क्या एआई सचमुच इंसान के इमोशन को समझ सकता है? जानें वैज्ञानिक क्या कहते हैं
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क्या एआई सचमुच इंसान के इमोशन को समझ सकता है? जानें वैज्ञानिक क्या कहते हैं

एआई की पकड़ हर क्षेत्र में मजबूत होती जा रही है. ऐसे में क्या यह कहना भी सही कि मशीन अब इंसानों की भावनाओं को समझने लायक हो गए हैं? 

क्या एआई सचमुच इंसान के इमोशन को समझ सकता है? जानें वैज्ञानिक क्या कहते हैं

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग की इंडस्ट्री में बढ़ते उपयोग के साथ, एआई-आधारित भावना पहचान प्रणालियां तेजी से प्रचलित हो रही हैं. 

इन प्रणालियों के जरिए कंपनियां यह दावा कर रही हैं कि वे एक व्यक्ति के चेहरे के भाव, आवाज, हाव-भाव, और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से उसकी भावनाओं को पहचान सकती हैं. हालांकि, इस तकनीकी विकास पर वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के बीच गंभीर बहस जारी है, जो इसे पूरी तरह से सटीक और विश्वसनीय मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

बढ़ रहा है बाजार

एआई-आधारित भावना पहचान प्रणालियों का वैश्विक बाजार तेजी से बढ़ रहा है. 2022 में इसका अनुमानित आकार 34 अरब अमेरिकी डॉलर था, और 2027 तक इसे 62 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है. ये प्रणालियां व्यक्ति के हार्ट बीट, त्वचा की नमी, आवाज, चेहरे के भाव, और हाव-भाव का विश्लेषण कर उसकी भावनाओं का अनुमान लगाने का दावा करती हैं.

इंसानों के इमोशन का हिसाब रखेगा AI

हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई स्टार्टअप "इन ट्रुथ टेक्नोलॉजीज" ने एक कलाई पर पहने जाने योग्य उपकरण विकसित किया है, जिसे पहनने वाले की शारीरिक गतिविधियों के आधार पर उसकी भावनाओं को रियल-टाइम में ट्रैक करने का दावा किया गया है. 

दावों पर उठे सवाल

हालांकि यह प्रौद्योगिकी आकाश छूने का दावा करती है, वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. विद्वानों का मानना है कि इस तरह की प्रणालियां अक्सर "फ्रेनोलॉजी" और "फिजियोग्नोमी" जैसे विज्ञानों की तरह होती हैं, जो किसी व्यक्ति के शारीरिक गुणों के आधार पर उसकी भावनाओं या मानसिक स्थिति का आंकलन करने का प्रयास करती हैं.

गोपनीयता से जुड़े खतरे

भावना पहचान प्रौद्योगिकियां विभिन्न भेदभावों और पूर्वाग्रहों का शिकार हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, कुछ प्रणालियां अश्वेत चेहरों को श्वेत चेहरों के मुकाबले अधिक क्रोधित दर्शाती हैं, भले ही दोनों चेहरे एक ही भाव व्यक्त कर रहे हों. इसके अलावा, ये प्रणालियां जनसांख्यिकीय समूहों की सटीक पहचान करने में भी नाकाम हो सकती हैं. 

कर्मचारियों की चिंता: गलत धारणा का डर

एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 12.9 प्रतिशत ऑस्ट्रेलियाई वयस्क कार्यस्थल में चेहरे आधारित भावना पहचान तकनीकों का समर्थन करते हैं. अमेरिका में भी कर्मचारियों ने इस प्रौद्योगिकी के बारे में चिंता व्यक्त की है, खासकर इस बात को लेकर कि इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और कार्य प्रदर्शन को गलत तरीके से आंका जा सकता है. कर्मचारियों का यह भी मानना है कि गलत जानकारी के आधार पर बनाई गई धारणाएं उन्हें पदोन्नति या वेतन वृद्धि से वंचित कर सकती हैं या यहां तक कि बर्खास्तगी का कारण बन सकती हैं.

-एजेंसी-

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