DNA: आम चुनाव से पहले बीजेपी का 3 राज्यों में 'सत्ता का प्रयोग', क्या काम आ पाएगी सोशल इंजीनियरिंग?
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DNA: आम चुनाव से पहले बीजेपी का 3 राज्यों में 'सत्ता का प्रयोग', क्या काम आ पाएगी सोशल इंजीनियरिंग?

Zee News DNA on BJP New CM: बीजेपी ने लंबे सस्पेंस के बाद तीनों राज्यों में सीएम का नाम घोषित कर दिया है. तीनों राज्यों में चर्चित नामों को दरकिनार कर नए नामों को मौका दिया गया है. 

DNA: आम चुनाव से पहले बीजेपी का 3 राज्यों में 'सत्ता का प्रयोग', क्या काम आ पाएगी सोशल इंजीनियरिंग?

DNA on BJP Strategy and BJP New CM: बीजेपी ने राजस्थान के सीएम के नाम को लेकर एक बार फिर सबको चौंका दिया है. ऐसा लग रहा है जैसे बीजेपी इन तीनों प्रदेशों में राजनीति की अपनी पीढ़ी को भविष्य के लिए तैयार कर रही है. मुख्यमंत्री पदों के लिए ऐसे नामों को चुना गया है, जो राजनीति में पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम करते रहे हैं. ये वो नाम रहे, जिन्होंने कभी किसी PR कंपनी के जरिए, अपने काम को चमकाने की कोशिश नहीं की. ये वो नाम थे, जिनके कामों की चर्चा, पार्टी आलाकमान तक तो थी, लेकिन मीडिया की सुर्खियां कभी नहीं बनी.

राजस्थान- भजनलाल शर्मा
मध्यप्रदेश- मोहन यादव,
छत्तीसगढ़- विष्णुदेव साय

ग्राउंड लेवल वर्कर को आगे बढ़ाने की कोशिश!

यकीन मानिए आपमें से बहुत सारे लोगों ने इन नेताओं का नाम National Media में नहीं सुना होगा, अगर सुना भी होगा तो बहुत कम. वजह ये थी कि अभी तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बीजेपी मतलब रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान और वसुधंरा राजे हुआ करता था. इन राज्यों में बीजेपी ने पिछले लगभग 1-2 दशक में जब भी जीत दर्ज की, ये तीनों ही सीएम पद के दावेदार रहे. बीजेपी के पास भी इनसे बेहतर विकल्प नहीं था.

लेकिन बीजेपी ने Grass Root Level पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का हौंसला देने की कोशिश की है. इस काम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह एक खास Strategy अपनाने लगे हैं. अगर हम तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद के लिए सामने आए नामों को देखें, तो इसमें एक खास पैटर्न नजर आते हैं. पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी, खास परिस्थितियों में यही Pattern अपना रही है. मोदी और शाह ने बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं को पिछले कुछ वर्षों में यही संदेश दिया है,कि वो पार्टी की मजबूती के लिए बूथ लेवल पर मेहनत करेंगे और समय आने पर उनको उनका मेहनताना दिया जाएगा. भले ही वो सामान्य कार्यकर्ता हों.

BJP के सत्ता में बने रहने का फॉर्मूला

यही वजह है कि बीजेपी केंद्र में भी 2014 से लगातार सत्ता में बनी हुई है और राज्य स्तर पर भी अपनी धमक दिखा रही है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम पद के लिए चुने गए नए नाम 2024 की रणनीति के तौर पर भी देखे जा रहे हैं. बीजेपी को सत्ता में बनाए रखने के लिए मोदी-शाह फॉर्मूला एकदम साफ है.

- साथ सुथरी छवि होनी चाहिए

- RSS से संबंध होना चाहिए

- युवाओं को आगे लाने की कोशिश होती है

- लीडरशिप में नई पीढ़ी को उतारना मकसद है

- सीएम और 2 डिप्टी सीएम फॉर्मूला हिट है

- जातियों का समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए

ये वो फॉर्मूला है, जिसके दम पर बीजेपी, राज्यों में अपनी पकड़ बनाकर रखती है और केंद्र में जीत के लिए रास्ता साफ करती है.

अगर आप तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री पदों पर बैठने वाले व्यक्तियों को देखें तो, उनके चुने जाने की पहली वजह है साथ सुथरी छवि. तीनों ही सीएम पर किसी तरह का कोई गंभीर आरोप नहीं है, जो पार्टी के लिए मुसीबत बन सके. तीनों ही सीएम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं.

बीजेपी ने नए चेहरों पर क्यों लगाया दांव?

मध्यप्रदेश के सीएम मोहन यादव लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े रहे, यही नहीं वो 1991 में बीजेपी और RSS के छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़े थे. छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय ने भी लंबे समय तक RSS के, आदिवासी समाज के लिए बने संगठन 'वनवासी कल्याण आश्रम' में काम किया था. राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा भी RSS से जुड़े रहे हैं. भजनलाल शर्मा को गृहमंत्री अमित शाह का करीबी भी माना जाता है.

बुजुर्गों के बजाय नए हाथ में कमान

तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के चुने जाने में एक बात और Common है. वो ये कि युवाओं को चेहरा बनाया गया है. छत्तीसगढ़ में इकहत्रर वर्ष के रमन सिंह के बजाए, उनसठ वर्ष के विष्णु देव साय को सीएम बनाया गया. राजस्थान में 70 वर्षीय वसुंधरा राजे की जगह छप्पन वर्ष के भजनलाल शर्मा को मौका दिया गया. मध्य प्रदेश में चौसठ वर्षीय शिवराज की जगह अठावन वर्ष के मोहन यादव को सीएम बनाया गया है.

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2005 से प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. अगर हम कमलनाथ के 18 महीने के शासन को निकाल दें, तो शिवराज सिंह चौहान 18 वर्ष से लगातार मध्यप्रदेश के सीएम रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान,मध्यप्रदेश के सबसे ज्यादा लंबे समय तक रहने वाले सीएम थे. अब यहां एक नए नेता को बड़े पद से नवाज़ा गया है.

इसी तरह से छत्तीसगढ़ में रमन सिंह वर्ष 2003 से 2018 तक यानी 15 वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. शिवराज सिंह चौहान की तरह ये भी छत्तीसगढ़ के सबसे लंबे समय तक रहने वाले सीएम थे. राजस्थान में वसुंधरा राजे भी 5-5 वर्ष के दो कार्यकाल पूरे कर चुकी हैं, यानी वो करीब 10 साल राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.

दो डिप्टी सीएम का फॉर्मूला भी कामयाब

देखा जाए तो इन तीनों ही राज्यों में वर्ष 2002 के बाद से सीएम पद के लिए इन तीनों के अलावा किसी और का नाम कभी सामने नहीं आता था. जैसे 20 वर्ष बाद परिवारों में नई पीढ़ी जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार हो जाती है, ठीक वैसे ही बीजेपी ने अपनी नई पीढ़ी को बड़ी जिम्मेदारियां देना शुरू कर दिया है. पार्टी के वरिष्ठों को मार्गदर्शन के लिए रखा जाने लगा है. इससे एक फायदा ये भी होता है कि जनता में सत्ताधारी पार्टी के प्रति एंटी इकंमबेंसी भी नहीं होती है. सीएम और दो डिप्टी सीएम वाला फॉर्मूला भी बीजेपी के लिए कामयाब Experiment रहा है. सीएम और डिप्टी सीएम के चुनाव में भी अलग-अलग जातियों और प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों को प्रतनिधित्व दिया गया है. इससे पावर बैलेंस बनाने की कोशिश की गई है. बीजेपी ने जातियों के प्रतिनिधित्व का भी बहुत ख्याल रखा है, ताकि 2024 चुनाव में उसे परेशानी ना हो.

मध्यप्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाया गया है. मोहन यादव ओबीसी समाज से आते हैं. डिप्टी सीएम का एक पद जगदीश देवड़ा को दिया गया है. जगदीश देवड़ा SC समाज से आते हैं. इसी तरह से छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु साय आदिवासी यानी एसटी समुदाय से आते हैं. इस राज्य में डिप्टी सीएम के लिए आधिकारिक नाम नहीं आए हैं, लेकिन डिप्टी सीएम के लिए अरुण साव का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा रहा है, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं. राजस्थान में डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा को बनाया गया है, प्रेमचंद बैरवा एससी समाज से आते हैं.

पिछड़े वर्गों को साधने की कोशिश

बीजेपी इस बात का दावा करती है कि उसने देश को पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दी है. अब तो छत्तीसगढ़ के सीएम भी आदिवासी समाज से चुने गए हैं. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ओबीसी समुदाय से आते हैं. अपने इन कदमों से बीजेपी पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है. लेकिन पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने की कोशिश में वो परंपरागत बीजेपी समर्थक सवर्ण जातियों को नहीं भूली है.

बीजेपी को परंपरागत तौर पर सामान्य वर्ग की चहेती पार्टी कहा जाता था. लेकिन पिछले कुछ दशकों में इस विचार को बदलने की कोशिश की गई है. इसमें नरेंद्र मोदी सबसे बड़ा नाम है, जो देश के प्रधानमंत्री है और वो ओबीसी समुदाय से आते हैं. अगर हम मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान का उदाहरण देखें तो राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा सवर्ण समाज से आते हैं. राजस्थान की डिप्टी सीएम दीया कुमारी भी सवर्ण समाज से हैं. इसी तरह से मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला भी सवर्ण समाज से हैं. छत्तीसगढ़ में डिप्टी सीएम पद के लिए दूसरा नाम जो चल रहा है वो विजय शर्मा का है. ये भी सवर्ण समाज से आते हैं.

क्या बन पाएगी फ्यूचर रेडी पार्टी?

पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी ने अपने लीडरशिप में कुछ ऐसे बदलाव किए है, जिससे कार्यकर्ताओँ में आगे बढ़ने की उम्मीद नजर आने लगी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह, बीजेपी में बड़े परिवर्तन लाने वाले कुछ ऐसे छोटे छोटे कदम उठा रहे है, जिसका आने वाले वक्त में पार्टी को लाभ हो सकते हैं और बीजेपी FUTURE READY पार्टी बन सके.

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