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Explainer: शनि ग्रह के छल्ले तो छलिया निकले! करोड़ों साल पहले नहीं बने, सौरमंडल जितने पुराने हैं

Saturn's Rings Age: शानदार, चमकदार छल्लों के बिना शायद शनि ग्रह की कल्पना भी असंभव हो! 2004 में जब NASA का कैसिनी अंतरिक्ष यान ग्रह की जांच करने पहुंचा, तो उसने पाया कि बर्फ के जिन टुकड़ों और कणों से ये छल्ले बने थे, वे बहुत साफ थे. वैज्ञानिकों को लगा कि शायद छल्ले हमेशा से वहां नहीं रहे होंगे. उनका अनुमान था कि ये छल्ले 100 से 400 मिलियन साल से अधिक पुराने नहीं हैं. लेकिन साइंस टोक्यो और फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के वैज्ञानिकों की नई स्टडी ने उस धारणा को झुठला दिया है. नई खोज के मुताबिक, शनि ग्रह के वलय (Rings of Saturn) शायद सौरमंडल जितने ही पुराने हैं! यह रिसर्च 'नेचर जियोसाइंस' जर्नल में छपी है. (All Photos : NASA)

शनि के छल्लों के बारे में क्यों थी ऐसी गलतफहमी?

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शनि के छल्लों के बारे में क्यों थी ऐसी गलतफहमी?

कैसिनी के डेटा के आधार पर वैज्ञानिकों ने शनि के छल्लों के युवा होने की धारणा बनाई. ऐसा इसलिए क्योंकि कैसिनी के डेटा में छल्लों को बनाने वाली बर्फ पर तेज गति से गिरने वाले उल्कापिंडों की लगातार बमबारी से निकलने वाली धूल नदारद थी.

नई स्टडी के लेखकों में से एक, इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस टोक्यो के प्लैनेटरी साइंटिस्ट, रयुकी ह्योदो ने 'साइंसअलर्ट' से बातचीत में कहा, 'कैसिनी स्पेसक्राफ्ट के डेटा से पता चला कि छल्ले युवा हो सकते हैं, क्योंकि वे बहुत साफ दिखाई देते हैं, और कई लोगों ने इस निष्कर्ष को आसानी से स्वीकार कर लिया. हालांकि, हमारी थियोरेटिकल रिसर्च दिखाती है कि साफ दिखने का मतलब यह नहीं है कि छल्ले युवा हैं.'

क्या देखने निकले थे वैज्ञानिक?

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क्या देखने निकले थे वैज्ञानिक?

ह्योदो और उनके साथी यह जानना चाहते थे कि क्या छल्लों के युवा दिखने के लिए कोई और स्पष्टीकरण हो सकता है, इसलिए उन्होंने सैद्धांतिक मॉडलिंग की. ताकि यह देखा जा सके कि जब अंतरिक्ष के ठंडे निर्वात में तेज गति से धूल के कण बर्फ से टकराते हैं तो क्या होता है.

शनि के छल्लों की मॉडलिंग से क्या समझ आया?

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शनि के छल्लों की मॉडलिंग से क्या समझ आया?

शनि के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण, 100 माइक्रोन से भी कम आकार के छोटे-छोटे उल्कापिंड शनि के चारों ओर तेजी से घूम रहे हैं. इनके बीच, छल्ले बनाने वाले बर्फ के टुकड़े सेंटीमीटर से लेकर मीटर तक के आकार के हो सकते हैं. जब 25 किलोमीटर प्रति सेकंड से ज्यादा की रफ्तार से चलने वाला कोई कण बर्फ के टुकड़े से टकराता है, तो बर्फ को प्रदूषित करने के बजाय, प्रभाव की गर्मी से सूक्ष्म उल्कापिंड और बर्फ की सतह पर एक छोटा सा क्षेत्र वाष्पीकृत हो जाता है. जिनमें से कुछ नैनोकणों में संघनित हो जाते हैं, जिनमें से बाकी परमाणु और अणु रह जाते हैं.

स्टडी के मुताबिक, वहां से, 'शनि के चारों ओर प्लाज्मा वातावरण में नैनो-कण और परमाणु और अणु आवेशित होते हैं; एक बार आवेशित होने के बाद, शनि का चुंबकीय क्षेत्र आवेशित नैनो-कणों और आयनों की कक्षाओं को प्रभावित करता है.' आखिर में 'माइक्रोमेटोरॉयड सामग्री (रिंगों का काला करने वाला पदार्थ), जो अब नैनो-कणों और आयनों के रूप में है, या तो ग्रह से टकराती है या शनि के वायुमंडल में या अंतरिक्ष में भाग जाती है. माइक्रोमेटोरॉयड प्रभाव से रिंग शायद ही कभी काली होती हैं.'

अगर ऐसा है, तो शनि के रिंग अरबों साल पुराने हो सकते हैं. इसका मतलब यह भी हो सकता है कि शनि के रिंग भविष्य में हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा समय तक मौजूद रहेंगे.

फिर कैसे बने होंगे शनि के छल्ले?

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फिर कैसे बने होंगे शनि के छल्ले?

अगर शनि के छल्ले वाकई इतने पुराने हैं, तो उन्हें समझाना भी आसान है. अरबों साल पहले सौरमंडल बहुत ज्यादा अव्यवस्थित था, जिससे क्षुद्रग्रहों या नवजात ग्रहों के बीच टकराव जैसी घटनाओं की संभावना बढ़ गई थी. इन टक्करों से मलबे के बादल बने जो शनि के चारों ओर घूमते रहे और उसके छल्ले बन गए.

सौरमंडल में अनोखे हैं शनि के छल्ले

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सौरमंडल में अनोखे हैं शनि के छल्ले

सौरमंडल के दूसरे बड़े ग्रहों में भी छल्ले हैं, लेकिन वे शनि के जैसे नहीं हैं. जुपिटर, यूरेनस और नेपच्यून सभी सुंदर, अलौकिक छल्लों से घिरे हुए हैं लेकिन उन्हें मुश्किल से देखा जा सकता है. इसके उलट, शनि की पहचान उसके व्यापक छल्लों से है. ऐसा लगता है कि सौरमंडल के बाहर इस तरह के छल्ले आम हो सकते हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में विशाल गैसीय एक्सोप्लैनेट की पहचान की गई है.

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