1951 के पहले लोकसभा चुनाव में जवाहर लाल नेहरू ने इलाहाबाद-जौनपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा था.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) के नतीजों से पहले बात करते हैं देश के पहले लोकसभा चुनाव की. आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री चुना गया. यहां यह बात दीगर है कि 15 अगस्त 1947 को बने देश के पहले मंत्रिमंडल के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव नहीं हुए थे. 26 जनवरी 1950 को देश गणतंत्र हुआ. जिसके बाद, 1951 में पहली बार लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत पहली बार लोकसभा चुनाव कराए गए. 1951 के पहले लोकसभा चुनाव में जवाहर लाल नेहरू ने इलाहाबाद-जौनपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा. वर्तमान समय में इस संसदीय क्षेत्र को हम फूलपुर के नाम से जानते हैं. चुनावनामा में जानते हैं कि देश को पहला प्रधानमंत्री देने वाली फूलपुर संसदीय सीट पर कब-कब किस राजनैतिक दल का बोलबाला रहा.
नेहरू के खिलाफ खड़े हुए सभी प्रत्याशियों की जमानत हुई जब्त
1951 के पहले लोकसभा चुनाव में जवाहर लाल नेहरू को चुनौती देने के लिए चुनावी मैदान में कुल पांच प्रत्याशी थे. इस चुनाव में कुल 6.03 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. जिसमें करीब 2.33 लाख वोट जवाहर नेहरू के पक्ष में गए. वहीं, नेहरू को चुनौती दे रहा कोई भी उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सका. इस चुनाव में नेहरू की खिलाफ चुनाव लड़ रहे किसान मजदूर प्रजा पार्टी के बंशीलाल को करीब 59 वोट मिले, जबकि अन्य प्रत्याशी महज चंद हजार वोट में ही सिमट गए. इलाहाबाद-जौनपुर से चुनाव जीतने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
1964 में विजयलक्ष्मी पंडित को मिली नेहरू की फूलपुर संसदीय सीट
फूलपुर संसदीय क्षेत्र से जवाहर लाल नेहरू लगातार तीन बार सांसद रहे. 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में उन्होंने फूलपुर से पहली जीत हासिल की. 1957 और 1962 में हुए दूसरी और तीसरी लोकसभा चुनाव में नेहरू ने फूलपुर सीट से जीत हासिल की. 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद इस सीट पर बाईपोल हुए. जिसमें नेहरू की विरासत उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित पंडित को सौंपी गई. विजयलक्ष्मी पंडित पंडित ने फूलपुर संसदीय सीट पर न केवल 1964 के उपचुनाव में जीत दर्ज की, बल्कि 1967 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट से सांसद बनकर लोकसभा पहुंची. 1969 में विजयलक्ष्मी ने फूलपुर संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया.
1969 में पहली बार अपने सबसे मजबूत गढ़ से चुनाव हार गई कांग्रेस
1969 में विजयलक्ष्मी पंडित ने फूलपुर संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया. जिसके चलते, 1969 में एक बार फिर फूलपुर संसदीय सीट पर उपचुनाव कराया गया. इस उपचुनाव में कांग्रेस को अपने सबसे मजबूत गढ़ को खोना पड़ा. इस चुनाव में संयुक्त सोसिओलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र ने कांग्रेस के विश्वनाथ प्रताप सिंह को करीब 90 हजार से अधिक वोटो से शिकस्त दी थी. 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर कांग्रेस का कब्जा हुआ और कांग्रेस के विश्वनाथ प्रताप सिंह फूलपुर से सांसद बने. इसके बाद, 1977 में भारतीय लोकदल की कमला बहुगुणा, 1980 में जनता दल सेकुलर के बीडी सिंह और 1984 में कांग्रेस के रामपूजन पटेल फूलपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद बने.
1984 के बाद फूलपुर संसदीय सीट से नहीं बना कांग्रेस का सांसद
1984 के लोकसभा चुनाव के बाद फूलपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का कोई भी सांसद नहीं बना. फूलपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के आखिरी सांसद रामपूजन पटेल थे. 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में रामपूजन पटेल ने जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1996 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट समाजवादी पार्टी की झोली में चली गई. समाजवादी पार्टी के जंगबहादुर सिंह पटेल 1996 और 1998 का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1999 में यह सीट समाजवादी पार्टी के ही धर्मराज पटेल के पास चली गई. इसके बाद, समाजवादी पार्टी के अतीक अहमद 2004 में इस सीट से सांसद रहे.
2014 में फूलपुर संसदीय सीट से बीजेपी को मिली पहली बार जीत
2009 में इस क्षेत्र के मतदाताओं ने एक बार फिर बाजी पलटी और इस बार बाजी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के पाले में गई. बीएसपी के कपिल मुनि 2009 में यहां से सांसद चुने गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपुर से जीत दर्ज की. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद केशवप्रसाद मौर्य को सूबे का उपमुख्यमंत्री बना दिया गया, जिसके चलते उन्हें इस सीट से इस्तीफा देना पड़ा. 2018 में हुए उपचुनाव में जीत हासिल कर नागेंद्र प्रताप सिंह एक बार फिर इस सीट को समाजवादी पार्टी के पाले में लाने में कामयाब रहे. फिलहाल सपा के नागेंद्र प्रताप सिंह फूलपुर संसदीय सीट से सांसद हैं.