लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) को अपने पक्ष में लाने के लिए अतीत के पन्नों को पटला जा रहा है. हर राजनैतिक दल अपने विरोधी के अतीत को टटोल कर आइना दिखाने की कोशिश कर रहा है. राजनैतिक दलों के इस कोशिश के बीच हम आपको 'आपातकाल के बाद'के दौर से रूबरू कराते हैं.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) के लिए पहले चरण का मतदान हो चुका है. अब 18 अप्रैल को 13 राज्यों की 97 सीटों पर मतदान होगा. अब मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए राजनैतिक दलों के बीच जुबानी जंग न केवल तेज होगी, बल्कि अतीत के पन्नों को पलटने की कोशिश की जाएगी. अतीत के इन्हीं पन्नों में एक पन्ना हौ आपातकाल और उसके बाद हुए देश के छठवें लोकसभा चुनाव की. चलिए, चुनावनामा के इस सफर में हम आपको आपातकाल के दौर में ले चलते हैं. आपको बताते हैं कि आपातकाल के बाद किन परिस्थितियों में देश का छठवां लोकसभा चुनाव हुआ और इस चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए इंदिरा गांधी ने कौन से सियासी दांव चले...
यह बात जनवरी 1977 की है. देश में बीते 18 महीनों से आपातकाल को झेल रहा था. इंदिरा के इर्द-गिर्द चाटुकारों की लंबी फौज थी. चाटुकारों की इस फौज में अधिकारी, नेता, दोस्त सभी शामिल थे. उन दिनों, ये चाटुकार, इंदिरा को यह भरोसा दिलाने में लगे हुए थे कि देश में उनके द्वारा लिए गए प्रशासनिक फैसलों की वाहवाही है. यही समय है जब इंदिरा न केवल आपातकाल के कलंक को मिटा सकती हैं, बल्कि भारी जनसमर्थन के साथ सत्ता में वापस भी आ सकती है. आखिरकार ये चाटुकार, इंदिरा को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहे. इसी भरोसे के चलते इंदिरा देश में आम चुनाव कराने के लिए राजी हो गईं. चुनावनामा में आपको बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद सत्ता हासिल करने के लिए इंदिरा ने कौन सा सियासी दांव चला.
23 जनवरी को इंदिरा ने किया अगले आम चुनाव का ऐलान
इंदिरा गांधी को अब यह भरोसा हो गया था कि 1977 का लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में वापस आ जाएंगी. बावजूद इसके, उनके मन में विपक्ष को लेकर कुछ शंकाए भी थीं. उन्हें डर था कि आपातकाल का हवाला देकर विरोधी दल जनता को कांग्रेस के विरोध में न खड़ा कर दें. इसी डर के चलते इंदिरा गांधी विरोधियों दलों को चुनाव के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं देना चाहती थीं. उधर, देश में आपातकाल को लेकर विरोध जरूर चल रहा था, लेकिन किसी को यह भरोसा नहीं था कि इंदिरा देश में चुनाव भी करा सकती हैं. तभी, इंदिरा गांधी ने 23 जनवरी 1977 को आकाशवाणी के जरिए देश को बताया कि अगले लोकसभा चुनाव मार्च में होंगे.
चुनाव के लिए विपक्षी दलों को मिला महज 51 दिन का समय
वर्तमान समय में लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट साल भर पहले से शुरू हो जाती है. लोकसभा चुनाव को लेकर राजनैतिक दल अपने तरीके से तैयारियां शुरू कर देती हैं. लेकिन, विपक्षी दलों को 1977 के लोकसभा चुनाव के लिए महज 51 दिन का समय मिला. दरअसल, 23 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने मार्च में अगले आम चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी. इस घोषणा के साथ आपातकाल के दौरान जेल में कैद किए गए सभी लोगों को रिहा कर दिया गया. 1977 के लोकसभा चुनाव के लिए 16 मार्च से 21 मार्च का समय तय किया गया. ऐसे में विपक्षी दल न ही चुनाव लड़ने की तैयारी में थे और न ही चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन था.
1977 में जयप्रकाश नारायण ने किया जनता पार्टी का गठन
मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव के ऐलान के साथ जेल में बंद सभी राजनेताओं और आंदोलनकारियों को रिहा कर दिया गया. जेल से रिहा होने के बाद कोई भी नेता चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं था. चुनाव लड़ने के लिए इन नेताओं के पास न ही पर्याप्त धन था और न ही महज 51 दिनों में चुनाव की तैयारियों को पूरा किया जा सकता था. उस दौर में, जयनारायण प्रकाश ने मोर्चा संभालते हुए जनता पार्टी का गठन किया. जनता पार्टी ने देश के तमाम राजनैतिक दलों से गठबंधन कर एक मजबूत मोर्चा तैयार किया. इसके साथ ही, प्रचार के लिए शीर्ष नेताओं का चुनाव किया गया. जिसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम, चंद्रशेखर सहित अन्य दिग्गज नेताओं का नाम शामिल है.
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जनता पार्टी का नाम सुनकर जुट जाती थी हजारों की भीड़
आपातकाल के बाद देश में इंदिरा के खिलाफ विरोध की लहर प्रखर हो चुकी थी. जनता पार्टी के नेताओं ने इलाके-इलाके जाकर अपना प्रचार शुरू कर दिया था. जनता पार्टी की लहर कुछ ऐसी थी कि लोगों को यह पता चल जाए कि जनता पार्टी का कोई नेता आया है तो पांच से दस हजार की भीड़ वैसे ही जुट जाती थी. इस बीच, दो शख्स चद्दर लेकर भीड़ में जाते और वापस आने पर चद्दर नोटों से भरी होती थी. चंद्रशेखर, जयप्रकाश नारायण और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं की जनसभाओं में जनसैलाब जैसी स्थिति हो जाती थी. इन जनसभाओं में उमड़ने वाली भीड़ देकर अंदाजा लगाना बेहद आसान था कि देश अब करवट ले रहा है.
सिर चढ़कर बोलता था अटल बिहारी के भाषणों का जादू
आपातकाल के बाद शुरू हुए चुनाव प्रचार में अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता था. तवलीन सिंह ने अपनी किताब 'दरबार में लिखती हैं' में अटल बिहारी के भाषण का जिक्र करते हुए लिखा है कि 'ठंड और बारिश के बावजूद लोग अपनी जगह पर जमे हुए थे. इसी बीच एक शख्स ने अपने बगल वाले से पूछा कि ठंड लगातार बढ़ रही है, भाषण भी बेहद उबाऊ है, लोग जा क्यों नहीं रहे हैं. बगल वाले ने जवाब दिया, अभी अटल का भाषण बाकी है.' मंच पर आते ही अटल बिहारी ने अपने भाषण की शुरुआत शायरी से की. उन्होंने कहा कि 'मुद्दत के बाद मिले हैं दीवाने, कहने- सुनने को बहुत हैं अफसाने, खुली हवा में जरा सांस तो लेलें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।' अटल बिहारी की इस शायरी के साथ पूरी जनसभा तालियों की गड़गड़ाहट और जिंदाबाद के नारों से गूंज गई.
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आखिर में, हार गईं इंदिरा गांधी, जनता पार्टी को मिला जनमत
लोकसभा चुनाव 1977 में जनता तक अपनी बात पहुंचाने और जीत दर्ज करने के लिए इंदिरा गांधी ने पूरे देश का भ्रमण किया. कई बड़ी रैलियों का आयोजन भी किया. उनकी रैलियों में पहले की तरह भीड़ तो जुटी, लेकिन यह भीड़ मतों ने परिवर्तित नहीं हो सकी. नतीजतन, जनता पार्टी 1977 के लोकसभा चुनाव में 298 जीतने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस के खाते में महज 153 सीटें आई. इंदिरा गांधी अपनी रायबरेली सीट भी नहीं बचा सकीं. इस सीट जनता पार्टी के नेता राजनारायण की जीत हुई. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी भी अमेठी से चुनाव हार गए. कांग्रेस से चुनाव हारने वाले नेताओं की लिस्ट में जनेश्वर मिश्र और विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम भी शामिल है.