नए कोरोना वेरिएंट की चपेट में आए कोरोना मरीजों को वेंटिलेटर से ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. यही कारण है कि देश में अचानक ऑक्सीजन की कमी होने लगी है. इसका एक बड़ा कारण सरकारी अफसरों की लापरवाही भी है. आइए जानते हैं कैसे...
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नई दिल्ली: हमारे देश में नेताओं के नाम के पत्थर जरूरी हैं या लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं? आज हम ये सवाल इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि नेताओं के नाम के पत्थरों का रखरखाव तो हो जाता है, लेकिन अस्पतालों में बनाए गए ऑक्सीजन प्लांट (Oxygen Plant) की सुध कोई नहीं लेता. अगर आज गाजियाबाद (Ghaziabad) के सरकारी अस्पताल में खराब पड़ा ऑक्सीजन प्लांट ठीक से काम कर रहा होता तो मरीजों के लिए 'बाहर से सांस' नहीं मंगवानी पड़ती.
हम बात कर रहें हैं उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में बने कंबाइंड डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की, जिसकी शुरुआत साल 2008 में पूर्व सीएम मायावती ने की थी. सरकार बदलने के बाद अस्पताल का विस्तार किया गया तो उसका श्रेय देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम का पत्थर लगा दिया गया. और कोरोना संकट में 100 बेड के इस अस्पताल को कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व कर दिया गया.
इसके लिए अस्पताल में एक ऑक्सीजन प्लांट भी लगाया गया, लेकिन ये ऑक्सीजन प्लांट भी सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया. जिस ऑक्सीजन प्लांट से रोजाना करीब 15 सिलेंडर ऑक्सीजन बनाई जा सकती थी, वो पिछले काफी समय से खराब पड़ा हुआ था. अब जब इस अस्पताल को भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी, तब जाकर अस्पताल प्रशासन को इस प्लांट की याद आई और अब जाकर इसको ठीक करवाने की कवायद शुरू की गई है.
हमारे संवाददाता प्रमोद शर्मा जब पड़ताल के लिए इस अस्पताल में दाखिल हुए तो पता चला कि इस वक्त भी 100 से ज्यादा कोरोना के मरीजों का हॉस्पिटल में इलाज किया जा रहा है, जिन्हें ऑक्सीजन देने के लिए सिलेंडर बहार से मंगवाए जाते हैं. ऐसे में सवाल उठा रहा है कि अस्पताल की इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है, जिसने अस्पताल के अंदर मरीजों की सांसो को सालों साल रोके रखा.
वहीं इस प्लांट को ठीक करने आए इंजीनियर आकाश सोनी का मानना है कि सही रख रखाव ना होने की वजह से ये ऑक्सीजन प्लांट खराब पड़ा था जिसको पूरी तरह ठीक होने में अभी भी दो से तीन दिन लग जाएंगे. यानी अगले दो दिन में भले ही इस अस्पताल का ये ऑक्सीजन प्लांट पूरी तरह ठीक हो जाएगा, लेकिन सरकारी अफसर और नेताओं का वो रवैया कब ठीक होगा जिसकी वजह से उनको मरीजों की सांसो से ज्यादा चिंता अपने नाम के पत्थरों की है.
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