाणिक किताबों की मदद से आपको टीपू सुल्तान के जीवन के हर पक्ष के बारे में बताएंगे. टीपू सुल्तान को अपनी तलवार बहुत प्रिय थी. उसकी तलवार के Handle पर एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश लिखा हुआ था, जिसे पढ़कर आप टीपू सुल्तान के चरित्र के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं.
 
Estefania Wenger नाम के एक विद्वान ने टीपू सुल्तान के जीवन पर एक किताब लिखी है... जिसका शीर्षक है - Tipu Sultan: A Biography. इस किताब में टीपू सुल्तान की धार्मिक नीति पर एक अध्याय लिखा गया है.  

अंग्रेज़ अधिकारी Marquess वैलैस्ली के सामने टीपू सुल्तान की जिस तलवार को पेश किया गया उसके handle पर लिखा था. "मेरी विजयी तलवार अ-विश्वासियों के विनाश के लिए बिजली है और उसने अ-विश्वासियों की दुष्ट जाति को नष्ट कर दिया है"
 
ये टीपू सुल्तान की तलवार पर लिखी पहली तीन लाइनों का अनुवाद है. यहां समझने वाली बात ये है कि इस बात पर इतिहासकारों में विवाद है कि टीपू सुल्तान ने किसे अ-विश्वासी कहा है और वो कौन से लोग हैं जिनके लिए टीपू सुल्तान की तलवार बिजली के समान है. 18वीं शताब्दी के टीपू सुल्तान का चरित्र 21वीं शताब्दी में ISIS के आतंकवादी अबू बक्र अल बगदादी के समान दिखाई देता है. बगदादी ने भी पूरी निष्पक्षता के साथ.. कोई भेदभाव किए बिना, यज़ीदियों, ईसाईयों और हिंदुओं का कत्ल किया. बगदादी ने उन मुसलमानों को भी नहीं बख्शा, जो उसके मुताबिक सच्चे मुसलमान नहीं थे.

ठीक इसी तरह टीपू सुल्तान ने भी हिंदुओं और ईसाईयों का नरसंहार करवाया. कुछ इतिहासकारों की नज़र में टीपू सुल्तान एक महान देशभक्त हो सकता है लेकिन टीपू सुल्तान के जीवन की घटनाएं ये बताती हैं कि वो एक देशभक्त से ज़्यादा एक धर्मांध और कट्टरपंथी व्यक्ति था.
 
कुछ बुद्धिजीवी ये कहकर मुगल शासक औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान के पाप धोने की कोशिश करते हैं कि इन लोगों ने मंदिरों को दान दिया था. लेकिन यहां समझने वाली बात ये भी है कि ये कट्टरपंथी बादशाह और सुल्तान, हिंदू बहुल इलाकों पर राज कर रहे थे. और जब भी किसी इलाके में हिंदुओं ने विद्रोह किया, तो दूसरे इलाके में विद्रोह को रोकने के लिए इन्होंने हिंदू मंदिरों में दान की नीति को अपनाया. लेकिन इतिहासकारों ने कभी भी.. लोगों को पूरी बात नहीं बताई.  आखिर में हम आपको भगवान गिडवानी के ऐतिहासिक उपन्यास The Sword of Tipu Sultan' की कुछ तस्वीरें दिखाना चाहते हैं. ये वही उपन्यास है जिस पर निर्माता निर्देशक संजय खान और अकबर खान ने अपने प्रसिद्ध TV धारावाहिक 'The Sword of Tipu Sultan' का निर्माण किया था.

देखिए... इन तस्वीरों में टीपू सुल्तान यज्ञ और हवन करते हुए नज़र आ रहे हैं. भगवान गिडवानी ने ये तस्वीरें TV धारावाहिक 'The Sword of Tipu Sultan' से लेकर अपने उपन्यास में प्रकाशित करवाई हैं. इस तस्वीर के नीचे Caption में लिखा है कि 'टीपू सुल्तान, खुद एक मुसलमान थे लेकिन वो धर्मनिर्पेक्ष थे, वो सभी धर्मों का सम्मान करते थे. उनके महल में एक हिंदू मंदिर था. यहां एक हिंदू मंदिर में वो हवन में हिस्सा ले रहे हैं.'

शायद अब आप ये समझ गये होंगे कि उपन्यासों, धारावाहिकों और कहानियों के माध्यम से कैसे असली इतिहास को पूरी तरह बदल दिया जाता है. हमारे देश के कुछ मान्यता प्राप्त इतिहासकारों का दिमाग बहुत तेज़ है आज से 50 साल बाद.. हो सकता है कि वो बगदादी को भी महान साबित कर दें... और हमारे नेता वोटों के चक्कर में बगादादी की जयंती मनाने लगें.

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