Research: अब Toilet से खुलेंगे आपकी Income के राज, सामने आईं चौंकाने वाली बातें
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Research: अब Toilet से खुलेंगे आपकी Income के राज, सामने आईं चौंकाने वाली बातें

ऑस्ट्रेलिया (Australia) की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी (Queensland University) ने इंसान के मल-मूत्र (Human Waste) पर शोध (Research) किया है. इस शोध में कुछ हैरान करने वाली जानकारियां सामने आईं हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्ली. दोस्त हों या रिश्तेदा, सब एक-दूसरे की कमाई (Income) के बारे में जानने को काफी उत्सुक रहते हैं. कम कमाने वाला शर्म की वजह से तो ज्यादा कमाने वाला नजर लगने से बचने के लिए अपनी कमाई (Income) छिपा लेता है. लेकिन अब आपकी कमाई किसी से छिप नहीं सकेगी. दरअसल अब आपके मल-मूत्र (Human Waste) से आपकी कमाई के बारे में पता लगाया जा सकता है. हमारी बात सुनकर आप चौंक गए होंगे. यह बात एक शोध (Research) में सामने आई है.

  1. क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ने मल-मूत्र पर किया शोध
  2. शोध में आर्थिक स्थिति के बारे में लगाया पता
  3. स्वास्थ्य नीतियां बनाने में मिलेगी मदद

क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ने किया शोध

ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी (Queensland University) की प्रयोगशाला ने ऑस्ट्रेलिया (Australia) की 20 फीसदी से ज्यादा आबादी के मल-मूत्र (Toilet) के नमूनों को एकत्र कर उन पर शोध (Research) किया है. देश के अपशिष्ट जल शोधन संयंत्रों (Wastewater Treatment Plants) से मल-मूत्र (Human Waste) के नमूने लेकर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को भेजे गए थे.

रिपोर्ट के अनुसार, इन मल-मूत्र (Human Waste) के नमूनों को ठंडा किया गया था. इन नमूनों के आधार पर लोगों के आहार और दवा की आदतों की जानकारी जुटाई गई है.

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शोध में हुए चौंकाने वाले खुलासे

यह शोध ओ'ब्रायन और पीएचडी उम्मीदवार फिल चोई ने किया है. उन्होंने पाया कि जिन मल-मूत्र (Human Waste) में फाइबर (Fiber), साइट्रस (Citrus) और कैफीन (Caffeine) की मात्रा ज्यादा थी, वे क्षेत्र आर्थिक रूप से काफी समृद्ध थे. वहीं, जिन क्षेत्रों में मल-मूत्र में फाइबर, साइट्रस और कैफीन की मात्रा कम थी, वे कम संपन्न क्षेत्र थे और यहां के लोगों में दवाई की खपत ज्यादा थी. शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के मल-मूत्र से यह बात सामने आई है कि इन लोगों का आहार स्वस्थ था.

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स्वास्थ्य नीतियां बनाने में मिलेगी मदद- रिसर्चर

शोधकर्ता चोई और ओ'ब्रायन का कहना है कि इस तरह के शोध से लोगों की जीवनशैली (Lifestyle) में बदलाव किया जा सकता है. इससे पता चलता है कि किस इलाके में रहने वाले लोग कैसा खाना खा रहे हैं और उनका जीवन कैसा है. इससे स्वास्थ्य से जुड़ी नीतियां (Health Policies) बनाने में मदद मिलती है.

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