ज़ी जानकारी: शिक्षक दिवस पर देश की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई
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ज़ी जानकारी: शिक्षक दिवस पर देश की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई

ज़ी जानकारी: शिक्षक दिवस पर देश की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई

भारत युवाओं का देश है. देश में हर साल करीब 2 करोड़ 80 लाख युवा भारत की जनसंख्या में शामिल हो जाते हैं. देश की 50% से ज्यादा आबादी 25 साल से कम की है. ऐसा अनुमान है कि 2020 तक भारत की औसत आयु 29 साल होगी. लेकिन भारत की ये विशाल युवा आबादी तब तक देश के विकास में सहयोग नहीं कर सकती है, जब तक उसे अच्छी शिक्षा न मिले. और इस युवा आबादी को शिक्षित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों के ऊपर है. लेकिन पूरे देश में शिक्षकों की भारी कमी है. आज के दौर में लोग शिक्षक नहीं बनना चाहते और अपने बच्चों को भी शिक्षक नहीं बनाना चाहते सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश में 19 लाख 48 हज़ार शिक्षकों की Posts स्वीकृत हैं. लेकिन इनमें से भी 3 लाख 74 हज़ार Posts खाली हैं.

देश में 7 हज़ार 966 सरकारी स्कूल बिना Teachers के हैं. जबकि 1 लाख 4 हज़ार से ज्यादा स्कूलों में सिर्फ एक ही Teacher है. हालात ये हैं कि एक Class में 28 बच्चों पर 1 टीचर होना चाहिए, लेकिन कई सरकारी स्कूलों में एक-एक Class में 100 से ज्यादा बच्चे हैं. देश की 65 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. इसलिए ग्रामीण इलाकों में शिक्षा पर ज्यादा FOCUS करने की आवश्यकता है. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.  ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर सरकारी स्कूलों में Ad-Hoc यानी संविदा पर शिक्षक काम करते हैं. और ऐसे Teachers को पैसा भी बहुत कम दिया जाता है. देश में 13% शिक्षक Contract पर हैं. ये ऐसे Teachers हैं, जिन्हें बहुत कम पैसा मिलता है. और इनमें से बहुत से शिक्षक Qualified भी नहीं हैं.इस दौर में शिक्षकों की काबिलियत भी सवालों के घेरे में है. क्योंकि Teachers' Eligibility Test को सिर्फ 20% लोग ही Clear कर पाते हैं. इसीलिए ज़्यादातर राज्य सरकारों ने इस Test को ही खत्म कर दिया है. 

सरकारी प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को 20 हज़ार से लेकर 40 हज़ार रुपये प्रति महीने तक की Salary मिलती है. जबकि देश में Secondary और higher secondary स्कूल के शिक्षकों को इनसे थोड़ा ज्यादा पैसा मिलता है. अब ज़रा ये भी जान लीजिए कि विदेशों में शिक्षकों को कितना वेतन मिलता है. सिंगापुर में स्कूलों में एक शिक्षक को 45 हज़ार 755 अमेरिकी डॉलर्स यानी करीब 29 लाख रुपये प्रति वर्ष की Salary मिलती है. जबकि दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जर्मनी और जापान में स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों को 40 हज़ार अमेरिकी डॉलर्स यानी करीब 25 लाख रुपये प्रतिवर्ष की Salary मिलती है.

United Kingdom में स्कूल के शिक्षकों को 33 हज़ार 377 अमेरिकी डॉलर्स यानी करीब 21 लाख रुपये प्रतिवर्ष की Salary मिलती है. एक सर्वे के अनुसार सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले हर चार छात्रों में से एक छात्र... दूसरी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पाता. देश के सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 32% बच्चे ही अंग्रेज़ी के सामान्य शब्द पढ़ पाते हैं. जबकि पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 24% बच्चे ही अंग्रेज़ी के साधारण वाक्य पढ़ पाते हैं. इसी तरह आठवीं कक्षा के सिर्फ 45% बच्चे ही अंग्रेज़ी के साधारण वाक्य पढ़ पाते हैं. इन आंकड़ों से भी यही पता चलता है कि हमारे शिक्षकों की हालत ठीक नहीं है. और ये हमारे देश के भविष्य के लिए एक ख़तरनाक संकेत है.

साठ और सत्तर के दशक में जब देश का निर्माण हो रहा था तो हमारी हिंदी फिल्मों में भी शिक्षकों को नायक के तौर पर दिखाया जाता था. लेकिन आज सिनेमा का नायक शिक्षक नहीं होता है. किसी फिल्म का हीरो आज Police वाला हो सकता है.. Salesman हो सकता है, मज़दूर हो सकता है...Insurance Agent हो सकता है, यहां तक कि ड्राइवर भी हो सकता है लेकिन फिल्मों में शिक्षक को हीरो के रूप में प्रोजेक्ट करना अब लगभग खत्म हो चुका है. हमारे फिल्म निर्माताओं को शिक्षकों में कोई हीरो दिखाई नहीं देता. आज आपको ये देखना चाहिए.. कि हमारी फिल्मों में शिक्षकों की तस्वीर कैसे बदली है. हमने हिंदी सिनेमा में शिक्षक की भूमिका पर एक वीडियो विश्लेषण तैयार किया है, इसे देखकर आपको शिक्षकों की सामाजिक स्थिति का अंदाज़ा हो जाएगा. क्योंकि फिल्में समाज का आईना होती हैं

फिनलैंड में बच्चे पढ़ाई से पहले ये सीखते हैं कि बचपन क्या होता है और बच्चा कैसे बना जाता है? यानी वहां बच्चों पर पढ़ाई का बोझ नहीं डाला जाता. स्कूल में उन्हें एक दूसरे के साथ खेलना सिखाया जाता है. उन्हें ये भी सिखाया जाता है कि कैसे खुद को भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाना है. हमारे देश में स्कूलों में बहुत Competition होता है. हर एक स्कूल अपने आपको दूसरे से बेहतर बताता है. लेकिन फिनलैंड में ऐसा नहीं है. वहां स्कूल Competition में नहीं बल्कि Co-operation और Co-existence में यकीन रखते हैं. और इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि फिनलैंड में कोई भी Private School नहीं है. देश में चलने वाला हर एक शिक्षण संस्थान.. सरकार के पैसों से चलता है.

भारत की तरह फिनलैंड के शिक्षक Underpaid नहीं हैं. वहां शिक्षक का पेशा एक सम्मानित पेशा है. फिनलैंड में छात्रों और शिक्षकों पर लगातार research भी होता है, और अगर सरकार की कोई योजना शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा परिणाम देती है, तो फिर उस पर और ज़्यादा काम किया जाता है. फिनलैंड के शिक्षक.. बच्चों के पढ़ाने के लिए अपनी mini-laboratories बनाते हैं. ये शिक्षक ही तय करते हैं कि बच्चों के लिए क्या किया जाना चाहिए ? फिनलैंड में ये कानून है कि हर 45 मिनट की क्लास के बाद 15 मिनट का Play Time होता है. यानी बच्चों के ऊपर पढ़ाई का बोझ नहीं है.

भारत में अक्सर बच्चों को Home work के बोझ के नीचे दबा दिया जाता है. लेकिन फिनलैंड में ऐसा नहीं है. वहां बच्चों को बहुत कम Home work दिया जाता है. बच्चों को ज़्यादातर काम स्कूल में करवा दिए जाते हैं. जबकि उनका घर का समय परिवार के साथ बिताने के लिए सुरक्षित रखा जाता है. ताकि बच्चे जीवन के बारे में भी कुछ सीख पाएं. 

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