Time Machine: जब 'ताऊ' ने जड़ा राज्यपाल को थप्पड़! मेनका गांधी ने छोड़ा इंदिरा का घर
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Time Machine: जब 'ताऊ' ने जड़ा राज्यपाल को थप्पड़! मेनका गांधी ने छोड़ा इंदिरा का घर

Zee News Time Machine: आज टाइम मशीन में बात साल 1982 की. इस समय भारत को आजाद हुए 35 साल हो चुके थे, तो चलिए शुरू करते हैं आज के टाइम मशीन का सफर और आपको बताते हैं वर्ष 1982 की 10 अनसुनी और अनकही कहानियों के बारे में...

Time Machine: जब 'ताऊ' ने जड़ा राज्यपाल को थप्पड़! मेनका गांधी ने छोड़ा इंदिरा का घर

Time Machine on Zee News: टाइम मशीन (TIME MACHINE ) में आज बात होगी 35 साल के हो चुके आजाद भारत के बारे में. यानि वर्ष 1982 के बारे में . ये वो साल था जब भारत ने आंतरिक्ष में अपना परचम लहरा दिया था और महात्मा गांधी पर फिल्म बनाने के लिए 10 मिलियन डॉलर खर्च किए गए थे. यही वो साल था जब मेनका गांधी ने छोड़ा था इंदिरा गांधी का घर. इसी साल आई एक फिल्म की वजह होने लगा था मुस्लिम समाज में तलाक. इंडियन आर्मी ने इसी साल विश्व का सबसे ऊंचा पुल बनाकर कर दिया था पुरी दुनिया को हैरान और यही वो साल था जब भारत ने हुई थी रंगीन टीवी की शुरुआत, तो चलिए शुरू करते हैं आज के टाइम मशीन का सफर.

  1. टाइम मशीन में साल 1982 का सफर
  2. इस साल मेनका गांधी ने छोड़ा इंदिरा गांधी का घर
  3. भारतीय सेना ने बनाया सबसे ऊंचा पुल

मेनका गांधी ने छोड़ा इंदिरा गांधी का घर

संजय गांधी की पत्नी और इंदिरा गांधी की छोटी बहू मेनका गांधी जिनती खूबसूरत थी, राजनीति में उनकी दिलचस्पी उतनी ही ज्यादा थी. इंदिरा गांधी उस वक्त सोनिया गांधी से ज्यादा मेनका गांधी को तवज्जों देती थी. यहां तक की कई बार इंदिरा के भाषण भी मेनका गांधी लिखा करती थी,  लेकिन संजय गांधी को मौत के बाद छपे एक लेख और किताब की वजह से मेनका और इंदिरा गांधी के रिश्ते कुछ इस कदर बिगड़ें कि मेनका गांधी को घर तक छोड़ना पड़ गया था. संजय गांधी की मौत के बाद कांग्रेस के करीबी खुशवंत सिंह ने अखबार में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा कि मेनका गांधी, संजय की ही तरह हैं. जैसे दुर्गा, शेर पर सवार हो, एकदम निर्भय और निर्भीक. इस लेख से इंदिरा और मेनका के बीच दरारें बढ़ गईं, क्योंकि इस लेख से पहले दुर्गा का शब्द सिर्फ इंदिरा गांधी के लिए प्रयोग किया जाता था और इसके बाद जब मेनका गांधी ने अपने पति संजय गांधी पर एक फोटोग्राफिक बुक लिखने पर काम शुरू किया गया तो उसकी प्रस्तावना इंदिरा गांधी अपने तरीके से लिखना चाहती थी, लेकिन जब बुक का फाइनल प्रिंट आया तो इंदिरा गांधी ने देखा कि फोटोग्राफिक बुक में प्रस्तावना उनके मन मुताबिक नहीं लिखी गई है और तो और किताब में काफी कांट-छांट भी की गई है. इस बात से इंदिरा, मेनका से नाराज हो गईं और उन्होंने मेनका को बुलाकर कहा कि मेनका घर में रहना या ना रहना तुम्हारी मर्जी है, लेकिन तुम्हें मेरे तरीके से रहना होगा. इंदिरा गांधी के ये बात मेनका के मन को चुभ गई और उन्होंने इसके कुछ दिन बाद इंदिरा गांधी का घर छोड़ दिया.  

एक करोड़ में बनी महात्मा गांधी पर फिल्म

महात्मा गांधी की विचारधारा जीवित रखने के लिए और उनकी कहानी दुनिया को बताने के लिए इंदिरा गांधी चाहती थी कि उनकी जीवनी पर फिल्म बनाई जाए, जिसके लिए इंदिरा गांधी ने 10 मिलियन डॉलर खर्च कर दिए थे.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर 'गांधी' नाम की फिल्म बनाई गई, जिसे रिचर्ड एटनबरो ने डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया था. 30 नवंबर 1982 को रिलीज होने वाली इस फिल्म ने ऑस्कर अवॉर्ड्स भी कई श्रेणी में जीते थे. इस फिल्म को बनाने में लगभग 10 मिलियन डॉलर का खर्चा आया था.

'कुली' के सेट पर घायल अमिताभ

साल 1982 में अमिताभ बच्चन को एक नया जीवनदान मिला था. दरअसल अमिताभ बच्चन फिल्म कुली के सेट पर इस कदर चोटिल हुए कि पूरे देश ने उनके लिए दुआएं मांगी थीं. हुआ ये कि साल 1982 में अमिताभ फिल्म कुली की शूटिंग कर रहे थे. फिल्म के एक फाइट सीन की शूटिंग अमिताभ बेंगलुरू में कर रहे थे. इस सीन से पहले अमिताभ को बॉडी डबल की भी सलाह दी गई, लेकिन अमिताभ ने कहा कि वो खुद ही ये सीन करना चाहते हैं, ताकि ये बेहद नेचुरल लगे. एक्शन डायरेक्टर के कहने पर पुनीत इस्सर का अमिताभ के मुंह पर घूंसा मारना था और उन्हें टेबल के ऊपर गिरना था, लेकिन गिरते समय उनका लोअर एब्डोमेन टेबल के कॉर्नर को लग गया.  हालांकि, इस चोट का तुरंत कोई असर दिखाई नहीं दिया. सबने अमिताभ के सीन की तारीफ की. इसके बाद वे थोड़ी ही दूर चले थे कि दर्द के मारे जमीन पर गिर गए. छोटी चोट समझकर उन्हें आराम के लिए सीधे उनके होटल ले जाया गया, पर बाद में पता चला कि वो चोट बेहद गंभीर थी. यहां तक कि उन्हें अस्पतताल में क्लीनिकली डेड घोषित तक कर दिया गया था और वो कुछ देर तक वेंटिलेटर पर भी रहे. उनकी कई सर्जरी हुईं. आखिरकार अमिताभ पर दवाओं और दुआओं का असर हुआ और वो ठीक हो गए.

EVM का पहली बार केरल में हुआ इस्तेमाल

EVM मतलब वो मशीन जिसे हर बार चुनावों के दौरान अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में और सवालों के घेरे में रहने वाली EVM कब अस्तित्व में आई और कब इस मशीन की शुरूआत हुई. साल 1982 में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल केरल में किया गया था. चुनाव आयोग ने देश में सबसे पहले केरल के एर्नाकुलम जिले में ईवीएम का परीक्षण किया था, 19 मई 1982 को केरल के एर्नाकुलम में मतदान हुए. परवूर निर्वाचन क्षेत्र के 84 बूथों में से 50 पर ईवीएम से वोटिंग कराई गई. बैलट पेपर की तुलना में ईवीएम वाले बूथों पर मतदान जल्दी ही पूरा हो गया, तो वहीं वोटों की गिनती भी बैलेट पेपर की तुलना में काफी पहले ही खत्म हो गई. इन चुनावों में CPI नेता सिवन पिल्लई कांग्रेस के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एसी जोस को करारी शिकस्त दी थी, लेकिन इसके बाद एसी जोस ने ईवीएम पर खराबी का आरोप लगाया और वो सीधा कोर्ट पहुंच गए. इसके बाद कोर्ट ने दोबारा से मतदान करने के लिए कहा. 

भारतीय सेना ने बनाया हिमालय पर सबसे ऊंचा पुल

भारतीय सेना का दमखम पूरी दुनिया देख चुकी है. दुश्मनों को करारा जवाब देने के लिए भारतीय सेना हमेशा तैयार रहती है. यही वजह है कि भारतीय सेना की ताकत हिमालय की उस चोटी पर भी देखने को मिली, जहां आम इंसान के लिए पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है. दरअसल, साल 1982 में भारतीय सेना ने हिमालय पर्वत की द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख की घाटी में एक पुल का निर्माण किया. इस पुल को बेली पुल का नाम दिया गया. इस पुल को अगस्त 1982 में भारतीय सेना ने बनाया और समुद्र तल के लिहाज से बेली पुल को दुनिया का सबसे ऊंचा पुल माना जाता है. ये पुल 30 मीटर (98 फुट) लंबा है और समुद्र तल से 5,602 मीटर (18,379 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है. 

मथुरा में फिर हुआ श्रीकृष्ण का 'अवतार'! 

मथुरा में मस्जिद और मंदिर को लेकर विवाद सदियों पुराना है. वर्तमान में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर विवाद जारी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1982 में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर मथुरा में फिर से बनकर तैयार हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर बने उनके मंदिर का निर्माण अब तक कई बार हुआ है. बताया जाता है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बना मंदिर अब तक तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है. मंदिर के टूटने और बनने की कहानी कई बार दोहराई गई. इसी बीच 1940 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बीच पंडित मदन मोहन मालवीय मथुरा आए और मंदिर की हालत देखकर दुखी हुए. उन्होंने उद्योगपति जुगलकिशोर बिरला से बात की. 1944 में बिरला ने पूरी जमीन 13,000 रुपये में खरीद ली. इसके बाद 1951 में मंदिर के ट्रस्ट की स्थापना की गई और फिर जमीन ट्रस्ट में आ गई. आखिरकार 14 अक्टूबर 1951 को मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर के बनने का सिलसिला शुरू हुआ, फिर 1982 में जाकर मंदिर और गर्भगृह बनकर तैयार हुआ. मंदिर को बनाने में तकरीबन 29 साल लग गए.

जब तीन तलाक पर आई एक फिल्म!

1982 में आई फिल्म निकाह और फिल्म का गाना 'दिल के अरमा आसुओं में' शायद ही कोई भूला होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि इसी फिल्म की वजह से कई शादीशुदा लोगों के जीवन में परेशानियां ना आएं, इसके चलते कई बदलाव फिल्म में किए गए. राज बब्बर, दीपक पराशर और सलमा आगा स्टारर फिल्म निकाह की कहानी लव स्टोरी पर बेस्ड थी. फिल्म शरिया कानून पर बेस्ड थी. फिल्म का नाम पहले तलाक तलाक तलाक था,  लेकिन बाद में इसे बदलकर निकाह किया गया. बीआर चोपड़ा तीन तलाक को लेकर फिल्म बनाना चाहते थे. ऐसे में उन्होंने इस फिल्म को बनाने का फैसला किया. फिल्म का नाम पहले उन्होंने तलाक तलाक तलाक ही रखा था, लेकिन एक दिन जब उनके दोस्त ने कहा कि फिल्म का नाम शायद बदलना चाहिए, क्योंकि फिल्म के नाम के हिसाब से मुस्लिम समाज में इस पर विवाद हो सकता था और अगर किसी मुस्लिम व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति से पूछा कि कौन सी फिल्म देखी और फिर अगर वो फिल्म का नाम बताएगा तो जाहिर इससे तलाक की स्थित बनेगी और विवाद बढ़ जाएगा और शरीयत के मुताबिक ना जाने कितनी औरतों का तलाक तो ऐसे ही हो जाएगा. आखिरकार बीआर चोपड़ा ये बात समझे और उन्होंने फिल्म का नाम बदलकर निकाह कर दिया. 

'ताऊ' ने जब राज्यपाल को जड़ा थप्पड़!

साल 1982 में हरियाणा के चुनावी मैदान में खलबली तब मच गई, जब चौधरी देवीलाल का थप्पड़कांड सामने आया. दरअसल हरियाणा में 1982 का चुनाव हुआ और 90 सीटों वाली विधानसभा में 36 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय लोक दल का बीजेपी से चुनाव से पहले से गठबंधन था. इस गठबंधन को 37 सीटें मिली थीं. ऐसे में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुत ना मिलने की स्थित में ये राज्यपाल पर निर्भर था कि वो किस गठबंधन से सरकार बनाएं. उस वक्त राज्यपाल की कुर्सी पर गणपतराव देवजी तपासे थे. इसके बाद राज्यपाल गणपतराव ने सबसे पहले देवीलाल को 22 मई 1982 को सरकार बनाने के लिए बुलाया. इसी बीच भजनलाल ने निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर 52 विधायकों को अपने तरफ किया और समर्थन पाया. बस इसके बाद तुरंत ही राज्यपाल तपासे ने देवीलाल को छोड़ भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी. राज्यपाल के इस फैसले से देवीलाल इतने गुस्से हुए कि वो राज्यपाल के पास पहुंच गए और बातों ही बातों में देवीलाल ने राज्यपाल की ठुड्डी पकड़ ली, जिसे देखकर वहां के लोग हैरान रह गए, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये हुई कि चंद सेकंड के अंदर ही चौधरी देवीलाल ने राज्यपाल को थप्पड़ जड़ दिया है, जिसके बाद 2 मिनट तक कोई कुछ भी नहीं बोला, चारो तरफ सन्नाटा छा गया. कहा जाता है कि देवीलाल के इस थप्पड़ की गूंज बहुत दिनों तक भारतीय राजनीति में छाई रही. 

जब टीवी पर दिखी 'रंगीन दुनिया'

साल 1982 से पहले तक टीवी के कलर ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करते थे. लोग के लिए मनोरंजन के नाम पर दूरदर्शन हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे मनोरंजन के साधन बढ़ते गए और फिर आखिरकार साल 1982 में रंगीन टीवी की शुरूआत हुई. 25 अप्रैल 1982 को देश में रंगीन टीवी की शुरूआत हुई. रंगीन टीवी की शुरूआत मद्रास के चैन्नई से हुई थी. देश में 50 हजार कलर टीवी सेट्स के साथ इसकी शुरूआत की गई. रंगीन टीवी का आगाज सरकार ने खेलों के रंगीन प्रसारण से किया था. शुरूआत में देश में 50 हजार टीवी सेट्स का आयात हुए, लेकिन धीरे-धीरे इसका क्रेज बढ़ गया और फिर लोगों का ध्यान रंगीन टीवी की तरफ ज्यादा गया और रंगीन टीवी पर रामायण, महाभारत समेत कई धारावाहिकों का प्रसारण किया गया.

देश का पहला एनकाउंटर

देश के इतिहास में एनकाउंटर्स की कहानी अब तक कई बार देखी और सुनी गई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश का पहला एनकाउंटर कब कहां और कैसे हुआ था. वो साल 1982, जब देश का पहला एनकाउंटर किया गया और इस एनकाउंटर में मारे जाने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि नामी अपराधी और अंडरवर्ल्ड डॉन कहा जाने वाला मान्या सुर्वे था. मान्या सुर्वे का एनकाउंटर का पूरा श्रेय मुंबई पुलिस को ही जाता है. मान्या सुर्वे का एनकाउंटर 1982 में जब हुआ था, तब उसकी उम्र 37 साल थी. मान्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था. मान्या ने मुंबई के कीर्ति कॉलेज से पढ़ाई की और वहीं से जुर्म की दुनिया में उसने प्रवेश कर लिया. मान्या को एक हत्या के मामले में सजा सुनाई गई और फिर उसे पुणे के यरवडा जेल भेजा गया. जेल से बाहर आने के बाद मान्या सुर्वे अंडरवर्ल्ड के साथ जुड़ गया, उसने अपनी गैंग में कई दोस्तों को शामिल कर लिया. बाद में मान्या सुर्वे और उसकी गैंग ने कई हत्याएं की. मुंबई पुलिस के दो अधिकारी, राजा तांबट और इशाक बागवान ने मान्या सुर्वे को मुंबई के वडाला में गोली मारी थी. मुंबई के साथ देश के इतिहास में आधिकारिक तौर पर दर्ज ये पहला एनकाउंटर था.
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