कांग्रेस की तरफ से CM सिद्धारमैया की जगह लेने को तैयार ये दलित चेहरे
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कांग्रेस की तरफ से CM सिद्धारमैया की जगह लेने को तैयार ये दलित चेहरे

बड़ा सवाल उठता है कि आखिर सिद्धारमैया जैसे राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी के लिए इस तरह की बात कहने का मकसद क्‍या है?

लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के बड़े दलित नेता हैं.(फाइल फोटो)

चुनाव नतीजों से पहले ही कांग्रेस नेता और सीएम सिद्धारमैया ने ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी यदि किसी दलित चेहरे को अपना नेता बनाती है तो वह इसके समर्थन में पद छोड़ने को तैयार हैं. दरअसल 12 मई को कर्नाटक चुनाव खत्‍म होने के बाद जारी हुए एक्जिट पोल(Exit Poll) में लगभग सभी चैनलों/एजेंसियों ने त्रिशंकु‍ विधानसभा की संभावना व्‍यक्‍त की. सभी ने यह भी माना कि तीसरे नंबर पर एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस रहेगी लेकिन इस कारण ही यह 'किंगमेकर' की भूमिका में भी रहेगी. मतलब यह कि बिना जेडीएस के कांग्रेस या बीजेपी में से कोई भी सत्‍ता की दहलीज तक नहीं पहुंच पाएगी. इन संभावित परिस्थितियों के मद्देनजर कांग्रेस ने बिना देर किए अगले ही दिन(13 मई) को प्‍लान बी के संकेत दे दिए.

  1. एक्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई गई
  2. सीएम सिद्धारमैया ने कहा, वह दलित के समर्थन में कुर्सी छोड़ने को तैयार
  3. बीजेपी ने लिंगायत नेता को अपना सीएम चेहरा घोषित किया है

इसी कड़ी में सीएम सिद्धारमैया ने घोषणा करते हुए स्‍पष्‍ट रूप से कहा कि वह दलित सीएम के पक्ष में अपनी दावेदारी छोड़ सकते हैं. यहीं से बड़ा सवाल उठता है कि आखिर सिद्धारमैया जैसे राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी के लिए इस तरह की बात कहने का मकसद क्‍या है? वह भी तब जब वह पहले ही कह चुके हैं कि ये उनका अंतिम चुनाव है और अब भविष्‍य में वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.

बड़ा सवाल
राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक दरअसल इसके जरिये एक तीर से कांग्रेस ने कई निशाने साधे हैं. कर्नाटक की सियासत के जानकारों के मुताबिक राज्‍य में वोक्‍कालिगा(12 प्रतिशत) और लिंगायत(17 प्रतिशत) के बाद 18 प्रतिशत के साथ दलित समुदाय का ही सबसे बड़ा वोटबैंक है. इस वोटबैंक में पैठ बनाने के लिए ही जेडीएस ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया था. ऐसे में यदि कर्नाटक में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर पाती तो जेडीएस से समर्थन हासिल करने के लिए सिद्धारमैया की जगह दलित चेहरे को आगे बढ़ा सकती है. जेडीएस के लिए भी अपने वोटबैंक को देखते हुए इस चेहरे को समर्थन नहीं देना मुश्किल होगा. ऐसा इसलिए क्‍योंकि यदि जेडीएस, बीजेपी को समर्थन देगी तो इसका मतलब अगड़ी जाति के येदियुरप्‍पा का समर्थन करना होगा क्‍योंकि भाजपा ने उनको ही अपना सीएम चेहरा घोषित कर रखा है.

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इसमें एक अहम बात यह है कि सिद्धारमैया पहले जेडीएस के ही नेता थे. देवगौड़ा परिवार के बाद वह जेडीएस में दूसरे नंबर के नेता थे. 2007 में जब उन्‍होंने पार्टी छोड़ी तो इस परिवार के साथ उनके रिश्‍ते खासे कटु हो गए. इस कारण सिद्धारमैया को जेडीएस समर्थन नहीं देना चाहेगी, इसलिए कांग्रेस ने समय रहते ही दलित कार्ड खेल दिया है. इस कार्ड के जरिये कांग्रेस ने जेडीएस के समक्ष धर्मसंकट खड़ा कर दिया है.

दलित चेहरे
कांग्रेस के दलित चेहरे को आगे बढ़ाने की स्थिति में पार्टी के ये दलित नेता मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं:
मल्लिकार्जुन खड़गे: लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पूर्व रेल मंत्री हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ से सीएम बनाए जाने की सबसे ज्‍यादा चर्चाएं थीं लेकिन चुनाव बाद गुप्‍त मतदान में विधायकों ने सिद्धारमैया को समर्थन देने का फैसला किया. गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं. कर्नाटक में बीदर से ताल्‍लुक रखते हैं.

जी परमेश्‍वर: कर्नाटक कांग्रेस के अध्‍यक्ष हैं. चुनावों से पहले कहा भी था कि चुनावों बाद ही तय होगा कि अगला सीएम कौन होगा? उनके इस बयान का यह अर्थ निकाला गया कि वह खुद भी इस रेस में हैं. 2013 में कांग्रेस की जीत में उनका अहम योगदान माना गया था लेकिन खुद चुनाव हारने के कारण वह रेस से बाहर हो गए थे.  

केएच मुनियप्‍पा: कोलार से सात बार लोकसभा सदस्‍य रहने वाले दलित नेता गुलबर्गा जिले से ताल्‍लुक रखते हैं. यूपीए सरकार में मंत्री रहे हैं.

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दलित समुदाय
कर्नाटक राज्‍य की 224 सीटों में से 36 सीटें इनके लिए आरक्षित हैं. हालांकि अतीत के अनुभव बताते हैं कि करीब 60 सीटों पर इनका बड़ा प्रभाव है. ऐसे में कांग्रेस की तरफ से दलित सीएम चेहरा घोषित होने के बाद भी बीजेपी और जेडीएस सरकार बनाने की कोशिशें करते हैं तो इस समुदाय की नाराजगी किसी भी दल के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और पिछली बार इस तबके ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को समर्थन दिया था, तभी तो पार्टी को राज्‍य की 26 लोकसभा सीटों में से 17 पर कामयाबी हासिल हुई थी.

वोटबैंक
कर्नाटक में दलितों को 101 उपजातियों में बंटा पाया जाता है. इनमें मुख्‍य रूप से बायां पक्ष(लेफ्ट सेक्‍ट) यानी मडीगा(Madigas), दायां पक्ष(राइट सेक्‍ट) यानी चलावाड़ी (Chalavadis), बोवी और लंबानी को प्रमुख उपसमूह माना गया है. वैसे मोटे तौर पर मुख्‍य रूप से इनका विभाजन बाएं और दाएं पक्ष के रूप में ही है. कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को राइट सेक्‍ट का बड़ा दलित नेता माना जाता है. यह धड़ा बाएं पक्ष की तुलना में सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से अधिक विकसित है.

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कांग्रेस का कार्ड
कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने इस बाएं पक्ष को भी अधिक अवसर दिलाने के मकसद से दलितों में आंतरिक्ष आरक्षण के लिए सदाशिव आयोग का गठन किया था. इस आयोग की रिपोर्ट अभी सामने नहीं आई है लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक लेफ्ट सेक्‍ट को इसने छह फीसद और राइट सेक्‍ट को पांच फीसद आरक्षण देने की वकालत की है. उसके बाद नफे-नुकसान के गणित को देखते हुए सिद्धारमैया सरकार ने चुनावों के लिहाज से इस पर कोई फैसला नहीं किया. ऐसा इसलिए क्‍योंकि यदि इन सिफारिशों को मान लिया गया तो दलितों का दायां पक्ष कांग्रेस से नाराज हो सकता है. हालांकि बाएं पक्ष को अपने पाले में लाने के लिए ही इस आयोग का गठन किया गया था.

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