इस स्टडी के निष्कर्षों को ‘The BMJ’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है. दुनियाभर में माइग्रेन सिरदर्द का सबसे बड़ा कारण है. कई बार मरीजों को इलाज के बाद भी पूरी तरह दर्द में आराम नहीं मिल पाता. इस स्टडी में खास तौर पर फोकस किया गया कि मरीजों के पास ऐसे एडिशनल ऑप्शंस हों जिससे उन्हें भविष्य में माईग्रेन और सिरदर्द की समस्या कम हो. इसमें डाइट में बदलाव पर जोर दिया गया.
इस स्टडी की को-ऑथर UNC स्कूल ऑफ मेडिसिन के साइकिएट्री विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर Daisy Zamora ने कहा कि हमारे पूर्वज अलग-अलग मात्रा में अलग-अलग तरह के फैट्स अपनी डाइट में लेते थे. लेकिन मॉडर्न डाइट इससे बिल्कुल अलग है. Polyunsaturated fatty acids, जो हमारा शरीर प्रोड्यूस नहीं करता, ये हमारी डाइट में कॉर्न ऑयल, सोयाबीन, कॉटन सीड और कई तरह के प्रोसेस्ड फूड जैसे चिप्स, क्रैकर्स और ग्रैनोला को शामिल करने से बढ़ जाते हैं. Polyunsaturated fatty acid के जिन क्लासेज का इस स्टडी में परीक्षण किया गया omega-6 (n-6) और omega-3 (n-3) शामिल थे. इन दोनों का हमारे शरीर की फंक्शनिंग में अहम रोल होता है. लेकिन शरीर में इनका बैलेंस भी जरूरी है. n-3 fatty acids जहां सूजन को कम करता है वहीं n-6 के कुछ डेरिवेटिव्स दर्द को बढ़ाने का काम करते हैं.
आज हम प्रोसेस्ड फूड ज्यादा मात्रा में कंज्यूम करते हैं इसलिए n-6 ज्यादा मात्रा में लेते हैं और n-3 fatty acids कम मात्रा में. UNC School of Medicine के न्यूरोलॉजी और इंटरनल मेडिसिन विभाग में MD Doug Mann ने इस स्टडी को लीड किया और इस अध्ययन में उन्होंने ऐसे 182 मरीजों पर शोध किया जिन्हें हाल में माइग्रेन का पता चला था और वो इसका इलाज करा रहे थे. इस ट्रायल में मरीजों पर ये स्टडी की गई कि एक व्यक्ति की डाइट में मौजूद fatty acids की मात्रा का सिरदर्द पर क्या असर पड़ता है.
Daisy Zamora ने कहा कि जिन मरीजों को हाई n-3 और कम n-6 fatty acids वाली डाइट दी गई उनमें इंम्प्रूवमेंट दिखा. ऐसे मरीज जिन्होंने कम n-6 fatty acids वाली डाइट ली उन्हें दर्द में बहुत राहत मिली.
वहीं ये कुछ मरीजों की दवाइयां कम करने में कारगर साबित हुआ. इस स्टडी में खास तौर पर मछली से मिलने n-3 fatty acids पर टेस्ट किया गया था और इसमें डायट्री सप्लीमेंट शामिल नहीं थे.
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