नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) के लिए अब सिर्फ तीन चरणों का मतदान बाकी है. आगामी दिनों में सत्‍ता का समीकरण अपने पक्ष में लाने के लिए न केवल सत्‍तारूढ़ बीजेपी बल्कि विपक्षी दलों ने अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक दी हैं. बीजेपी की कोशिश है कि वह दोबारा सत्‍ता में अपनी वापसी करें. वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में महज 44 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस एक बार फिर सत्‍ता में वापसी के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. कांग्रेस के लिए लिए यह पहली बार नहीं, जब वह किसी चुनाव में हासिए पर पहुंच गई है. कांग्रेस की कुछ ऐसी ही स्थिति आपातकाल के बाद हुई थी. आपातकाल के दौरान कांग्रेस का अस्तित्‍व सिर्फ दक्षिण भारत में सीमित रह गया था और देश में मोरारजी देसाई की नेतृत्‍व वाली जनता पार्टी की सरकार बनी थी. हालांकि, यह बात दीगर है कि महज तीन वर्षों में कांग्रेस ने तमाम राजनैतिक मुश्किलों के बावजूद सत्‍ता में अपनी वापसी की. चुनावनामा में आज हम बात करते हैं कि 1980 के लोकसभा चुनाव से पहले दो टुकड़ों में बंटी कांग्रेस किस तरह सत्‍ता के सिंहासन तक पहुंचने में कामयाब रही. 


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चुनाव से ठीक पहले दो टुकड़ों में बंट गई थी इंदिरा की कांग्रेस (आई)
आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में महज 154 सीट पर सिमट चुकी कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं. एक तरफ इंदिरा गांधी अपनी राजनीतिक  सूझबूझ से सत्‍ता की तरफ कदम बढ़ा रही थीं, दूसरी तरफ पार्टी में संजय गांधी के बढ़ते प्रभुत्‍व के चलते कांग्रेस के भीतर अंसतोष बढ़ने लगा था. नाराज कांग्रेसी नेताओं का मानना था कि 1977 के लोकसभा चुनाव में हार की वजह आपातकाल से कहीं ज्‍यादा संजय गांधी का नसबंदी अभियान था. लिहाजा, कांग्रेस की तत्‍कालीन दुर्दशा के लिए सिर्फ संजय गांधी जिम्‍मेदार थे. ऐसे में संजय गांधी की भूमिका को सीमित करने की बजाय उनको लगातार मजबूत किया जा रहा था. 1979 में स्थिति यहां तक पहुंच गई कि कांग्रेस पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई और कर्नाटक के तत्‍कालीन  मुख्‍यमंत्री डी देवराज उर्स ने इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के गठन की घोषणा कर दी. डी देवराज उर्स की घोषणा के साथ कर्नाटक, केरल, महाराष्‍ट्र और गोवा के कई वरिष्‍ठ नेता इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के साथ हो चले. इन नेताओं में यशवंत राव चौहाण, देवकांत बरुआ, के.ब्रह्मानंद रेड्डी, एके एंटनी, शरद पवार, शरत चंद्र सिन्‍हा, प्रियरंजन दास मुंशी और केपी उन्‍नीकृष्‍णन जैसे नेता शामिल थे. 


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उर्स की कांग्रेस ने 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा को दी थी चुनौती
1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को सिर्फ विपक्षी दलों से ही चुनौती नहीं मिली थी, बल्कि इस चुनाव में उनके खिलाफ कांग्रेस को मजबूती देने वाले कई पूर्व कांग्रेसी नेता भी उनके खिलाफ थे.  1980 के इस लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) ने 212 सीटों पर इंदिरा की कांग्रेस के खिलाफ अपने उम्‍मीदवार खड़े किए थे. इस चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के 212 उम्‍मीदवारों में से सिर्फ 13 उम्‍मीदवारों को जीत हासिल हो सकी थी. इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के 143 उम्‍मीदवार ऐसे भी थे, जो अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे. 1980 के इस लोकसभा चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस ने 492 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार खड़े किए, जिसमें 353353 उम्‍मीदवार जीत हासिल करने में सफल रहे. इंदिरा के युग में अब तक कांग्रेस को इतनी बड़ी जीत कभी हासिल नहीं हुई थी. इस चुनाव में करीब 42 फीसदी देश की जनता ने इंदिरा की इंडियन नेशनल कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था. वहीं, विपक्षी दलों की बात करें तो इस चुनाव में सीपीआई सिर्फ दस और सीपीएफ 37 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी.  


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चंद महीनों में खत्‍म हुआ डी देवराज उर्स की कांग्रेस का अस्तित्‍व
1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस को मिली प्रचंड बहुमत मिलने के बाद परिस्थितियां एक बार फिर बदलने लगी थी. कांग्रेस को जो नेता संजय गांधी से नाराज होकर पार्टी छोड़कर गए थे, उनका रुख एक बार फिर इंदिरा की कांग्रेस की तरफ होने लगा था. चुनाव के बाद डी देवराज उर्स ने खुद जनता पार्टी ज्‍वाइन कर ली. वहीं यशवंत राव चौहाण, ब्रह्मानंद रेड्डी और चिदंबरम सुभ्रमण्‍यम ने दोबारा इंदिरा कांग्रेस ज्‍वाइन कर ली. वहीं एके एंटनी ने खुद को इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) से अलग कर कांग्रेस (ए) का गठन कर लिया. वहीं, इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष शरद  पवार ने पार्टी का नाम बदलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस (सोशलिस्‍ट) कर दिया. इस तरह, महज कुछ महीनों में इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) का देश से अस्तित्‍व खत्‍म हो गया. 1980 के इस लोकसभा चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस की तरफ जनता दल का भी हाल हुआ. जनता दल दो टुकड़ों में बंट गई. जिसमें एक का नाम जनता दल और दूसरी का नाम (सेकुलर हुआ). ये दोनों ही पार्टियां 1980 के लोकसभा चुनाव में कुल चार सीटों पर सिमट कर रह गईं.