अमेठी का '21' से है कनेक्शन, वोटर लेते हैं करवट और होता है बड़ा राजनीतिक उलटफेर
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अमेठी का '21' से है कनेक्शन, वोटर लेते हैं करवट और होता है बड़ा राजनीतिक उलटफेर

एक संयोग है कि हर 21 साल बाद कांग्रेस का अमेठी हारने का इतिहास रहा है. यह बात राहुल गांधी की हार में भी कायम रही है. पहली बार 1977 आपातकाल लगाए जाने के विरोध में देश भर में कांग्रेस विरोध लहर के दौरान संजय गांधी इस हारे थे. था. इसके ठीक 21 साल बाद 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को पराजय झेलनी पड़ी थी. अब फिर 21 साल पूरे हुए और राहुल गांधी स्मृति इरानी से अमेठी में चुनाव हार गए.

2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी करीब एक लाख वोटों से राहुल गांधी से शिकस्त खाई थीं.

अमेठी: उत्तर प्रदेश के अमेठी (Amethi) लोकसभा सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul gandhi) की हार हुई है. कड़े मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने राहुल गांधी को करीब 44 हजार वोटों से शिकस्त दी हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का भले ही कितना भी खराब वक्त रहा हो, लेकिन रायबरेली और अमेठी संसदीय सीटों पर उसे जीत मिलती रही है. रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी जीत दर्ज करते रहे हैं. लेकिन इस बार बीजेपी स्मृति इरानी ने अमेठी का पासा पलट दिया है. 

खुद राहुल गांधी ने अमेठी सीट पर परिणाम घोषित होने से पहले ही पराजय स्वीकार कर ली थी. 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी सीट पर यह तीसरा मौका है, जब कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.

एक संयोग है कि हर 21 साल बाद कांग्रेस का अमेठी हारने का इतिहास रहा है. यह बात राहुल गांधी की हार में भी कायम रही है. पहली बार 1977 आपातकाल लगाए जाने के विरोध में देश भर में कांग्रेस विरोध लहर के दौरान संजय गांधी इस हारे थे. था. इसके ठीक 21 साल बाद 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को पराजय झेलनी पड़ी थी. अब फिर 21 साल पूरे हुए और राहुल गांधी स्मृति इरानी से अमेठी में चुनाव हार गए.

अमेठी ने गांधी परिवार के साथ अपना 39 साल पुराना नाता तोड़ा
अमेठी की जनता ने गुरुवार को गांधी परिवार के साथ अपना 39 साल पुराना नाता तोड़ लिया. यह एक ऐसा रिश्ता जो भावनाओं से भरा और भावनाओं से पोषित था. भाजपा की स्मृति ईरानी की जीत और राहुल गांधी की हार सिर्फ चुनावी लड़ाई का नतीजा नहीं है, यह उससे कहीं अधिक है.

जगदीशपुर के एक व्यवसायी बेचू खान ने परिणाम के बारे में बोलते हुए कहा, 'अमेठी में एक पीढ़ीगत बदलाव देखा जा रहा है. नई पीढ़ी के पास भावनाओं के लिए बहुत कम जगह है और अपने भविष्य के बारे में अधिक चिंतित है जो उसने स्मृति ईरानी और भाजपा में देखा है.'

उन्होंने कहा, 'इस नई पीढ़ी ने राजीव गांधी का स्थानीय लोगों से जुड़ाव नहीं देखा है. उन्होंने यह नहीं देखा कि संजय गांधी ने अमेठी को कैसे महत्वपूर्ण बनाया. इसलिए उनका गांधी परिवार के साथ भावनात्मक रिश्ता नहीं है.'

अमेठी के युवाओं को राहुल गांधी से नहीं स्मृति से है उम्मीदें
गौरीगंज के एक वकील शिवनाथ शुक्ला ने कहा, 'हमारे लिए पहचान अधिक महत्वपूर्ण थी, विकास नहीं. जहां भी हम देश भर में जाते थे और कहते थे कि हम अमेठी के हैं तो हमें सम्मान मिलता था और स्थानीय कांग्रेस सदस्य हमारी मदद के लिए पहुंचते थे. स्थानीय लोगों के लिए यह अधिक मायने रखता था.' तो फिर अमेठी ने इस बार गांधी को वोट क्यों नहीं दिया? स्थानीय लोगों का कहना है स्मृति ईरानी को चुनने में मुख्य भूमिका युवा मतदाताओं ने निभाई है.

मुसाफिरखाना से कांग्रेस कार्यकर्ता राम सेवक ने कहा, 'वह (ईरानी) उनके पास पहुंचीं, उन्हें छात्रवृत्ति, नौकरी आदि दिलाने में मदद की. युवाओं को अपने भविष्य के लिए एक नई आशा दिखाई दी. स्थानीय भाजपा नेताओं ने स्मृति ईरानी और लोगों के बीच एक सेतु का काम किया. इस बार अमेठी में अपने हित के लिए मतदान किया है.'

इसके अलावा, साल 2014 में अमेठी में स्मृति ईरानी ने एक लाख से अधिक मतों के अंतर से सीट हारने के बाद भी चुनाव प्रचार जारी रखा. वह नियमित रूप से निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करती रहीं और राहुल गांधी की अनुपस्थिति की ओर इशारा करती रहीं. दिल्ली में भी अमेठी के लोग उन तक आसानी से पहुंच सकते थे.

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